''राजनीती के महानायक है ''अटल जी ''......अंकुर मिश्र''युगल''



1924 में जब अटल जी का जन्म हुआ था तब स्वाधीनता संग्राम अपने चरम पर था !
उसी माहौल में पले बढे अटल जी का स्वाभाव अत्यंत सरल है, वे मृदुभाषी होने के साथ साथ कुशल समाज सेवक भी है !
जब 1957 में उन्होंने संसद भवन में प्रवेश किया तब किसी ने सोचा भी नहीं था की यही सथारण नेता देश का अभिनेता बनाकर उभरेगा !उन्होंने लगातार सतत परिश्रम एवं निरंतरता के दम पर 7 बार लोक सभा सदस्य बनकर देश में एक रिकार्ड स्थापित किया ,उन्होंने पहली बार देश को गैर कांग्रेसी सरकार दी ,संयुक्त राष्ट्र सघ में राष्ट्र भाषा हिंदी को उदीयमान किया ,कारगिल जैसे विशाल युध्ध को शांति पूर्वक निपटाया, देश के दो बार प्रधानमंत्री बनकर देश को कुशल विकाश दिया जो एतिहासिक है !वो एक राजनेता के साथ महान कवि भी है जो देश की समस्याओ के ऊपर अपने कवित्व को प्रदर्शित करते है !इन्ही महान गुणों के कारन आज वो राजनीती के महानायक बन चुके है उनके जैसा जीवन निर्वाह करने वाला न आज तक हुआ है और न ही भविष्य में होगा !
राष्ट्रपति श्री कलम सर कहते है की ''श्री अटल जी भारतीय राजनीती की परिभाषा बन चुके है जिस दिन इस सूर्य का अस्त हुआ उस दिन भारतीय राजनीती अपठनीय हो जाएगी''

उनका मुख्या हथियार शालीनता है जो आज के नेताओ से कोशो दूर है आज तो आरोप प्रत्यारोप ही राजनेताओ का मुख्य हथियार बन चुके है ! वो कड़वी से कड़वी बात अपनी शालीनता से मानव लेते थे !
पूर्व प्रधानमंत्री श्री मती इंदिरा गाँधी भी उनकी इश शालीनता के कारन उनका सम्मान करती थी !
आपने ठीक समय में राजनीती से सन्याश लेकर एक महान व्यक्तित्व का परिचय दिया है !
आज ऐसे ही प्रधानमंत्री,कुशल समाज सेवक,कुशल वक्ता,महान कवि और एक भारतीय ने अपने ८५ वर्ष पूर्ण कर लिए है आपको ज्ञात हो की २५ दिसंबर का दिन एक महान दिन मन जाता है क्योकि इसी दिन ईशा मशीह जी का अवतरण हुआ था , इसी दिन महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन जी का जन्म हुआ था ,जो अपने आप में अदिउतीय है !
तो हम श्री अटल जी के ८५वे जन्मदिन पर हार्दिक सुभ्कम्नाओ के साथ इश्वर से प्रार्थना करते है की अटल जी को दीर्घायु प्राप्त हो जिससे भरतीय राजनीती पर आपकी छत्रछाया हमेशा बनी रहे !

अब ''अफसरों'' का फैसला करेगे राजनेता ..अंकुर मिश्र ''युगल''


श्री पि.चिदंबरम द्वारा दी गयी टिपण्णी की ''अब ५० वर्ष पुरे कर चुके I.A.S. , I.P.S. ,I.F.S. अधिकारियो के कामकाज की समीक्षा की जाएगी '' क्या सही है ! कार्यकाल तो सभी का देखना चाहिए पर इसमे उम्र का व्यधान क्यों! कामकाज की समीक्षा तो अतिआवश्यक है पर नियुक्ति के समय से ही ,यदि उम्र का सवाल है तो मै चाहता हू की आधुनिक राजनीती में सबसे पहले बदलाव होने चाहिए और उसकी समीक्षा की आवश्यकता पहले है ! हमारी राजनीती में अनेक ऐसे लोगो को जगह दी गयी है जो इस के बिलकुल काबिल नहीं है ,तमाम को तो केन्द्रीय मंत्री ,राज्यमंत्री व तमाम पद दिए गए है जो अत्यंत शर्मकार है !तो श्री चिदंबरम जी आपका मतलब है की आप उन नेताओ के जरिये उन अधिकारियो की समीक्षा करायेगे जिनमे जमीं असमान का फर्क है !
मानते है हमारा देश लोकतांत्रिक है पर इतना ज्यादा लोकतात्रिक भी मत बनाइये की यहाँ प्रशासन नाम का अश्तित्व ही न बचे ! पहले ही उन अधिकारियो का ''तबादला'' आप लोग अपने मनमाफिक जगह करके उन्हें अपना पुतला बनाये हुए है अब और ज्यदिती न करे तो अच्छा ही होगा !
हमें चाहिए की की प्रशासनिक अधिकारियो के कामकाज में राजनेताओ का दखल समाप्त कर उनके लिए उनके ही आयोग के नियमो को लागु करना चाहिए जो उनके लिए एवं भारतीयों के लिए हितकारी है !
तो आप जैसे महान नेताओ से गुजारिश है की आप लोग कृपया प्रशासन को इतना कमजोर न बनाये की वो अपने कामो को करने के लिए भी डरे और अपने पद का अश्तित्व भूलकर वह उस जनता को भूलकर ,(जिसके लिए वह आया है और जिसने आपको यह पद दिया है) आपका कतपुतला बनकर आपकी सेवा में ही जुट जाये और देश एवं जनता को भूल ही जाये!
आशा है आप यह बाते मजाक में नहीं लेगे!

ओ किसान भगवान................


यह कविता मेरे पूज्यनीय बाबा
*****(श्री श्री धर मिश्र , तहसीलदार )******
द्वारा लिखित है जो आज इस दुनिया में नहीं है,
उनकी पुस्तक ****''मेरा संग्रह''**** में महान कविताओ का संग्रह है!
चूँकि वो एक राजस्व विभाग के अधिकारी थे अतः उन्होंने किसानो एवं जनता का कास्ट नजदीक से देखा है !
इस कविता में उन्होंने किसानो की दशा का वर्णन किया है.


ओ किसान भगवान ....ओ किसान भगवान.....
जगत के प्राण,
की भूत के प्राण,
किन्तु हा सुना हुआ जग विधान,
तुम्ही से निर्मित जग नादान,
पल्लवित करने वाला आप(water),
की पुश्पिर करने वाला ताप(Temp)
आज देखा जाता बल-हीन,
ओज से रहित,
रोग से ग्रसित,
वही मधुमास,
वही रसराज,
भरा था सौरभ का भंडार,
बड़ी मतवाली मस्ती से जिसकी,
लहराती हस्ती से जिसकी,
छोटी से छोटी गलियों ने,
बेशुध, भूली सी कलियों ने,
हर दल दल हर पट पट ने,
मानव के अप्रताप ताप ने,
पाया था संयोग ,विरह का-,
किन्तु वही मधुमास
की जिसके पीछे था पतझड़,
की जिसका अनुचर रहता नाश,
आज तांडव सा करता नृत्य,
बना मालिक बैठा है मृत्य,
आज क्यों शक्तिहीन बलवान,
ओ किसान भगवान ....ओ किसान भगवान.....

जो घटना ६ दिसंबर १९९१ को हुई थी उसका परिणाम निकलना ही चाहिए!...........


भारत के कानून को बहुत ही ढीला माना जाता है! यहाँ कोई भी गैर क़ानूनी मामला होने के बाद उसके न्याय दिलाने में शादियाँ लग जाती है! लेकिन लिब्रहान आयोग (Indian Goverment) ने अपनी रिपोर्ट को पेश करने में बहुत ही जल्वाजी दिखाई और ise समय se pahle hi ,जो हिन्दू और मुशलमानो को ladane की nai टेक्निक हो सकती है और अपना वोट बैंक बढ़ने की नई सोची समझी शाजिश !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!1
अरे विदेशी आक्रमण करे और वो हजारो भारतीयों को बलि क बकरा बनाये इससे कोई मतलब नहीं है! उन महान भारतीयों को मात्र शहीदों की श्रेणी में डालकर ,उनकी फोटो दीवाल में लगाकर चार आशुं बहाकर चार दिन में भूल जाते है, और कहते है की वो महान थे उन्होंने हमारे लिए अपनी भी नहीं सोची अरे वो तो महान थे ही इसको बताने की कोई जरुरत नहीं है उन्होंने तो इसे खुद दिखा दिया! अब बारी आपकी है उनके बलिदान को खाली मत जाने दीजिये उन्होंने जिसे को खत्म करने की कोशिश की थी उसे आप जड़ से ख़त्म कर दीजिये, जो आपको महान बनाएगी ! आज अयोध्या कांड को १८ साल होने को है वहां आज तक पता नहीं चल पाया की मंदिर था या मस्जिद अरे पता भी कैसे चलेगा क्योकि उसको बनाने वाला तो अब रहा नहीं पर जो घटना ६ दिसंबर १९९१ को हुई थी उसका परिणाम निकलना ही चाहिए! वहां हजारो राम भक्त कारसेवको ने अपनी बलि di थी उस बलि क परिणाम निकलना hi चाहिए!यह mai इसलिए नहीं कह रहा ki हमारा देश हिन्दू राष्ट्र है और एक हिन्दू राष्ट्र में प्रथम प्राथमिकता हिन्दुओ को मिलनी चाहिए, बल्कि हम जिस इतिहास को मानते है ये वो इतिहास कहता है ki मंदिर vahi था आज की सरकार तो अपनी वोटो की संख्या बढ़ने के फेर में कोई परिणाम देने में सक्सगाम है नहीं उसे खतरा है ki यदि मैंने हिन्दुओ के लिए मंदिर के आदेश दिए तो मुस्लिम वोट चले जायेगे और यदि हिन्दुओ को मना किया तो हिन्दू वोट चले जायेगे !अतः हमारी आज की सरकार से कुछ नहीं होने वाला मंदिर ko बनवाने में जो सरकार सक्षम थी vo aj विपक्ष me hai!!!!!!!!!!!!!!!!!
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आज ''सेना'' नहीं ''जज्बा'' बढ़ाने कि जरुरत है! अंकुर मिश्र ''युगल''



आज मुंबई हमले को एक साल होने को है ,उसका भयावह चित्रण आज भी मस्तिष्क को चकित कर देता है, लेकिन हमारा शासन आज भी चकित नहीं है ! हम वह भयावह चित्रण भुला नहीं सकते जिसमे लगभग २०० भारतीयों की जान गई थी और हमारी औद्योगिक नगरी के तमाम होटलों पर कहर बरसा था और उस समय हमारी सरकार की तरफ से सफाई आ रही थी की हमारे पाश सही हथियार नहीं थे, हमारे पास N.S.G. कमांडो की कमी थी ,इस हमले के बाद सरकार और प्रशासन दोनों अपने को छुपाने की कोशिस कर रही थी हमारा खुफिया तंत्र आखिर किस काम के लिए है हम सुरक्षा के नाम पर इतना धन क्यों खर्च करते है कि ''डेविड हेडली'',''तह्ब्बुर राणा'' जैसे आतंकवादी मुंबई आते है और हमें पता भी चलता है !हमारी सुरक्षा विध्वंश से होती जा रही है !
हमें यदि आतंकवाद जैसे 'नासूर' को ख़त्म करना है तो अपने आप में जज्बा का 'अंकुरण' करना होगा !पुलिस को खाकी वर्दी में रहकर डंडा चलाने या एक ख़ुफ़िया अधिकारी बनाने से इस नासूर का खात्मा असंम्भव है ! आतंकवाद को ख़त्म करने के लिए हमें खुद आगे बढ़ाना होगा ,,,वर्ना २६/११ जैसे हमले हमारे लिए एक छोटी घटना बन के रह जाएगी और देश में आतंकवाद का एकछत्र स्वराज्य स्थापित हो जायेगा!
अंत में उन शहीदों को नमन जिन्होंने हमारे लिए अपनी एक भी चिंता न कि और शहीदों कि स्वर्णिक श्रेणी में शामिल होने का गौरव हासिल किया! वो छोटे थे या बड़े,, हमें पता नहीं है पर वो महान थे ,महान थे महान थे !!!!!!!!!!!!!!!!!!

कवि !तुने यों गाया तो क्या ,....ankur mishra


कवि !तुने यों गाया तो क्या ,
जग बंधन से यों बंधा रहा ,
''अंकुरित'' कली जब खिल उठी,
युग-युग से से झस्न्कृत स्वालहरी,
अपने तारो से मिल न सकी!!!!!!!!
चांदनी चाँद की रात रात भर
हंसती रही मुस्कराती है
बेशक मतवाली लहरों में
चमकीली मस्ती आती है!!!!!!!!!!!!!!
पर प्रर्थ नहीं इसका
प्रियवर! यह सरे जग को भाता है
अरे प्रोषिता तप्त ह्रदय
अव्व्मी जलवा चिल्लाता है
प्रति प्रातः पदेश!!!!! ........
श्रमी रवि मुश्काराया तो क्या
कवि! तुने यों गया तो क्या गाया!!!!

''विश्व शांति'' में कितने सफल है राष्ट्रों के ''महानायक'' ---अंकुर मिश्र''युगल''



सदिया बिताती चली जा रही है ,लोग अपनोंको लगातार खोते चले जा रहे है , खाने के लिए हो या पीने के लिए, रहने के लिए हो या जाने के लिए लोग आपस में ही टकराने को तैयार हो जाते है लोग संभल भी जाये पर कुछ अपवाद शांति को समझते ही नहीं है इन्ही अपवादों को आज आतंकवादियो का नाम दे दिया है कहते है आतंकवादी जिहाद के लिए लढते है लेकिन जिहाद भी शांति का पथ पढ़ाता है क्या उन मझभियो को नहीं पता ,क्या वो अपने धर्म्ग्रथ नहीं पढ़ते है kya उनके परिवार में माँ, बहन,पिता,भाई, नहीं होते क्या उन्हें उनकी किल्कारिया कभी सुनाई नहीं देती ! आखिर उनकी सोच क्या है ,वो चाहते क्या है!विश्व व स्वयं का विधवंस ही उनका उद्देश्य है क्या !ये तो अखीवाही जन सकते है !
मै तो उनसे आज तक मिला नहीं मिलना जरुर चाहता हु मै जानना चाहता हु की उनकी सोच क्या है आखिर ऐसी क्या महत्वाकांक्षा है जो वो पूरी करना चाहते है !


पं. जवाहरलाल नेहरु ने विश्व शांति के जो स्वप्न देखे तो वो आज की तारीख में पुरे होते नहीं दिख रहे है !ओबामा व मनमोहन सर की दोस्ती इसमे क्या परिवर्तन ला सकती है वो हम प्रत्यक्ष देख ही रहे है !
''परमाणु'' मुक्त विश्व के स्वप्न आज देखना निरर्थक है ! यदि आज हम स्वयं को परमाणु मुक्त बना भी ले तो हम सुखी नहीं रह सकते है!
हजारो परमाणु बम वाले विश्व में हम ''शांति'' जैसे शब्द को निरर्थक ही विध्वंशक बनाये दे रहे है! हर देश कहता है की वो परमाणु बम अपनी सुरक्षा के लिए बना रहा है ! पर बिना परमाणु बम के भी सुरक्षा हो सकती है !हम सोचते क्यों नहीं है की आज की परमाणु शक्ति को सोचकर ही लोग भयभीत हो जाते है ! वो बच्चा जो पैदा होते ही सोचने लगता है की अब जिस दिन भी किन्ही दो वर्गों में युध्ध शुरू उस दिन हम विशावयुध्ध का रूप धारण कर हमारा विनाश अवश्य कर देगा !
उस बच्चे की पुकार तो सुनिए , विश्व को उसकी जरुरत है और विश्व को उसकी जरुरत है !कृपया विश्व को शांति का उपाशक बनाइयेऔर इसकी सुरुत करने के लिए आपको विश्व भ्रमण की जरुरत नहीं है इसको अप अपने घर में सुरु करके भी परिणाम को विश्वस्तरीय बना सकते हैं!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

सचिन तुझे सलाम ----अंकुर मिश्र’’युगल’’




आखिर एक रिकॉर्ड और रच ही डाला !
जब मेरा जन्म हुआ था तब आपने क्रिकेट की दुनिया में कदम रखा था और मै आज २० साल का हो गया हु और अभी tak अपने क्रिकेट का साथ वखुबी निभाया है ! यद्यपि कपिल सर द्वारा १९८३ विश्व कप दिलाने के कारन क्रिकेट हमारे बिच काफी लोकप्रिय हो चुका था !
1989 में सचिन ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकट में कदम रखे और लगातार सफलता चुमते हुए देश को चमत्कार दिए
आपकी खेल व राष्ट्रभावना से देश का हर नागरिक प्रभावित है!
मैंने उनके लभभग सभी मैच देखे होगे जिसमे मुझे उनकी सर्व्स्रेस्था पारी नवम्बर २००९ की आस्ट्रेलिया के खिलाफ लगी इस पारी में वही सचिन दिख रहे थे जो १९९९ के विश्व कप में थे ! जबकि सचिन पाक. के खिलाफ १९९९ की पारी को सर्वश्रेष्ठ मानते है ! उनकी तो लभभग हर पारी बेमिशाल है और हमारे लिए वो हर पारी में कुछ न कुछ स्मरणीय छोड़ जाते है !
उनका खुद का मानना है की ''उतर- चढव तो चलते रहते है लेकिन जो उनकी शिकायत में जिंदगी व्यतीत करते है वह कभी भी सफल नहीं हो पते है ! उन्हें (सचिन) को आज तक खुद से कोई शिकायत नहीं है, और न ही आलोचकों की परवाह करते है कहते है मेरे खे का प्रमुख श्री मेरे आलोचकों को जाता है !
वास्तविक सचिन खेल की दुनिया के ही नहीं बल्कि सांसारिक दुनिया में भी महान है आपकी सोच और आपका खेल हर भारतीय को खुश कर देती है!
हम एक अरब भारतीय कामना करते है की एपी रिकार्डो का ऐसा रिकॉर्ड बनाये जो क्रिकेट की दुनिया हमेशा केवल सोचती ही रही !
आप इसी प्रकार हमें अपना क्रिकेट रूपी उपहार देते रहे ! आप ईसी तरह हजारो साल क्रिकेट खेलते रहे !
आपके समर्पण को सलाम ...............................................................................

Sachin Tendulkar Biography ................



Welcome to Sachin Tendulkar biography section of Sachin-Tendulkar.co.in. Sachin Tendulkar biography is so impressive that anyone can get inspired from it. When 16 years old Sachin entered the world of cricket against Pakistan, experts said a lot of things about Sachin Tendulkar height, but tallest of the bowlers have proven short in front of Sachin Tendulkar height. Although Sachin Tendulkar height is 5ft 5 inch but bowlers like Courtney Walsh, Curtley Ambrose and Tom Moody, who are some of the tallest bowlers in Sachin’s era, have received thrashing from Sachin’s heavy bat. With time, Sachin Tendulkar height and stature in world cricket has become tallest.

Sachin Tendulkar profile : If you talk about Sachin Tendulkar profile, he has done everything to make his profile just the perfect one. If any cricketer in the world can include even 1% of ingredients of Sachin Tendulkar profile in his approach towards Cricket, he’ll be a good player, if not great. A short Sachin Tendulkar profile includes following details of Sachin Tendulkar.

Full name: Sachin Ramesh Tendulkar
Father’s name : Ramesh Tendulkar
Mother’s name : Rajni Tendulkar
Sachin Tendulkar birthday : April 24, 1973 , Bombay (now Mumbai)
Current age 36 years 150 days (as on 21 Sep 2009 )
Major teams: India , Asia XI, Mumbai, Mumbai Indians, Yorkshire
Nickname: Tendlya, Little Master, Master Blaster
Batting style: Right-hand bat
Bowling style : Right-arm offbreak, Legbreak googly
Sachin Tendulkar height : 5 ft 5 in
Education: Sharadashram Vidyamandir School
People in India want to know complete Sachin Tendulkar biography. When anyone goes through Sachin Tendulkar profile or Sachin Tendulkar biography, he comes to know how a young boy from Mumbai rose to the height of popularity in the world of Cricket. Sachin Tendulkar height may not be that big, but his stature is the biggest in the Cricketing world. This website puts a full-stop on your search for Sachin Tendulkar biography.

A bit more on Sachin Tendulkar profile: Sachin Tendulkar is considered one of the complete batsmen ever. He has all the shots in the book. Also, he is unarguably the biggest crowd puller and icon of the game. Even, all time great Late Sir Don Bradman told his wife that Sachin reminded him of himself. Few people know that Sachin actually wanted to become a fast bowler, but legendary pacer Denis Lillee turned away Sachin from MRF Pace Academy , based in Chennai. Debuted at the age of 16, a glimpse of greatness was seen by another Indian great Kapil Dev, when he continued to bat with a blood soaked shirt, as he was hit by a Waqar Younis bouncer in his debut match. He even had 16 international Hundreds before the age of 25. In 2008, he passed Brian Lara as the leading Test runs scorer and the first bastman to score 12,000 runs. There were times in Indian households, when Sachin Tendulkar used to get out, people used to turn off their Television sets.

Sachin Tendulkar birthday is on April 24. In India , Sachin Tendulkar birthday is like a festival among cricket lovers. India is already a cricket crazy country and thus, Sachin Tendulkar birthday is celebrated like a festival. Millions of fan mails and wishes are received by Sachin Tendulkar every year on Sachin Tendulkar birthday. We even wonder, whether there would be a national holiday on Sachin Tendulkar birthday, after he retires from Cricket.

A Shost Biography of Chacha ji..By ankur mishra''yugal''


Pt.Jawaharlal Nehru Personal Details|Biography|Children’s Day Jawaharlal Nehru was the first and also long serving prime minister of India[From 1947 to 1964].He is also referred as Pandit Nehru ("pandit" means "scholar","teacher" in Sanskrit).

Nehru is the son of a Motilal Nehru who was a barrister and politician.Nehru at an young age became the leader of the left wing of the Indian National Congress Party.After the independence,Nehru was recognized as Gandhi's political heir.

Nehru got the first chance to raise the flag of Independent India on 15 August 1947.Nehru was born on 14 November 1889 which was now celebrated as Children's Day.His daughter Indira Gandhi and Grandson Rajiv Gandhi also served as Prime Ministers of India.Nehru died in the early hours of 27 May 1964 of Heart Attack.His birthday,14 November,is celebrated as Children's Day in recognition of his lifelong passion and work for the welfare,education and development of children and young people. Children across India remember him as Chacha Nehru (Uncle Nehru).

Jawaharlal Nehru's Personal Profile

Name : Jawaharlal Nehru
Father : Motilal Nehru [Wealthy Barrister and politician]
Mother : Swarup Rani [Married on February 8,1916]
Sisters : Vijaya Lakshmi and Krishna
Wife : Kamala Nehru [Kamala Kaul - Died in 1936 of Tuberculosis]
Children : Indira Gandhi [Indira Priyadarshini]
Education : Trinity College,Cambridge
Profession : Barrister & Politician
Gotra : Kaul
Born On : 14 November 1889
Expired : 27 May 1964

हर क्षण हर पल कितना अहम हुआ विज्ञान ! ---अंकुर मिश्र ''युगल''





हर क्षण हर पल कितना अहम हुआ विज्ञान !
चाँद सितारों को छू लेना अब बिलकुल आसान !
नै क्रांति पैदा कर दी है धरती पर विज्ञान ने !
नए-नए सोपान सृजन के रच डाले इन्सान ने !
हुआ असंभव भी अब संभव है इसका हर प्रयोग है !
सपनो को साकार करेगी इसकी ''अंकुरित'' उडान !
..............हर क्षण हर पल कितना अहम हुआ विज्ञान.....
श्रम और समय बचा देता है प्रगति पथ का नायक है !
शांति सुरक्षा और सम्रिथ्थी में भी बहुत सहायक है !
अब तो यह वरदान हो गया उन्नति की पहचान है !
वैज्ञानिक पध्दती अपना कर खुश है आज हर किसान !
.............हर क्षण हर पल कितना अहम हुआ विज्ञान........
विकसित हो विज्ञान मगर मानव हित सर्वोपरि हो !
क्या प्राणी क्या जीवजन्तु जड़ चेतन को हितकर हो !
कठिनाई का समाधान हो ऐसा बस ऐसा विज्ञान हो !
इसके हर संभव से बन जाये अपना देश ''महान''!
.............हर क्षण हर पल कितना अहम हुआ विज्ञान........






अंकुर मिश्र ''युगल''

'' मुझे इतना तो न मरो --राष्ट्रभाषा हिन्दी''........अंकुर मिश्र 'युगल'




''आज मै इस तरह से अपने ही घर में लज्जित हो रही हो की किसी के सामने अपने दर्द का व्याख्यान भी नहीं कर सकती !पहले तो मुझे इस बात का कष्ट रहता था की आतंकवाद, नक्सलवाद अदि मेरी माता को लगातार कष्ट दे रहे है, लेकिन उस दर्द का एहसास मुझे नहीं होता था ! अज जब लोग मुझे ही मारने लगे तो मुझे लगा की देश पर आज वास्तविक खतरा मधरा रहा है !और उस कष्ट की अनुभूति हुई जो मेरी मातृभूमि सदियों से सह रही थी ! जब श्री अटल जी ने संयुक्त राष्ट्र संघ में मेरे दर्शन सम्पूर्ण विश्व को कराये थे तो मुझे लग रहा था की मै भी अब इस सखा की सदस्य बन जाउगी !
लेकिन आज की इस व्यस्ततम दुनिया में मुझे नहीं लगता की मेरा वह सपना कोई पूरा कर पायेगा !जो करने वाला था वो असमर्थ हो गया है और जिसको सौपा गया था उसने मेरा विनाश करने की ठान रखी है! मुझे आज मेरी जन्मभूमि में ही कोई सरन देने वाला नहीं है कोई नहीं है जो मेरी दुःख भरी किलकारियों को कोई सुन सके !सब के सब मुझे कष्ट देने में लगे है.....................................................
महाराष्ट्र विधान सभा में मेरी बेइज्जती को सभी ने ख़ुशी ख़ुशी सह लिया ! किसी महान व्यक्तित्व ने मेरी पुरानी छवि को दोबारा वापस दिलाने का सहस किया था लेकिन मेरे ही भाइयो और उपासको ने उस व्यक्तित्व को ऐसा करने का दंड दे डाला !
आखिर इनकी क्या इच्छाए है जो ये मेरी बलि चढा कर पाना चाहते है !यदि ये मेरी वजह से कष्ट में है तो मुझसे कह दे तो मै अपने भाइयो,माताओ, गुरुओ,और देश्वशियो के लिए अपना भी बलिदान कर दुगीं ! lekin मुझे ऐसा भारत चाहिए जो विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र हो जिश्मे तनिक भी बधाये न हो !
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"घोर कलयुग का सामना करती राष्ट्रभाषा के विचार"
प्रस्तुतकर्ता-- अंकुर मिश्र ''युगल''
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पत्रकारिता की ''परिभाषा'' थी 'श्री प्रभाष जोशी जी' ..................अंकुर मिश्र ''युगल ''


हैदराबाद का भारत -आस्ट्रेलिया एकदिवशीय क्रिकेट मैच हम सबने देखा होगा ! उसके मनोरंजक पालो का आनंद भी लाभागाब सबने लिए ही होगा , लेकिन अंततः मैच मेंहमारी हार हमारे लिए शर्मनाक थी , जो की एक वास्तविक भारतीय नागरिक को सदमा दे गयी जो इस विजय मैच की पराजय स्वीकार न कर सके!जी हाँ यह वास्तविक भारतीयता की पहचान है जो वरिष्ठ पत्रकार ''श्री प्रभाष जोशी जी '' जी के अंडार थी !मई उनके बारे में कुछ ज्यादा नहीं जनता हूँ ,न ही उनसे आज तक किसी प्रकार की वार्ता हुई है , लेकिन मैंने उनके बारे में समाचार पत्रों में पढ़ा है !पत्रकारिता की दुनिया के बेताज बादशाह और मेरे आदर्श है वो !वो कभी भी व्याक्ति विशेष पर टिपण्णी न कर के एक व्यापक पाठकगण पर लिखते थे!उनका कहना था की पत्रकारिता में स्पष्ठ पक्ष लेना चाहिय ! किसी विषय पर लिखते हुए पहले दिमाग में साफ होना चाहिए की हमारा स्टैंड क्या है ? वे असाधारण कॉपी एडिटर थे ख़राब से ख़राब कॉपी को शुधर कर शानदार बना सकते थे , वे पलक झपटे ही हेडिंग शुझा सकते थे ! वे प्रत्येक क्षेत्र में लेख लिखने में सखम थे ! उनके दिमाग में नए ज़माने के नए अख़बारों की योजनाये चलती रहती थी !वो ऐसे पत्रकार की कल्पना करते थे ,जो एक आयामी न हो ,बल्कि संपूर्ण पत्रकार हो ,जैसे की वो खुद थे !महानता के बावजूद वो सरल स्वाभाव के नहीं थे ,वो काफी जटिल और टेढ़े थे !वो यह बात जानते थे और इसे बदलना भी नहीं चाहते थे !उनका मानना था की मनुष्य को अपने सिद्धांतों और स्वाभाव के साथ समझोता नहीं करना चाहिए अंतसमय में वो आज कल की पत्रकारिता से काफी विचलित थे और उस पर हमेशा टिपण्णी करते रहते थे !और इन्ही विचारों के साथ उनका ............. स्वर्गवास हो गया !हमे चाहिए की उनके स्वप्नों और विचारों को हम पूरा करें !पत्रकारिता को हम उस मुकाम पर ले जाए जहाँ की उन्होंने कल्पना की थी!हमारे द्वारा उस महान पत्रकार को यही वास्तविक श्रद्धांजली हो सकती है!

''राष्ट्रिय एकता'' भारत को ''इंद''होने से बचा सकते है ......अंकुर मिश्र''युगल''



अखंड ज्योति के रूप में देदिव्यमन विश्वके विकसित राष्ट्रों की नजर वर्तमान के केवल और केवल भारत पर है यह यथार्तातः सत्य है क्योकि भारत ऐसा रास्त्र है जो पूर्ण रुपें सम्प्रभुत्व है प्रत्येक पहलु मजबूत है!लेकिन हमारी कमी जो अनादी कल से चली आ रही है ''आपसी फूट'' ! कहते है अनेकता में एकता का देश है भारत , लेकिन वास्तविकता को महसूस करिए समाज में चल रही भ्रस्ताचारिता से परिपूर्ण कुतनितियो को देखिये लोकतान्त्रिक भारत की रास्ट्रीय व राज्यीय सरकारों को देखिये ,लोगो के पारिवारिक क्लेशो को देखिये नगरीय, राज्यीय आपसी ladaiyo को देखिये , नजर डालिए उन पहलुओ पर जो भारत को अन्दर ही अन्दर खोखला किये जा रहे है और करिए एक दिन वह क्षण अवश्य आयेगा जब देश को देखने वाले देश के रखवाले बन जायेगे और हम उनके नौकिअर ! अतः अज की भारतीय स्थिति को सुधारने के लि कृष्ण , राम , हरीश्चन्द्र के जन्म लेने इ नहीं बल्कि उनके आदर्शो पर चलने वाला बनाकर भारत की ''इन्दीयस्थिति को बचाया जा सकता है ! रास्ट्रीय एकता केवल वह शब्द है जो हमारी प्रत्येक समस्या का निदान है , गरीबो के पेट का भोजन है ,बीमारियों की दावा है, बेरोजगार कारोजगार है ! अतः स्पस्ट है की रास्ट्रीय एकता द्वारा ही हम भारत को ''इंद''होने से बचा सकते है ......Ankur mishra ''Yugal''

संसार के सन्मुख अपनी अत्यधिक बड़ाई करना सबसे बड़ी मुर्खता है !-अंकुर मिश्र''युगल''


संसार के सन्मुख अपनी अत्यधिक बड़ाई करना या किसी बात को अत्यधिक बदकार बताना ही सबसे बड़ी मुर्खता है ! मनुष्य को केवल सत्य ही समाज के सन्मुख प्रस्तुत करना चाहिए ! उसमे अपनी असत्य जोड़ कर मनुष्य एक तो बहुत बड़ा पाप करता है और दूसरा मनुष्यों को भ्रमित करता है ! जो मनुष्य असत्य को साथ लेकर जीवन व्यतीत करता है वो जीवन में असत्यवादी व असफलता की श्रेणी ही प्राप्त करता है ! संसार में यथार्थ सत्य का एक न एक दिन तो ज्ञान होना तय है , तब मनुष्य झूट क्यों बोलते है ! अपने आपको संसार की नजरो में क्यों झुकाते है !अपने एपी को पाप में क्यों डालते है ! मनुष्य नौकरी, पढाई, व्यापर, धन, मकान, आदि क्षेत्रो में लम्बी-लम्बी दंगे हांककर मनुष्य के सामने ही अपनी छवि क्यों ख़राब करते है जिस क्षेत्र में उसे एक भी उन्नति नहीं मिलनी है अतः प्रत्येक मनुष्य यथार्थ सत्य का ही ज्ञान समाज को करना चाहिए ! जिससे समाज में सत्य की प्रतिष्ठा स्थापित होने के साथ-साथ पुण्यो की प्राप्ति होती है !
अंकुर मिश्र''युगल''

राष्ट्रपिता ''बापू'' के नम एक पत्र ............................


पूज्यनीय बापू ,
सादर चरणस्पर्श ।
हम इस कर्मभूमि पर दुरुस्त है और आशा करते है की आप भी अपने संसार में दुरुस्त होगे ! आपकी याद में देश सूना सा होता जा रहा है !
देश के संचालक देश्वशियो की परवाह नही करते है उन्हें तो विकसितो
और अमीरों को और विकसित और आमिर करना है ! देश की गरीबी , देश की सुरक्षा , देश के स्वाभिमान , देश के गौरव की उन्हें परवाह नही है!
आपके के लिए दुखद समाचार है की आपका ''नमक कानून '' निरर्थक सा होता जा रहा है ! आपके द्वारा दिए गए
हथियार ''सत्य'' और ''अहिंषा '' के बारे में तो आपको पता ही होगा की इन हथियारों को तो विदेशियों को बेच दिए है !आपका रामराज मुझे वास्तविक धरातल में लागू होता मुमकिन नही दिख रहा है ,,क्योकि आज की दुनिया और आज की राजनीती में ''रामराज '' का मतलब कुछ दूशरा ही
है !
आज यहाँ न तो न्याय है और न ही समानता और आदर्श आचरण की तो कोई गुनजिस नही है १ चारो ओरबश एक ही होड़ है .........
=>मेरी जात तेरी जात से उची है;
=>मेरा धर्म श्रेष्ठ है;
=>मई तुमसे अच्छा और सच्चा हू
=>मेरा स्तेतश तुमसे बड़ा है;
=>मई सर्वश्रेष्ठ हू!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
आपको उपर्युक्त बाते जानकर कास्ट तो होगा क्योकि आपका देश आज एक विलक्षण स्थिति में है लेकिन आज अहि सत्य है ,यह सत्यता तो क्षणिक है वास्तविकता तो अद्भुत है ! बापू अब एपी का ही सहारा है ,कृपया अपनी शक्तिया हमारे अन्दर शामाहित करे !
अंत में एक दुर्लभ बात बताना चाहूगा की अमेरिकी राष्ट्रपति ''ओबामा दादू ''आपको खाने पर आमंत्रित करना चाहते है लेकिन मेरी आपसे गुजारिश है की एपी उनका अमात्रं जरा सोच-विचार कर स्वीकार करियेगा कही इसमे भी उनकी कोई कूटनीति न हो !
धन्यवाद ,पत्र संभाल के रखियेगा ! शेष अगले पत्र में .......................
आपका
अंकुर मिश्रा "युगल''

Our Great Doctor "KALAM"................

मैनें देखा एक डाक्टर, जो है बडा होशियार
बहुत ही सीधा
, सरल और ईमानदार
ना दवाई ना गोली
, बस बोले मीठी बोली
जादूगर है वो कैसे
, गिन लेते है तारे ऐसे
सूर्य को कर देते भाग
, गृहो को मिलादे एक साथ

जिन्हें है चांद तारो पर जानें की आस
उनके लिये वो रॉकेट बनाते खास
क्या आप जानते है
, कौन है वे व्यक्ति महान
जो है झरने जैसे शीतल
, और पहाड ज़ैसे महान
उनका नाम है डाक्टर ए
.पी.जे. अब्दुल कलाम.

उनका नारा -हर दिये को जलने दो
हर बच्चे को पढने दो
कडी मेहनत से ना कोई मरता
आओ सोचे और उन्नती करे

नासमझी की तबाही से बचे

........PYAR Vs. COLLEGE STUDY........


प्यार का बोल bala vartman समय में बहुत ज्यादा है , आज कल प्यार तो mahej एक shauk bankar रह gya है ! इस jhoothe प्यार में no yuvak itana tallin हो हो गए है की उनको shiksha के बारे में sochane का भी समय nikalana मुश्किल हो गया है ,
आज nao yuvak इस jhoothe प्यार jiski buniyad bhog पर राखी हुई है , में पढ़ कर shiksha को khote जा रहे है inko तो प्यार का vastavik arth भी नहीं पता है shiksha हमारे jivan में sadgun laati है siksha के द्वारा ही हम samjhte हैं की प्यार vastaw में है क्या isse के द्वारा ही manushy vivekvan banata है jisse की usme achchha bura samjhne की chhmata utapann होती है vivekvaan manushy ही प्यार का vashtvik arth samjh sakata है , प्यार की utapatti ही siksha से हुई है siksha के द्वारा ही हमारे shabhyata और sanskrati का vikash हुआ है , प्यार vahi manushy कर सकता है जो प्यार का vashtavik arth janta हो और प्यार के vashtvik arth का gyan vivek के द्वारा ही होता है और vivek का vikash siksha के द्वारा होता है ath siksha ही shreshth है प्यार तो sikha की utapatti है
प्यार का vastvik arth bhog नहीं tyag है और tyag एक vivekvan manushy ही कर सकता है
1 aadhunik प्रेम , प्रेम नहीं apitu bhog है और इस adhunik प्यार पर जो भी guman karata है voh murkh है , ath प्यार को नहीं siksha को अपने dilo dimag में basana chahie jiske पास vivek होगा vahi प्यार का vastvik arth समझ paega और sachcha premi बन paega kyuki siksha ने ही हमारे sanskrati और sbhyata को vikshit किया है एक vivek वन manushya ही सबसे प्यार से बात karega sabko प्यार से dekhega irshya और dwesh उस पर havi नहीं हो paenge ath हमें siksha पर dhyan dena chahie हमारे jivan के vikash hetu siksha mahatwpurn है

Happy teacher'S Day- ANKUR 'Yugal' MISHRA


It was eve of the Republic Day of 1967. (25th of Jan). My husband and myself were listening to the broadcast to the nation by the then President of India over the newly purchased radio set of Philips Maestro II, in Jaipur. Kamat was very much touched by the scholarship farsightedness, concern for his country, ridden with fissiparous tendencies and above all clear voice and fluency in English, high marks of oratory. "Which country in the world today can boast of such a genius as our President?" -- was his spontaneous outburst. Kamat had just returned after a four-year-stay in United States of America and a tour of the European countries. That was the address of Dr. Sarvepalli Radhakrishnan, Second President of the Indian Republic.
Corbis-Bettmann/Kamat's PotpourriSarvepalli Radhakrishnan (1888-1975)Radhakrishnan was a freedom fighter and a great philospher. He serverd as the President of India from 1962-1967
Born in a conservative family of Tiruttani village in Chittor district of Andhra Pradesh in 1888, Radhakrishnan had education in Tirupati, Vellore and finally in Madras. Married at 18, he continued his studies and mastered Sanskrit, Hindi, English, besides his mother tongue Telugu. Topics pertaining to philosophy, education, culture, and literature always attracted him and his attainment in these fields is reflected in all his writings. He established himself as a sound scholar in the field of philosophy at a very young age, and as a teacher par excellence. He taught at several Indian universities and was the first Indian Professor at Oxford, and taught philosophy and ethics.
An authority on comparative religion and ethics, he has several works of international standard to his credit, some of which are 1) The reign of religion in contemporary philosophy 2) Eastern religions and western thought 3) Hindu view of life and 4) Two volumes on Indian Philosophy. He has besides translated into English, Brahmasutras, Upanishads and Bhagavadgita. Many universities bestowed honours and doctorates on him, important amongst them being those of Pennsylvania, Ireland, Teheran and Moscow. Knighthood of England came as early as 1931. He visited several countries, where he was a draw by his tall, slim and stately appearance with his typical dress of immaculate, dhoti, long coat and turban, excellent bearing and oratory. Only two incidents of his popularity as a teacher and his concern as a humanist could be recollected.
Prof. A.N. Moorthy Rao who was a student of Radhakrishnan at Mysore, records an unforgettable event of the send-off given to the learned professor when he accepted Professorship at Calcutta University and was arranging for departure. That day (1920) all the students gathered at Prof. Radhakrishnan's residence and there was no chance for him to meet even his near and dear friends. One group of students took the job of decorating the coach with flowers. Another group went to Railway Station and obtained permission of the stationmaster to decorate the compartment in which their beloved Guru was traveling. Flower garlands were put on the seat, cushions, door & windows. From everywhere the students converged on the railway platform. The horses of the coach which was to take the professor to the Railway Station were unleashed and students themselves pulled the coach, by turns from his residence. There was keen competition to “drive” the master!. There was huge cry of “Radhakrishnanji Ki Jai!” as the train started moving at snail-pace. Many cried. Perhaps the learned professor's eyes also were wet.
This unprecedented send off to a 'commoner' in Maharaja's Mysore left the Railway staff and the commoners flabbergasted. Many years later, when he became Vice-President of India, he fondly recollected the touching farewell to a friend of Mysore. He had exceptional memory and remembered events and students after decades.
He was the only ambassador, the Soviet leader Stalin, had allowed to present his credentials. Prof. Radhakrishnan, was not at all willing to accept this post in a very cold country but Nehru, the Prime minister coaxed him. At the end of the tenure Radhakrishnan, went to the ailing Dictator to bid him farewell. He told Stalin that an emperor in India, after a bloody victory, renounced war and became a monk. (he referred to Ashoka the Great "who knows what may happen to you!" The professor exclaimed. Stalin smiled and said that miracles do happen. He himself had been in a theological seminary for five years! Before parting, Radhakrishnan stroked the back of the great Dictator, and wished him long life. Stalin was very much touched and admitted that here was the first person, who treated him like a human being and not as a monster! He said, "I am sad, you are going. . . . .I have not long to live. . ." He died shortly thereafter.
Many dignitaries who worked with Dr. Radhakrishnan remember his devotion to duty, punctuality, patience, faith in God and man. He was embodiment of Trimurti and academician, writer and statesman put together.
Plato's concept of Philosopher-King was realized in him in a magnified form. He headed the greatest republic. September 5th, the birthday of this great Indian Savant is observed as "Teachers Day". The teacher in ancient Indian context is next only to God.

''HAPPY TEACHERS DAY TO ALL OF YOU''

क्यो हो रहा है ''उर्जावान'' नेताओ का ह्रास ....अंकुर मिश्रा




भारतीय राजनीती पर नजर डाले तो वैसे ही वो उर्जविहीन हो चुकी है उसमे छणिकनेता ही ऐसे है जो देश काजनीति करते है ,शेष नेता तो स्वयं की राजनीति में लगे हुए है ! aj उसी छणिक नेताओ की list khali होती ja रही है तो apko क्या लगता aj देश को वो teta chalayege जो sichhchha को बिल्कुल nirarthak करते ja रहे है या वो जो देश का सौदा videsiyo के sath करते हैं ! aj देश को Hariyana के mukhyamantri v reddi जैसे नेताओ की जरुरत देश को है परन्तु देश की गृहदशा को पता नही कौन से नक्षत्र लगे है जो देश के देशsaputo का ''अंकुरण'' तो dur unake vinash को tatpar है ! Reddi देश को sambhalne वाले mahan नेता थे jinhone rajnitigya होकर नही बल्कि samajsevi होकर andhrapradesh में kary kiha है लेकिन घोर kalyug की वजह से satyug के नेताओ के देश utthan का beej kha ''ankurit'' हो sakata है ! यदि देश को घोर kalyug के vinash से bachana है reddi जैसे नेताओ का जन अत्यन्त ही dukhad है !
अंत में y s reddi को sradhdhanjali .....................................
अंकुर मिश्रा

प्रगति पथ पर बढ़ते कदम.....................


मानते है प्रगति पथ पर हम बहुत आगे बढे हो,

बदलो से और ऊपर चाँद-तारो पर चढ़े हो !

जलधि अम्बर एक करके स्वर्ग धरती पर बनाए ,

और मरुस्थल पर भी तुमने मृदु अम्बु के अंचल बहाए !

ब्रह्म का नितशोध करके ब्रह्म ज्ञानी तुम कहाए ,

मौत के मुख से भी जिंदगी तुम वापस ले आए !

चाहते क्या कोकिला भी गीत अब गए नही ,

क्या मधुर पुष्पों के उपवन है तुम्हे भाए नही !

नाज से मुक्ति की ऐसी एक दुनिया बनाओ ,

शान्ति हो सदभाव हो विध्वंश के सभ नाश हो!!

By

Ankur ''Yugal'' Mishra

''जिज्ञासा'' दिमाग को चलायमान बनाती है |


आज हर सवाल का जवाब इन्टरनेट पर उपलब्ध है ! अणु, परमाणु, ग्रह, उपग्रह, आत्मा, ईश्वर, ओबामा, ब्रिटनी, अमिताभ जिसके बारे में पूछो पलक झपकते ही जवाब मिल जाता है इससे हम संतुष्टि रुपी उपहार भी प्राप्त कर लेते है बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक, अब माँ बाप और गुरु की आवश्यकता नहीं समझाते हैं न उनसे कुछ जानने की इचछा करते हैं इससे माँ बाप और गुरु भी खुश हैं की अब बच्चों के सवाल तंग नहीं करते हैं ! इंटरनेट ने यदि थोड़ा भी छोड़ दिया तो बांकी समय टीवी के लिए संयमित है !पहले घरो में जिज्ञासा का माहोल होता था हर कोई एक दूसरे से कुछ न कुछ जानने की कोशिश करता था लोगों को सवालों के जवाब खोजने पड़ते थे, कभी कभी जटिल सवालो में घनघोर विवाद तक पैदा हो जाते थे जिसके उपरांत अनेकानेक विचार उत्पन्न होते थे किताबों व् कहानियों पर वाद विवाद सामान्य था ! इस प्रकार के क्रिया कलापों से दिमाग हमेशा चलायमान रहता था लेकिन आज इस चलायमान दिमाग के आगे इन्टरनेट रुपी मंदक का पहरा है!आज जिज्ञासा की अभिलाषा सिर्फ इन्टरनेट से समाप्त हो जाती है! वेदों कथित है की ज्ञान का विस्तार व्यक्तित्व का विकास और मानवीय गुन ख़ुद को जानने के बाद ही आते है " अथातो ब्रह्म जिज्ञासा " jigyasa ke bad manushya ke andar prerna , samvedna , karuna , vinamrata , namrata aur sarashata aati hai ! jo ahankar bhedbhav shoshan aur ashanshkratic वातावरण को अंकुरित होने से रोकती है ! अतएव दिमाग को चलायमान रखने हेतु तकनिकी होने के साथ प्रकृति को न भूले तो अच्छा होगाAnkur Mishra'Yugal'[Unique Group,India]

"अतीत" पर गर्व नही "भविष्य" पर चिंतन करें....................



अक्सर लोग अतीत की सुनहरी गाथा में ख़ुद को गम कर लेते है !वह यह भूल जाते है की उनके सामने भविष्य पड़ा है ! जहाँ से उनकी सफलता की कहानी लिखी जाती हैं ! लेकिन भविष्य की योजना बनाकर वह अतीत के उन सुनहरे पालो को यद् करते है जो उन्हें सुकून देता है ! अगर हममे कोई खराबी है तो हम अपने पुरखो को दोष देते हैं ! यही कारन है की हम अपनी कमियों की तरफ़ ध्यान न देकर अपनी अश्फलता का दोष औरो के सर मध् देते है !ज्यादातर लोगो के मन में यही भावना होती है जबकि यैसे लोग जो दूरदृष्टि रखते है और अपने लक्ष्य के प्रति इमानदार होते है ! वे हमेशा भविष्य के बारे में सोचते है और बातें करते हैं ! उनका तर्क यह होता है की जो कुछ हो चुका है , उस पर गर्व करना बेकार है अपने अतीत से उत्साहित होकर हमें ऐसे कम करने चाहिए ताकि भविष्य अतीत से अच्छा हो ! यही कर्ण है की जापान प्रित्येक हर के बाद पहले से शक्तिशाली हो जत्ज है !एक सकारात्मक दृष्टिकोण स्वफलता के लिए प्रिथम आवस्यकता है ! हमें अतीत में न रहकर भविष्य के बारे में सोचना चाहिए ! यदि हम ऐसा नही करते है तो केवल स्वप्न आगे बढ़ते रहते है !अतीत में खोए न रहकर वे भविष्य के बारे में सोचते हैं ! अतीत में न रहकर एक लाभ और है की हम नई तकनीक , नई दिशा और नए ज्ञान का ''अंकुरण'' कराने में लाभ प्राप्त करते है ! इसमे नै प्रेरणे मिलाती है और हम और अधिक जोश से कम करते है ! एपी भी प्रयत्न करे और अतीत से निकलकर भविष्य के बारे में सोचे ताकि सफलता आपके कदमो को स्पर्श करे ! ''अंकुर मिश्रा ''युगल

ये कैसी आज़ादी है?

हमने आज़ादी की ६२वीं सालगीरह भी मना ली.पर क्या हम सही मायने में आज़ाद हैं? ये कैसी आज़ादी है की आज अपने देश का कोई भी बच्चा १० मिनट शुद्ध हिन्दी में बात भी नहीं कर सकता . देश की विधी व्यवस्था आज भी अंग्रेजों के मुताबीक चल रही है. जब हम आज़ादी के पचासवीं ज़श्न मनाने वाले थे तब तक हमारे देश का बजट शाम के पाँच बजे शुरु होता था इसलिये क्युँकि हमें अपना बजट अँग्रेजों को दिखाना होता था और उनके यहाँ उस वक्त दिन के ११ बज रहे होते थे जो उनके सदन की कार्यवाही शुरु होने का समय है. फिर सदन में इसका विरोध हुआ और बजट का समय बदला गया.हमरे देश मे अंग्रेजों ने अपने यहाँ की शिक्षा व्यवस्था लागु की ये १८३५ की बात है जब भारत में गवर्नर जनरल बेंटिक था.उसने शिक्षा को बढावा देने के नाम पर जगह जगह विद्यालय और महाविद्यालय खोले ताकी वो हमारे देश को अपने अनुसार ढाल सकें पर हमारे तब के नेता आज जैसे नहीं थे उन्होंने इसका विरोध किया और जगह जगह राष्ट्रीय विद्यालय और महाविद्यालयों का निर्माण किया.बनारस और इलाहाबाद में विद्यापीठ खोले गये. अलीगढ में जामिया मिलीया ईश्लामिया खोला गया. रविन्द्रनाथ नें शान्तीनिकेतन में विश्वभारती कि स्थापना की.पर आज आज़ादी के ६२ साल में हमने क्या किया? हर भावी नेता से हर शहर हर गाँव में अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों की माँग की. आखिर ऐसी कौन सी मजबुरी है कि हम अँग्रेजी पढने को विवश हैं? आज आलम ये है की कोई भी अभिभावक अपने बच्चे को सरकारी विद्यालयों में नहीं डालना चाहते कारण ये है कि वहाँ की शिक्षा व्यवस्था ही सही नहीं है. इस बात को खुद देश के सभी शिक्षा पदाधिकारी प्रमाणित करते हैं इनमें से एक भी ऐसे नहीं होगें जिनकी संतान किसी सरकारी विद्यालय मे पढते हों.क्युँ? क्युँकि वो जानते हैं कि वहाँ शिक्षा के नाम पर सिर्फ़ छलावा है और वहाँ पढना या न पढना बराबर ही है तो फ़िर वो अपने बच्चे के भविष्य के साथ कैसे खेलेंगे? विडंबना ये है की आज़ादी से पहले शिक्षा का जो महत्व था आज वो अदृश्य हो गया है.गुलाम भारत में वो संवेदना थी कि वो सबके भविष्य को समान दृष्टी से देखते थे और आज़ाद भारत तो दृष्टीहीन है! आज़ादी के समय २४% पुरुष और७% महिलायें शिक्षित थीं पर आज की अपेक्षा तब के भारतीय ज्यादा देशभक्त, ज्यादा शिक्षित और सभ्य थे तभी तो उन्होंनें देश के लिये अपने जान तक की बाजी लगा दी और आज के शिक्षित लोग धन के लिये देश की बाज़ी लगा दे रहे हैं.
एक समय था जब ‘भारत छोडो’ का नारा हमारे देश में गुँजता था और आज की स्थिती ऐसी हो गयी है देश के युवा अपने देश को छोडकर दुसरे देश जाने को आतुर रहते हैं और माता-पिता इसी में अपने को गौर्वांवित महसुस करते हैं.देश के करोडों रुपये विदेशी बैंकों में काला धन के रुप में जमा है और हम इतने बेबस , इतने लाचार और इतने मजबुर हैं कि अब तक सिर्फ़ योजना बन रही है और शायद अभी सालों ये योजना बनती रहेगी.विदेशी शक्तियों से लडनें के लिये हमारे पास सब कुछ था, जोश और ज़ुनुन से हम लबरेज़ थे.उत्साह में कोई कमी न थी. और आज तब से ज्यादा समृद्ध हैं सभ्य हैं शिक्षित हैं पर फ़िर भी भ्रषटाचारियों के खिलाफ़ कुछ नही कर पा रहे हैं.शायद किसी नें सच ही कहा है:
हमें अपनों नें मारा गैरों में कहाँ दम थाहमारी नईया तो वहाँ डुबी जहाँ पानी कम था........