प्रगति पथ पर बढ़ते कदम.....................


मानते है प्रगति पथ पर हम बहुत आगे बढे हो,

बदलो से और ऊपर चाँद-तारो पर चढ़े हो !

जलधि अम्बर एक करके स्वर्ग धरती पर बनाए ,

और मरुस्थल पर भी तुमने मृदु अम्बु के अंचल बहाए !

ब्रह्म का नितशोध करके ब्रह्म ज्ञानी तुम कहाए ,

मौत के मुख से भी जिंदगी तुम वापस ले आए !

चाहते क्या कोकिला भी गीत अब गए नही ,

क्या मधुर पुष्पों के उपवन है तुम्हे भाए नही !

नाज से मुक्ति की ऐसी एक दुनिया बनाओ ,

शान्ति हो सदभाव हो विध्वंश के सभ नाश हो!!

By

Ankur ''Yugal'' Mishra

''जिज्ञासा'' दिमाग को चलायमान बनाती है |


आज हर सवाल का जवाब इन्टरनेट पर उपलब्ध है ! अणु, परमाणु, ग्रह, उपग्रह, आत्मा, ईश्वर, ओबामा, ब्रिटनी, अमिताभ जिसके बारे में पूछो पलक झपकते ही जवाब मिल जाता है इससे हम संतुष्टि रुपी उपहार भी प्राप्त कर लेते है बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक, अब माँ बाप और गुरु की आवश्यकता नहीं समझाते हैं न उनसे कुछ जानने की इचछा करते हैं इससे माँ बाप और गुरु भी खुश हैं की अब बच्चों के सवाल तंग नहीं करते हैं ! इंटरनेट ने यदि थोड़ा भी छोड़ दिया तो बांकी समय टीवी के लिए संयमित है !पहले घरो में जिज्ञासा का माहोल होता था हर कोई एक दूसरे से कुछ न कुछ जानने की कोशिश करता था लोगों को सवालों के जवाब खोजने पड़ते थे, कभी कभी जटिल सवालो में घनघोर विवाद तक पैदा हो जाते थे जिसके उपरांत अनेकानेक विचार उत्पन्न होते थे किताबों व् कहानियों पर वाद विवाद सामान्य था ! इस प्रकार के क्रिया कलापों से दिमाग हमेशा चलायमान रहता था लेकिन आज इस चलायमान दिमाग के आगे इन्टरनेट रुपी मंदक का पहरा है!आज जिज्ञासा की अभिलाषा सिर्फ इन्टरनेट से समाप्त हो जाती है! वेदों कथित है की ज्ञान का विस्तार व्यक्तित्व का विकास और मानवीय गुन ख़ुद को जानने के बाद ही आते है " अथातो ब्रह्म जिज्ञासा " jigyasa ke bad manushya ke andar prerna , samvedna , karuna , vinamrata , namrata aur sarashata aati hai ! jo ahankar bhedbhav shoshan aur ashanshkratic वातावरण को अंकुरित होने से रोकती है ! अतएव दिमाग को चलायमान रखने हेतु तकनिकी होने के साथ प्रकृति को न भूले तो अच्छा होगाAnkur Mishra'Yugal'[Unique Group,India]

"अतीत" पर गर्व नही "भविष्य" पर चिंतन करें....................



अक्सर लोग अतीत की सुनहरी गाथा में ख़ुद को गम कर लेते है !वह यह भूल जाते है की उनके सामने भविष्य पड़ा है ! जहाँ से उनकी सफलता की कहानी लिखी जाती हैं ! लेकिन भविष्य की योजना बनाकर वह अतीत के उन सुनहरे पालो को यद् करते है जो उन्हें सुकून देता है ! अगर हममे कोई खराबी है तो हम अपने पुरखो को दोष देते हैं ! यही कारन है की हम अपनी कमियों की तरफ़ ध्यान न देकर अपनी अश्फलता का दोष औरो के सर मध् देते है !ज्यादातर लोगो के मन में यही भावना होती है जबकि यैसे लोग जो दूरदृष्टि रखते है और अपने लक्ष्य के प्रति इमानदार होते है ! वे हमेशा भविष्य के बारे में सोचते है और बातें करते हैं ! उनका तर्क यह होता है की जो कुछ हो चुका है , उस पर गर्व करना बेकार है अपने अतीत से उत्साहित होकर हमें ऐसे कम करने चाहिए ताकि भविष्य अतीत से अच्छा हो ! यही कर्ण है की जापान प्रित्येक हर के बाद पहले से शक्तिशाली हो जत्ज है !एक सकारात्मक दृष्टिकोण स्वफलता के लिए प्रिथम आवस्यकता है ! हमें अतीत में न रहकर भविष्य के बारे में सोचना चाहिए ! यदि हम ऐसा नही करते है तो केवल स्वप्न आगे बढ़ते रहते है !अतीत में खोए न रहकर वे भविष्य के बारे में सोचते हैं ! अतीत में न रहकर एक लाभ और है की हम नई तकनीक , नई दिशा और नए ज्ञान का ''अंकुरण'' कराने में लाभ प्राप्त करते है ! इसमे नै प्रेरणे मिलाती है और हम और अधिक जोश से कम करते है ! एपी भी प्रयत्न करे और अतीत से निकलकर भविष्य के बारे में सोचे ताकि सफलता आपके कदमो को स्पर्श करे ! ''अंकुर मिश्रा ''युगल

ये कैसी आज़ादी है?

हमने आज़ादी की ६२वीं सालगीरह भी मना ली.पर क्या हम सही मायने में आज़ाद हैं? ये कैसी आज़ादी है की आज अपने देश का कोई भी बच्चा १० मिनट शुद्ध हिन्दी में बात भी नहीं कर सकता . देश की विधी व्यवस्था आज भी अंग्रेजों के मुताबीक चल रही है. जब हम आज़ादी के पचासवीं ज़श्न मनाने वाले थे तब तक हमारे देश का बजट शाम के पाँच बजे शुरु होता था इसलिये क्युँकि हमें अपना बजट अँग्रेजों को दिखाना होता था और उनके यहाँ उस वक्त दिन के ११ बज रहे होते थे जो उनके सदन की कार्यवाही शुरु होने का समय है. फिर सदन में इसका विरोध हुआ और बजट का समय बदला गया.हमरे देश मे अंग्रेजों ने अपने यहाँ की शिक्षा व्यवस्था लागु की ये १८३५ की बात है जब भारत में गवर्नर जनरल बेंटिक था.उसने शिक्षा को बढावा देने के नाम पर जगह जगह विद्यालय और महाविद्यालय खोले ताकी वो हमारे देश को अपने अनुसार ढाल सकें पर हमारे तब के नेता आज जैसे नहीं थे उन्होंने इसका विरोध किया और जगह जगह राष्ट्रीय विद्यालय और महाविद्यालयों का निर्माण किया.बनारस और इलाहाबाद में विद्यापीठ खोले गये. अलीगढ में जामिया मिलीया ईश्लामिया खोला गया. रविन्द्रनाथ नें शान्तीनिकेतन में विश्वभारती कि स्थापना की.पर आज आज़ादी के ६२ साल में हमने क्या किया? हर भावी नेता से हर शहर हर गाँव में अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों की माँग की. आखिर ऐसी कौन सी मजबुरी है कि हम अँग्रेजी पढने को विवश हैं? आज आलम ये है की कोई भी अभिभावक अपने बच्चे को सरकारी विद्यालयों में नहीं डालना चाहते कारण ये है कि वहाँ की शिक्षा व्यवस्था ही सही नहीं है. इस बात को खुद देश के सभी शिक्षा पदाधिकारी प्रमाणित करते हैं इनमें से एक भी ऐसे नहीं होगें जिनकी संतान किसी सरकारी विद्यालय मे पढते हों.क्युँ? क्युँकि वो जानते हैं कि वहाँ शिक्षा के नाम पर सिर्फ़ छलावा है और वहाँ पढना या न पढना बराबर ही है तो फ़िर वो अपने बच्चे के भविष्य के साथ कैसे खेलेंगे? विडंबना ये है की आज़ादी से पहले शिक्षा का जो महत्व था आज वो अदृश्य हो गया है.गुलाम भारत में वो संवेदना थी कि वो सबके भविष्य को समान दृष्टी से देखते थे और आज़ाद भारत तो दृष्टीहीन है! आज़ादी के समय २४% पुरुष और७% महिलायें शिक्षित थीं पर आज की अपेक्षा तब के भारतीय ज्यादा देशभक्त, ज्यादा शिक्षित और सभ्य थे तभी तो उन्होंनें देश के लिये अपने जान तक की बाजी लगा दी और आज के शिक्षित लोग धन के लिये देश की बाज़ी लगा दे रहे हैं.
एक समय था जब ‘भारत छोडो’ का नारा हमारे देश में गुँजता था और आज की स्थिती ऐसी हो गयी है देश के युवा अपने देश को छोडकर दुसरे देश जाने को आतुर रहते हैं और माता-पिता इसी में अपने को गौर्वांवित महसुस करते हैं.देश के करोडों रुपये विदेशी बैंकों में काला धन के रुप में जमा है और हम इतने बेबस , इतने लाचार और इतने मजबुर हैं कि अब तक सिर्फ़ योजना बन रही है और शायद अभी सालों ये योजना बनती रहेगी.विदेशी शक्तियों से लडनें के लिये हमारे पास सब कुछ था, जोश और ज़ुनुन से हम लबरेज़ थे.उत्साह में कोई कमी न थी. और आज तब से ज्यादा समृद्ध हैं सभ्य हैं शिक्षित हैं पर फ़िर भी भ्रषटाचारियों के खिलाफ़ कुछ नही कर पा रहे हैं.शायद किसी नें सच ही कहा है:
हमें अपनों नें मारा गैरों में कहाँ दम थाहमारी नईया तो वहाँ डुबी जहाँ पानी कम था........