पत्रकारिता की ''परिभाषा'' थी 'श्री प्रभाष जोशी जी' ..................अंकुर मिश्र ''युगल ''


हैदराबाद का भारत -आस्ट्रेलिया एकदिवशीय क्रिकेट मैच हम सबने देखा होगा ! उसके मनोरंजक पालो का आनंद भी लाभागाब सबने लिए ही होगा , लेकिन अंततः मैच मेंहमारी हार हमारे लिए शर्मनाक थी , जो की एक वास्तविक भारतीय नागरिक को सदमा दे गयी जो इस विजय मैच की पराजय स्वीकार न कर सके!जी हाँ यह वास्तविक भारतीयता की पहचान है जो वरिष्ठ पत्रकार ''श्री प्रभाष जोशी जी '' जी के अंडार थी !मई उनके बारे में कुछ ज्यादा नहीं जनता हूँ ,न ही उनसे आज तक किसी प्रकार की वार्ता हुई है , लेकिन मैंने उनके बारे में समाचार पत्रों में पढ़ा है !पत्रकारिता की दुनिया के बेताज बादशाह और मेरे आदर्श है वो !वो कभी भी व्याक्ति विशेष पर टिपण्णी न कर के एक व्यापक पाठकगण पर लिखते थे!उनका कहना था की पत्रकारिता में स्पष्ठ पक्ष लेना चाहिय ! किसी विषय पर लिखते हुए पहले दिमाग में साफ होना चाहिए की हमारा स्टैंड क्या है ? वे असाधारण कॉपी एडिटर थे ख़राब से ख़राब कॉपी को शुधर कर शानदार बना सकते थे , वे पलक झपटे ही हेडिंग शुझा सकते थे ! वे प्रत्येक क्षेत्र में लेख लिखने में सखम थे ! उनके दिमाग में नए ज़माने के नए अख़बारों की योजनाये चलती रहती थी !वो ऐसे पत्रकार की कल्पना करते थे ,जो एक आयामी न हो ,बल्कि संपूर्ण पत्रकार हो ,जैसे की वो खुद थे !महानता के बावजूद वो सरल स्वाभाव के नहीं थे ,वो काफी जटिल और टेढ़े थे !वो यह बात जानते थे और इसे बदलना भी नहीं चाहते थे !उनका मानना था की मनुष्य को अपने सिद्धांतों और स्वाभाव के साथ समझोता नहीं करना चाहिए अंतसमय में वो आज कल की पत्रकारिता से काफी विचलित थे और उस पर हमेशा टिपण्णी करते रहते थे !और इन्ही विचारों के साथ उनका ............. स्वर्गवास हो गया !हमे चाहिए की उनके स्वप्नों और विचारों को हम पूरा करें !पत्रकारिता को हम उस मुकाम पर ले जाए जहाँ की उन्होंने कल्पना की थी!हमारे द्वारा उस महान पत्रकार को यही वास्तविक श्रद्धांजली हो सकती है!