नेता जी “Walks Out” या “Bunk”? : अंकुर मिश्र "युगल"

हम सभी ने स्कूल और कालेजो में “class bunks” तो खूब की होगी कभी इनसे कुछ फायदे हुए होगे और कभी नुकसान लेकिन वो उस स्तर पर भी ठीक नहीं था, ऐसा करने से खुद पर कुछ असर पद हो या न लेकिन उस कार्य से जुड़े अनेक लोगो को जैसे “कालेज प्रोफ़ेसर”, “माता-पिता”, और अन्य अनेक लोगो को कुछ न कुछ फर्क जरुर पड़ा होगा !! लेकिन उस बात पर हम ध्यान नहीं देते क्योंकि वो एक बचपना था और उससे यदि किसी पर सबसे ज्यादा फर्क पड्त था तो वो हम खुद दे !!


लेकिन आज देश के संचालक जब हमारे पैसे से बनी “विधानसभाओ” और “लोकसभा” का अपमान करते है और प्रतिदिन किसी न किसी बहाने से “walks-Out” करते है क्या वो सही है ????
किसी बेतन पर कार्य करने वाले साधारण सख्श के लिए भी कार्य करने की कुछ न कुछ समय सीमा होती है उसे सप्ताह में ५-६ दिन कार्य करने पड़ता है ! लेकिन क्या हमारे देश के मंत्रियो के पास इतना भी काम नहीं है की वो प्रतिदिन घूमने और “Bunk” करने में व्यस्त रहे !
इनका वार्षिक कार्यकाल तो पहले से ही कुछ महीनो का होता है और जो होता है उसमे भी ये अधिकतर समय “walks Out” में रहते है और बहाने होते जनता के तमाम “बिल” !!! अरे जनता का इतना ही ख्याल है तो उस संसद भवन या विधान सभा में बैठकर उस पर बहस करिये न !!
उस बिल की कमियों और अच्छाइयों पर बात करिये न ! उसे जनता के पक्ष में और अच्छा बनाने का प्रयास करिये न ! एक बार ये सोच कर इस पर सोचिये की जो मासिक बेतन आपको दिया जाता है वो किस लिए है, जिन गाडियों में आप घूमते है उसमे “तेल” किसके पैसो का होता है, जिस पड़ को लेकर इतना गुमार है उसे किसने दिया है !!
ये किसी विशेष पार्टी या विशेष व्यक्ति के लिए नहीं बल्कि देश किकी हार उस पार्टी और सदस्य के लिए है जो संसद या विधानसभाओ से किसी भी तरह से जुड़े है ! “पक्ष हो या विपक्ष” दोनो को इस पर सोचने की जरुरत है !!
वर्तमान राजनीती का तो ये हाल है की “पक्ष और विपक्ष” दोनों अपने को दो देशो में रखकर किसी मुद्दे पर बात करते है, जनलोकपाल की बात क्यों करे क्योंकि इसका समर्थन विरोधी पार्टियां कर रही है, वही दूसरी ओर एफडीआई की बात क्यों करे क्योंकि इसका समर्थन सरकार कर रही है ! हमारे महान नेता बस इसी सुविचार में लगे हुए है वो भूल चुके है जिसके काम से वो वहाँ है जिसने उन्हें वहाँ भेजा है, “वो जनता है” !!
इस संसद के “walks-out’ की सबसे बड़ी जिम्मेदार “विपक्षी” पार्टियां है, सरकार तो हमेशा अपनी सोच को ही अंगे बढाना चाहेगी लेकि विपक्ष को भी अपने अधिकार मिले हुए है !
क्या बात न करने से कुछ हल निकल सकते है ? क्या बहस न होने से कोई बिल पास हो सकता है ?
मेरे हिसाब से तो नहीं और होगा भी तो किसी विशेष समूह के अनुसार !
वर्मन की इस प्रणाली को देखते हुए लगता है की संसद और स्थानीय विधान-सभाओ की कार्य करने की प्रणाली में कुछ परिवर्तन आवश्यक है ऐसा करने से देश की दिशा और दशा में दोनों में परिवर्तन आयेगा, महीनो से पड़े “बिलो” में बात होगी, व्यक्तिगत मंत्रिपद की कार्यप्रणाली में बात होगी और अन्य ऐसे कार्य होगे जिनकी आज आवश्यकता है ! जिस तरीके से साधारण व्यक्ति की प्रतिदिन की कार्य की कुछ समय सीमा होती है उसी तरह से “इनके भी कार्य करने की कुछ समय सीमा होनी चाहिए !
यदि दिन में “walks-Out” करें तो रत में अतिरिक्त समय निकालकर इनसे कार्य करवाया जाये !
आखिर ये देश के संचालक है इनके द्वारा पास कराये गए विधेयकों से देश चलता है जनता के लिए “नियम” होते है वो ! इतने बड़े कार्य को इतनी आसानी से कैसे कर सकते है हमारे , हमारे द्वारा चुने गए, हमारे पैसो से पल रहे हमारे “राजनेता”, कुछ “साधारण” से ज्यादा तो करना ही पड़ेगा इन्हें !!

‘काल्पनिक दुनिया’ की गिरफ्त में ‘कल्पनाएँ’ :- अंकुर मिश्र “युगल”


मानव और उसका मन ही भावनाओ की ‘अंकुरण’ की सीमा निर्धारित करता है ! क्या ये सच है ?
सबका उत्तर आयेगा हाँ !!लेकिन आज को देखते हुए अधिकांश बुद्धिजीवियों का उत्तर आयेगा नहीं, और ये सच भी है क्योंकि ऐसा हम पिछले दशकों तक ही कह सकते थे जब तक तकनीकी और ‘इंटरनेट’ की दुनिया से दूर थे ! आधुनिक ‘सर्वे’ भी यही कहते है, मानव के सोचने की छमता में जो गिरावट पिछले २-३ दशको में आई है वह भयावह है, यही रहा तो वो दिन दूर नहीं है जब मानव “तकनीक” का गुलाम होगा ! हम केवल कह ही सकेंगे की “कंप्यूटर बनाया तो मानव ने ही है” कुछ करने में सक्षम नहीं होंगे ! ये सब जानकारियां होने के बावजूद हम जानते है की हम इस भयावह “प्रगति” को रोकेगे नहीं ! और कह भी सकते है अब यह असंभव है ............!!
इस तकनीकी संसार में फिर भी मानव का कुछ न कुछ विकास हो रहा था, उसके अंदर नए विचार उत्पन्न हो रहे थे, दिमाग नाम के लिए नहीं काम के लिए था लेकिन “इंटरनेट” के विस्तार का परिणाम कुछ ज्यादा ही भयावह नजर आ रहा है ! यहाँ से तो परिणाम ये आ रहे है है की मानव में विचारों का ‘अंकुरण’ ही समाप्त हो गया है ! उसने सोचने के लिए भी इंटरनेट के आधुनिक माध्यमों का उपयोग शुरू कर दिया है ! GOOGLE, YAHOO!, REDIFF, MSN, BING & ASK से पूंछ- पूंछ कर मानव चाँद पर पहुँचाने की सोच रहा है, यही कार्क्रम जरी रहा तो यहाँ जानकारी देने वाला कौन बचेगा ! Search Engions की दुनिया में कही एक दिन खुद को Search न करना पड़ जाएँ ! वही दूसरी ओर एक नहीं काल्पनिक दुनिया का निर्माण तेजी से चल रहा है –“Social – Networking” ...!! इस दुनिया में प्रमुख भूमिका निभा रहे है – Facebook, Twitter, Google+, Hi5, MySpace...............इत्यादि ! वैसे आज Facebook अपना अलग संसार ही बसा चुका है, मै समझता हूँ “फरवरी-2004” में चालू हुयी इस दुनिया के बारे में कुछ ज्यादा बताने की जरुरत नहीं है !
आज ये एक ऐसी दुनिया बन चुकी है जहां जिंदगी के दोनों पहलु उपलब्ध है – “ +Ve & -Ve ” ! +ve नजरिये से हम इसका प्रयोग करके दुनिया जीत सकते है, लोग लाभ के नजरिये से देखे तो यहाँ अच्छे-अच्छे बुद्धजीवियों से संपर्क होता है, किसी क्रांति के लिए यहाँ से प्रचार-प्रसार का निशुल्क माध्यम उपलब्ध होता है , किसी व्यापर के व्यापारी-करण में यहाँ से लाभ मिलता है, शिक्षा के इसमें अलग ही नज़ारे है ................और अनेक ऐसे क्रियाकलाप करके हम इस दुनिया से हाथ मिलकर अपनी कल्पनाओ को नयी उड़न दे सकते है !
लेकिन वही अगर इसके दूसरे पहलू पर नजर डालते है तो परिणाम कुछ अच्छे नजर नहीं आते ! आज की युवा-पीढ़ी इस दुनिया में इतनी ज्यादा घुस चुकी है की उसके सोचने के प्राक्रतिक माध्यमों में भी ताला पड़ चुका है, उसका सबसे बड़ा सहयोगी “Google” बन चुका है, उसका सबसे अच्छा दोस्त “Facebook” बन चुका है ! क्या ये युवा-पीढ़ी की उन्नति या उपलब्धि है ?
यहाँ भी बुद्धिजीवियों का उत्तर नकारात्मक ही आता है, यद्यपि उन्होंने इस दुनिया को गलत नहीं बताया लेकिन वो उसके प्रयोग पर प्रतिक्रिया देने से नहीं चुके ! उन्होंने युवाओ द्वारा इसके प्रयोग पर अपनी आपत्ति जताई ! सबसे बड़ी प्रतिक्रिया “समय” पर थी जो अतुल्य दुनिया के लिए अतुल्य है ! और यह सत्य भी है की युवा पीढ़ी अपना समय प्राक्रतिक तरीके से न बिताकर ‘इंटरनेट’ के तरीके से बिता रहे है और जहाँ उन्हें कभी-कभी नकारात्मक परिणाम मिलते है ! Facebook युवा-पीढ़ी के लिए “Time-Pass” का सबसे बड़ा माध्यम बन चुका है ! वैसे Users के आधार “भारत” अभी इस श्रेणी में तीसरे पायदान पर है लेकिन समय के नाजरिय से भारत पहले पायदान पर आता है, जो भारत के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है, उपयोग गलत नहीं है, लेकिन वो सही तरीके से होना चाहिए ! मनुष्य की कल्पना ही एक ऐसा तथ्य है जिसके जरिये दुनिया का अस्तित्व है लेकिन इस काल्पनिक दुनिया के प्रलोभन में यदि कल्पना करना ही बंद कर दिया गया तो क्या इस अस्तित्व को जिन्दा रखा जा सकता है !!
शब्द इतने अपशब्द नहीं लगते जितना इसकी दुनिया में जीवन व्यापन लगता है ! वैसे देखे तो वो सारी काल्पनिक वस्तुए यहाँ उपलब्ध है जिनके जरिये हम मयुशी महसूस नहीं कर सकते !
अब सोचना आपको है की कौन-सी दुनिया किस तरीके से सही है, किस तरीके से आपको जीना है, कल्पनाओ की कल्पनाओ को जिन्दा रखना है या नहीं !!
!! इस सोचनीय सोच पर एक बार सोचियेगा जरुर !!

नजरिये की राजनीती से लड़ता भारत :- अंकुर मिश्र “युगल”

परिस्थितियां तो हमेशा परिवर्तनशील होती ही, लेकिन जब ऐसी परिस्थितियों का सामना जनता को करना पड़े जिसके लिए जनता वाध्य हो और उसे किसी भी परिवर्तन की आशाएं न दिखे तब जनता क्या करे बड़ी दुविधा हो जाती है, इस भ्रम की शिकार जनता किस नजरिये से अपना हित सोचे यह बड़ा ही कथानतम प्रश्न बन जाता है ! आज का भारत कल के भारत से अच्छा है यह कैसे कहे या आने वाले कल का भारत आज के भारत से अच्छा होगा ये कैसे कहे, जब हम आज को अच्छा नहीं बना पा रहे, तो कल की बात करना ही बेकार है !


देश तो लोकतान्त्रिक है, लेकिन क्या यहाँ जरा सा भी लोकतंत्र के सम्मान है! देश सर्वोपरि है, देश को प्रधानमंत्री चलाता है, लेकिन प्रधानमंत्री को कोई और यो चलाता है !!
देश में करोड़ो की संपत्ति बड़े-बड़े पार्को, दार्शनिक स्थलों को बनाने में लगा दिए जाते है, फिर भी देश में करोणो लोग भूखे पेट क्यों सोते है !!
हमसे सुरक्षा के नाम से करोड़ो रूपये वसूले जाते है , फिर भी आतंवादियो को देश के अंदर रखकर उनकी सुरक्षा कराकर उन्ही से बम कांड क्यों करवाए जाते है !!
देश का सफ़ेद पैसा देशीय बैंको में न रखकर विदेशो कला धन बनाकर क्यों रखा जाता है, उसे विदेशो के उन्थान में क्यों लगाया जाता है !!
राजनीती देश के संचालन का सर्वोच्च माध्यम है, फिर भी इस सर्वोच्च स्थान पर “खूनियों”,“भ्रष्टाचारियों” ,”अनपढो” और “बलात्कारियों” को क्यों बैठाया जाता है !!
........................... इत्यादि अनेक ऐसे वाद-विवाद के बिंदु है जिसमे मै और हम की लड़ाई मची हुई है !
आखिर ये कैसा नजरिया है जिसके नीचे खुद को दबाए जा रहे है !
राजनीती के नजरिये पर नजर :-
आखिर इतने वोट किसके लिए पड़ते है “खूनियों”,“भ्रष्टाचारियों” ,”अनपढो” और “बलात्कारियों” के लिए या खुद आत्महत्या करने के लिए ! यहाँ तो राजनीती की परिभाषा ही समझ में नहीं आ पाता और भारत के “वोटर” बन जाते है किस आधार पर, “वोटर” तो ठीक भी है लेकिन यहाँ के “राजनेता” को भी राजनीती की परिभाषा नहीं पता होती और वो मंत्री बन जाता है ! ऐसी स्थिति में बेहद कष्ट के साथ कहना पड़ता है की “हम एक लोकतान्त्रिक देश के निवासी है” ! लेकिन उससे भी ज्यादा काष्ट तब होता है जब हमारा “वोटिंग” का नजरिया हमारे सामने “अंकुरित” होता है ! वो भी ऐसा नजरियाँ जिसमे “देश” के नाम पर वोटिंग का सवाल ही नहीं उठता ! लोग कहते है – वो(राजनेता) “ब्राह्मण”, “क्षत्रिय”, “शुद्र” या “वैश्य” था इसलिए मैंने उसे वोट दिया, वो(राजनेता) भाजपा, कांग्रेस , बसपा ,माकपा, जदयू या सपा का था इसलिए मैंने उसे वोट दिया, वो मेरा रिश्तेदार था इसलिए मैंने उसे वोट दिया वो मेरे घर वोट मांगने आया था इसलिए मैंने उसे वोट दिया .................................................... !
लेकिन इन सबसे ऊपर क्या कभी किसी ने सोचा की कौन है जो “भारत” के लिए खड़ा हुआ है, कौन सा ऐसा प्रत्याशी है जो देश-विकाश में काम कर सकता है ??????
कौन सा ऐसा राजनेता है जो गर्व से कह सके की “मै भ्रष्ट नहीं हूँ”, “मै ख़ूनी नहीं हूँ”...............
मेरे विचार से तो नहीं !! “Right to Reject” की मांग बिल्कुल सही है !
पञ्च साल की मुश्किल से तुरंत लड़ना ज्यादा अच्छा है, विकास तो होगा ! और राजनैतिक पार्टियां केवल उन्ही प्रत्याशियों को मैदान में उतरेंगी जिनकी छवि अच्छी होगी !
आज के भारत को कल से बेहतर बनाने के लिए राजनैनिक नजरिये को नजरअंदाज करना सबसे बड़ी भूल है, वर्ना आज के सरकार की तानाशाही कल के “भारत” को ...............................!!
नजरिया ही एक ऐसा ब्रह्माष्त्र जो “विकसित भारत” के स्वप्न को हकीकत में बदल सकती है !!

भारतीय क्रिकेट टीम की इस परिसथिति को दयनीय कहे या सराहनीय ?- अंकुर मिश्र "युगल"

आखिर अब वो समय आ गया है जब भारतीय क्रिकेट को “बदले की भावना” का अंकुरण करना अनिवार्य है ! क्रिकेट वो भी भारतीय क्रिकेट, जिसके १२५ करोण उपासक है जहां की क्रिकेट आधारित फिल्म-“लगान” को कुछ समय पहले ही विश्व सिनेमा की सर्वोत्तम ५० फिल्मो में जगह मिली है, लेकिन भारतीय क्रिकेट का वर्तमान कुछ गर्त में दिख रहा है ! अब “लगान” की कहानी दोहराने का समय आ गया है ! अभी हाल ही में भारतीय क्रिकेट ने जिस कठिनतम समय की ललकार को झेला है, विचारक कहते है की वो भारतीय क्रिकेट इतिहास का सबसे कठिन समय था, उस कठिनतम समय में भारत के खिलाफ सारी परिस्थितियां भी थी, सभी खिलाडी चोटिल थे और “अंग्रेजी” टीम अपनी धरती पर हमारी टीम पर भरी थी ! हमें इस ऐतिहासिक हार का एहसास कुछ खुशियों की वजह से नहीं हुआ , धन्यवाद हो उन- “गैरी क्रिस्टन” का जिन्होंने हमें ऐसा बना दिया था की हम एक साथ सभी श्रेणियों के क्रिकेट में सर्वश्रेष्ठ हो गए थे , लेकिन उनके भारतीय क्रिकेट को छोडते ही हमें एक खतरनाख “झटका” लगा ! इसमें किसी को दोष भी नहीं दे सकते !
लेकिन अब पुनः हमारे पास ऐसा मौका है जिसके जरिये हम अपनी साख पुनः पा सकते है, इंग्लैण्ड का भारत दौरा है ,हमारे लिए सुनहरा मौका है ! अब उस धर्म की रक्षा करनी है जिसे हमने खुद अपने लिए बनाया है, हमें इन दौरे में सभी सकारात्मक परिस्थियां प्राप्त होगी, हमारा देश है , हमारे लोग है , हमारे समर्थक है, हमारे मैदान है और अब “हम” खेल रहे है !
लेकिन अब एक विपरीत परिस्थिति है अब न ही अन्ना हजारे का अनशन है और न ही बेकार टीम ! और भारतीय “मिडिया” भी जगी हुयी है यदि अब हारे तो “समर्थक और मीडिया” दोनों की टिप्पणियों के साथ-साथ कुछ अराजकता भी झेलनी पड़ सकती है! भारतीय क्रिकेट टीम की इस परिसथिति को दयनीय कहे या सराहनीय ????
परिणाम कुछ भी हो ,क्रिकेट धर्म के उपासक टीम से एक अच्छी विजय की कामना करते है, विजय दशमी का समय भी है विजय की कामना तो “धोनी” भी कर रहे होंगे , उनकी कामना पुरे देश की कामना है, अब तो विजय की जरुरत सबको है !
....................

क्या बात है !! सरकार.... अंकुर मिश्र"युगल"


क्या बात है !! सरकार ,
फिर एक और "हार",
कहाँ व्यस्त हो आप,
कुछ तो सोचो जनाब !!
हम भी यहीं है,
आप भी यहीं है,
पर हम ही क्यों हर बार !!
बोले भी तो फिर वही,
हम कुछ करेंगे,
पर ये तो बताया ही नहीं
करेंगे पर कब करेंगे !!
हमें खैरात नहीं
अपना हक चाहिए ,
हमें वक्तव्य नहीं,
सुरक्षा चाहिए !!
कुछ तो करो !! सरकार ,
क्या आपको नहीं है हमारी जरुरत ,
यदि नहीं तो ठीक है,
पर किसी और को तो है,
उन "अंकुरो" की तो सोचिये,
जिन्हें है हमारी जरुरत !!
क्या लगते है आपके ,
"अफजल" और "कसाब"!
क्यों करतें है, उन पर
हमारा पैसा बर्बाद !!
कुछ तो बोलो !!! सरकार
आपको रोना नहीं आता,
पर सुनना तो आता होगा,
उन चीखो को तो सुनिए,
जिनमे दुःख होता है
अपनों को खोने का !!
कुछ तो करो !!सरकार!!

जनलोकपाल की अति आवश्यकता थी यह “अनशन” और “आन्दोलन”:- अंकुर मिश्र “युगल”



देश ने अग्रेजी स्वतंत्रता के बाद देश के आतंरिक कलह की विशाल स्वतंत्रता हाशिल करते हुए जिस मुकाम को हासिल किया है उसे न केवल जनता की जीत कहेंगे बल्कि उसे एक नवीनतम भारत की जागरूप जनता के अधिकारों की जीत कहेंगे ! उसने उन अधिकारों को लिया है जो उसके लिए वांछनीय थे ! इस आन्दोलन ने भारत की एकता को पुनः एकत्र कर दिया है, यदि इसी एकता से भारत अपने अधिकारों के लिए लड़ता रहा तो वह दिन दूर नहीं होगा जब हम वही होंगे जहाँ होने चाहिए थे ! देश के इस आन्दोलन के पथ प्रदर्शक “अन्ना जी” को मै धन्यवाद देना चाहूँगा की उन्होंने जिस शालीनता और अहिंषा से देश को अपने अधिकारों के लिए लड़ाई का मार्ग दिखाया है वो कोई साधारण कार्य नहीं है !
“आज की दुनिया और अहिंषा” इन शब्दों का कुछ तालमेल नहीं बैठता लेकिन फिर भी इस महानायक ने इन्हें समतुल्य कर दिखाया, वो भी हजार या लाख लोगो में नहीं इन्होने ये समतुल्यता दिखाई है एक अरब से ऊपर वाले भारत में, जो अपने अधिकारों के टेल खुद दब रहा था !यहाँ कानून तो आते थे पर सामान्य जनता को उसकी जानकारी भी नहीं हो पाती थी! गरीब हमेशा अपनी गरीबी के लिए गरीबी और सरकार दोनों से लड़ता आ रहा है ! अमीर की बात मत करे .... क्योंकि उनकी दशा और दिशा दोनों आप को पता ही होंगे ! बात करे ग्रामीण इलाको की तो उनके पास संचार साधनों की कमी होने के कारण सूचनाओ की जानकारी दुर्लभ रहती है वही शहरो को सारी जानकारियां, जानकारियों के आने के पहले ही मिल जाती है ! इसी वजह से एक प्रजाति तो विकास की उचाई पर होती है और दूसरी के विकास का “अंकुरण” भी नहीं हो पाता ! इसी अंतर को खत्म करने के लिए जिस लोकपाल बिल के लिए आन्दोलन हुआ है, मै समझता हू वाद देश की आवश्यकता नहीं बल्कि अति आवश्यकता थी ! सभी देखते है कितने कानून आते है और चले जाते है जिनकी जानकारी सामान्य जनता को हो भी नहीं पाती ! लेकिन इस बिल का इस तरह से पास होना या संविधान में आना अच्छा नहीं था !क्योकि यह वो बिल है जिससे तानाशाही रुकेगी, भ्रश्ताचारिता रुकेगी और अराजकता रुकेगी ! ऐसे बिल का शांति से पास हो जाना और उसकी नियमावली जनता को पता न चलना सही नहीं था ! धन्यवाद देना चाहिए उस “सरकार” की “सरकार” का की वो खुद अपने जंजालो में फसते गए और इस “अन्ना” अनशन को जनता को समझाने का मौका दिया ! उसे यह पता भी नहीं चला की उसने सोई हुई जनता को जगा दिया है, अब केवल लोकपाल बिल पर बात नहीं रुकने वाली, आवाज उठ चुकी है और यह आवाज हर उस विडंबना पर उठेगी जिससे देश को जरा भी खतरा होगा !
इस अनशन और आन्दोलन के बीच के समय में जनता को “जनालोकपल बिल” की खूबियों का विवरण भली-भांति पता चल चुका है , यह विवरण उस जनता तक भी पहुँच चुका है इसके पास संचार संसधानो की कमी थी और वह हमेशा अराजकता और तानाशाही के टेल दबे रहते थे!
प्रमुख मुद्दों को संचार माध्यमों में से इतने प्रकाश में ला कर जनता को उसके अधिकारों को बताया है खासकर अंतिम 3 “सिटिजन चार्टर, निचले स्तर के नौकरशाह और राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति” ने सबको अपने अधिकारों से अवगत करा दिया है ! उकता कारणों से पता चलता है यदि यह “अनशन और आन्दोलन” नहीं होता तो देश को एक इससे अवगत नहीं हो पाता, सरकार और प्रशाशन की तानाशाही इसी तरह चलती रहती परन्तु अब हर तबके के लोगो में इसिअकी जानकारी होने की वजह से “जन लोकपाल” की पूर्ण विजय होगी !

ITSins :- Youth power can change INDIA into भारत !!!


आज बात करते है उस “शक्ति” की जिसके सामने अच्छे-अच्छे लोहा मानते है, मन में जोश होता है कुछ नया करने का जज्बा होता है, नए समाज के निर्माण के स्वप्न होते है और ऐसी एकता होती है की “एकता “ की परभाषा भी उन्ही से बनती है ! जी हाँ यह है हमारे देश की “युवा-शक्ति” यदि ये शक्ति सकारात्मक सोच के साथ समाज में उतरती है तो ऐसा समाज बन जाता है की उसमे शांति की पूजा होती है !ईमानदारी की सराहना होती है !परन्तु यदि यही युवाशक्ति अपने नकारत्मक एकता से उतरती है तो समाज की दशा और दिशा दोनों ही दयनीय हो जाती है !
अब बात करते है उस तद्य की जिसके कारण इस युवाशक्ति की बात हो रही है,अन्ना अनशन , लोकपाल बिल, “IAC” ये शब्द तो हमने सुने ही है जो आज कल बहुत ही प्रचलित है और आज के विकास की मांग है! “अन्ना जी” जिनके लोग जेलों पर चले गए ! लोग भूख हड़ताल पर उतर आये ! देश के लिए जान देनो को तैयार “अन्ना “ देश की युवाशक्ति के आदर्श बन चुके है ! लोकपाल बिल के लिए “अन्ना जी” के साथ जिस एकता का अनावरण हुआ है शायद ही कभी पहले हुआ होगा, वो भी खासकर युवाशक्ति में ! जो कभी आपस में भिडे रहते थे वो भी आज सडको पर ह्हाथ में तिरंगा लेकर “अन्ना जी” के समर्थन में उतर चुके है !
ITSins भी उन्ही युवाशक्ति में से एक है जिन्होंने अन्ना जी के समर्थन के लिए उस विश्ल रैली का आयोजन किया जिसमे लगभग 700 छात्र/ छात्रों ने भाग लिया, वो भी किसी कड़ी धुप में दोपहर है 12:30 बजे ! कड़ी धूप में इन्होने रैली इसलिए निकली क्योंकी ये देश को दिखाना चाहते थे की अन्ना आप कमजोर नहीं है “हमारी शक्ती आप के साथ है” ! ITSins ने करीब ३ घंटे की इस रैली में ५ किलोमीटर का रास्ता तय किया ! हाथ में “तिरंगा” और मुख में देशभक्ति के गीत और नारे थे और साथ में देशभक्ति का जज्बा ! कड़ी धूप में रैली निकालने के बाद उन्होंने परिचौक(ग्रेटर नोएडा) में रैली का समापन किया और जल ग्रहण किया ! कई छात्र/छात्राओं ने अपने विचारों में भ्रष्टाचर रूपी कीड़े को खत्म करने की बात कही तो कई ने लोकपाल बिल के जरिये देश विकास की बात कही !कुछ भी इस रैली में कुछ तो था !
ये है देश की युवाशक्ति जो जब चाहे , जो चाहे,जैसे चाहे कर सकती है !! (सकरात्न्मक अथवा नकारात्मक)

एक अपील : एक काम देश के नाम !!!


आजाद भारत की उम्र 64 वर्ष पूरी होने वाली है और उसने इसी छोटी सी उम्र में इतने आघात सह लिए है जिससे देश में विनाश का 'साया' मडराने लगा है ! पहले ही उसे खंडित कर –कर के अनेक टुकडो में बाँट दिया है ,संयुक्त भारत से खंडित भारत में बदल दिया है ! आजादी के 137 वर्ष पहले यह भारत एक बड़ा साम्राज्य का धारक था लेकिन अंग्रेजो की कूटनीतियों ने इसे मात्र 137 वर्षों में 7 भागो में बाँट दिया ! जिसमें आज हम भी एक भाग है सोचिये यदि सात भाग हो जाने के बावजूद हम इतनी बड़ी शक्ति है उन सात भागो के साथ हम क्या होंगे ! खैर - यहाँ बात है आज के भारत के जो आधुनिकताओ से इतना घिर चुका है की यहाँ के निवासी अपनी अवश्यकताओ को पूरा करने के लिए किसी अन्य की नही सोचते ! गरीबो का शोषण इस हद तक पहुछ चुका है “किसी गरीबी योजना का लाभ लेने के लिए लगी पंक्ति में भी गरीब सबसे पीछे ही होता है” नेताओ और बड़े अधिकारियो की बात क्या करें, यह सारी महानता तो उन्ही की है उन्ही के नियम कानून तो देश के गरीब को और गरीब और अमीर को और अमीर बनाने में सहायक है ! देश की 80% सरकारी योजनाओ का लाभ गरीबो को नहीं मिलता है ! उन्हें अपने किसी सरकारी काम के लिए दफ्तरों के हजार चक्कर लगाने पड़ते क्योंकि उसके पास मुद्रा रूपी प्रसाद देने को नहीं होता ! किसी बड़े की शिकायत से गरीब पर कार्यवाही जरुर होती है पर किसी गरीब के कहने पर बड़ों पर कार्यवाही नहीं होती ! आज यह है हमारा देश !!
लेकिन अभी इतना ज्यदा उम्रदराज नहीं हुआ है की इस देश की इस तरह की बिमारियों को रोका न जा सके ! किसी देश के लिए ६४ साल ज्यादा नहीं होते है बस हमें अभी से “अति – आत्मविश्वासी” बनने के जरुरत है !
हम इजराइल का इतिहास देखते है, यह वह देश जिसमे एक समय पर यहूदियों को पूरी तरह से बहार कर दिया गया था लेकिन उनके आत्मविश्वास की वजह से आज पुनः वह देश विश्व के मानचित्र में अपनी अलग पहचान बना चुका है! फिर भी हम तो अभी भी अपने ही देश में है तो क्या हम “एक काम देश में नाम” नहीं कर सकते! इजराइल के निवासी जब वहाँ से अलग हुय्र तो वो अलग अलग देशो में चले गए और फिर उन्होंने वहाँ से अपने देशवाशियो से संपर्क साधना सुरु किया उनका ध्येय वाक्य था “अगली बार येरुसलम में मिलेगे” और उन्होंने यह कर दिखाया !हमें भी ध्येय बनाकर देश के लिए कुछ करना होगा वरना “इकबाल की पक्तियों पर सोचना पड़ जायेगा ---
“ "वतन की फिक्र कर नादान मुसीबत आने वाली है !
तेरी बरबादियों के मश्वरे हैं आसमानों में !
न समझोगे तो मिट जाओगे ए हिंदुस्तान वालों!
तुम्हारी दास्तान भी न होगी दास्तानों में।"
अभी भी समय है आवाज भी उठ चुकी है, उस आवाज में शक्ति भी आ चुकी है उसे समर्थन भी पर्याप्त है, उसी पर्याप्त संख्या से सरकार घबरा चुकी है ! लेकिन यह कार्य केवल उस पर्याप्त जनसंख्या का नहीं है यह कार्य है 120 करोड़ भारतीयों का जिसने दुनिया को तो हिला दिया है ! अब देश के लिए कुछ करना है इसे अपील समझे या सुझाव लेकिन हर भारतीय का कर्तव्य है की उसे “भ्रष्टाचार की इस लड़ाई में अपना सहयोग देना होगा” अभी तक हमने सरकार की तानाशही देखी है लेकिन सरकार अब हमारी अहिंषा देखेगी !अब सब के दिल में बस एक ही ध्येय वाक्य होगा – “16 तारीख को दिल्ली में मिलेगे “.....
न तेरा है न मेरा है !
ये हिंदुस्तान सबका है !
नहीं समझी गयी ये बात !
तो नुकसान सबका है !!
.............
लोकपाल बिल सर्कार की तरह नहीं जनता की तरह बनेगा, उसमे प्रधानमंत्री भी आएंगे और उनके संत्री भी आएंगे! संसद भी आयेगी और अधिकारी भी आएंगे ! इसमे हर उस तबके के व्यक्तित्व को आना होगा जो सरकारी कार्यों में रूकावट पैदा करने की चेष्टा करता है !!
वंदे मातरम !!!

“कट्टर” Friendship की ओर बढते कदम !!- अंकुर मिश्र "युगल"


राष्ट्रभाषा में वैसे तो सभी शब्दों की नाजुकता और शालीनता का अपना अलग ही महत्व है, लेकिन कुछ शब्द ऐसे भी है जिन्हें हमें परिभाषित करने के लिए व्यावहारिक जीवन का सहारा लेना ही पड़ता है ! हमें हमें उन शब्दो की वास्तविकता और उसका अर्थ व्यावहारिकता से ही पता चलती है ! उसी शब्दकोष में एक शब्द है “दोस्ती” पर्याय में देखे तो मित्रता, बंधुता ,सहयोगी अदि अनेक सब्दो का परिवार है, जिसकी परिभाषा की जरुरत शायद ही किसी को हो ! यह वह शब्द है जो ईमानदारी, सहायता , सत्यता आदि शदो की गरिमा को धोड़ा बहुत बचा के रखे हुए है ! इस संसार में शायद ही कोई ऐसा होगा जिसके पास दोस्त न और कहे तो “कट्टर” दोस्त न हो ! अप “कट्टर” का अर्थ तो जानते हो होगे , और सुना भी होगा – कट्टर हिंदू, कट्टर मुसलमान,कट्टर ........., कट्टर........... अदि (कार्य की अधिकतम सीमा) !आज हम बात करते है “कट्टर” दोस्ती की , शायद मै सोचता हू इसके लिए किसी धर्म, किसी जाति, किसी समाज या किसी विशेष समुदाय से जुडाव जरुरी नहीं है यह सभी धर्मो ,समुदायों ,जातियों आदि का महामिलाप हो सकता है !लेकिन आज का मुद्दा यही है “कट्टर” बनना सभी चाहते है लेकिन उसकी वस्तविकता से कोई आँख नहीं मिलाना चाहता है ! क्या आप सोच सकते है - जिस दिन “कट्टर” दोस्ती रूपी महासागर में विश्व के 6 अरब जनसंख्या का मिलाप हो गया उस दिन आतंकवाद’, अलगाव-वाद’, ‘जातिवाद’, ’क्षेत्रवाद’ आदि विवाद बर्बाद हो जायेंगे ! इस कट्टरपंथी में आप उस समाज का अविष्कार कर सकते है जिसमे ईमानदारी, संय्वादिता, शालीनता आदि का “अंकुरण” हो ! यही एक ऐसा समाज है जो भविष्य के विनाश को रोक सकता है, अन्यथा परिणाम तो सभी को पता है ! वैसे तो प्रत्येक काम के लिए प्रत्येक दिन उपर्युक्त होता है लेकिन यदि हमें ऐसा दिन मिल जाये जिसका इतिहास भी हमसे उसे करने को कहता है जैसा की “Friendhip Day” जो विश्वविख्यात है और “दोस्ती” की महँ दस्ता भी अपने आप में समाये है ! तो क्यों न हम इस कट्टरपंथी रूपी दोस्ती के साम्रज्य की सुरुआत इसी दिन से करे अपनी दोस्ती की श्रृंखला को बढ़ाते हुए विश्व स्तर तक पहुचाये जिससे विश्व हित की इस मिहीम के संचालक और हिस्सा बने !!!

क्या “जान” की कीमत वक्तव्य है !- अंकुर मिश्र “युगल”

आज के भारत पर आतंको की बरसात का प्रमुख कारण “हमारी सुरक्षा व्यवस्था” है !लगातार सरकार के झांसो में फस रही भोली जनता आखिर कैसे माने की वो सुरक्षित है !जब ‘पालनहार’-सरकार ही हार माँन लेती है तो जनता की क्या मजाल ......! सरकार तो यहाँ तक कह डालती है की “हम हर तरह के आतंक से निपटने में सक्षम नहीं है !” आखिर इस वक्तव्य का क्या मतलब समझा जाए! क्या हमारी सरकार केवल हर तरीके की महँगाई बढाने में माहिर है !! क्या सरकार का ध्यान देश बचाने में नहीं है !! क्या सरकार के कोषागार में धन की कमी है जिससे देश की सुरक्षा व्यवस्था सुधारी जा सके !!क्या जनता को इस तरह के शब्दों के साथ दहशत में लाकर आतंरिक आतंक फ़ैलाने का इरादा है !! या कुछ और .. कही इटली की याद .......!
कुछ भी हो लेकिन ऐसे वक्तव्यों के साथ सरकार के लिए जनता के कुछ प्रश्न जरुर बनते है – सरकार कह रही है की “हम ‘हर’ तरीके के हमलों से निपटने में सक्षम नहीं है “ तो सर्कार ये बताये की आखिर कौन सा ऐसा हमला है जिसे उसने रोक लिया है या भूत में रोक लिया था ,...........
क्या २६/११ के हमले को रोका नहीं जा सकता था , क्या मुंबई में हुए १९९३ या ट्रेन ब्लास्ट को राका नहीं जा सकता था, क्या संसद के हमले को रोका नहीं जा सकता था और क्या एसे अनेक हमले जो हमने झेले है उन्हें रोका नहीं जा सकता था और यदि सरकार एक भी हमला रोकने में सक्षम होती तो उसे ऐसे वक्तव्य बोलने का अधिकार था !
सोचनीय तो यह है हम करोड़ो रुपये रक्षा के लिए खर्च करते है और इन सबके बावजूद ये सब ..........! इन करोड़ों के करोड़ो का दर्द ढोता है एक साधारण व्यक्ति जिसके लिए जीविका भी मुश्किल होती है ! आज सुरक्षित भी वही है जो ऊपर है ,ये कडवा सत्य है हमने/ आपने कभी ये नहीं सुना होगा के किसी बड़े राजनेता का आतंकी हमले में स्वर्गवास हो गया ! और हो सकता है की कभी भविष्य में ऐसे समाचार सुनने को मिले भी नहीं , और जिस दिन ऐसी खबर सुनने को मिलेगी उस दिन आप देखेगे की सुरक्षा व्यवस्था में किस तरह बदलाव आते है ! परन्तु ऐसा भविष्य में होगा ही नहीं क्योंकि आज के इन सभी कांडो के पीछे ...............................................................................................!
एक और सत्य जिस पर हमनें ध्यान नहीं दिया होगा किसी गरीबी योजना का लाभ लेने के लिए जब गरीबो की पंक्ति लगती है तो हम देखते है उस पंक्ति में भी गरीब गरीबी झेल रहा होता है और सबसे पीछे खड़ा होता है !यही रवैया आज की सुरक्षा व्यवस्था पर लागू है !
आज प्रमुख रूप से सुरक्षा तो उन्हें दी जाती है जो उचे-उचे पदों पर है, जिनके पास शक्ति है ! सोचनीय यह है की उस सुरक्षा का फायदा भी वही लेते है - जो गरीबो के लिए दी गई है आखिर यहाँ भी गरीब गरीबी की योजना में गरीबी महसूस करता है , और प्रमुखतः वही इन हमलों का शिकार होता है !!
उपर्युक्त से स्पष्ट है हर छोटी से छोटी व् बड़ी से बड़ी समस्या का कारण “हमारा संचालन” और “संचालक “ है उसी की वजह से आज की समस्याए “आज” पर और “हम” पर हावी है ! भ्रष्टाचार होता है , महंगाई होती है, बलात्कार होते है और आतंकी हमले होते है ! करोड़ो के धन के साथ-साथ लाखो की जाने जाती है और प्रतिउत्तर में नेताओ के वक्तव्य आते है, वह भी ऐसे वक्तव्य जो शहीदों को लज्जित करते है ! आज के भारत को आज के सामने रखने के लिए और आज की चुनौतियों से लड़ने के लिए हमें सुद्रिड संचालक और संचालक के आवश्यकता है !

"गूगल प्लस" है "प्लस" या "माइनस" :- अंकुर मिश्र "युगल"



आज "फेसबुक" के नाम और कम से लगभग सभी परिचित होंगे ! यही वो कड़ी जिसने "सोशल" नेटवर्किंग के जरिये खुद के लिए व्यवसाय और लोगो

को जोडने के लिए एक मार्ग तैयार किया !इससे पहले भी अनेक सोशल वेबसाइट्स ने अपने आप को इस पर उतरा लेकिन "फेसबुक" जीतनी

उपलब्धि किसी को नहीं मिली ! फेसबुक के निर्माता "मार्क जुकरवर्ग" की अदुतीय पहल आज विश्व में अपनी अलग ही विरासत रखती है ! इसने ऐसा

"प्लेटफार्म" तैयार किया जहाँ विश्व की प्रत्येक बड़े "व्यक्तित्व", "स्थान", "जगह" व् "तकनीक" से हम अपना संपर्क बना सकते है !महज ६-७ वर्षों में

फेशबुक ने अपनी दुनिया की जनसँख्या ७५ करोण से ऊपर कर ली है! परन्तु जिस फेसबुक ने सभी "सोशल" नेटवर्किंग-साईट को पीछे करते हुए

अपना साम्राज्य स्थापित किया आज उसी को टक्कर देने की लिए सामने आया है दुनिया का सबसे बड़ा "सर्च इंजन" गूगल ! वैसे गूगल "फेसबुक" से

पहले से कार्यरत है और उसने उसने "आर्कुट" एंड "गूगल बज़" जैसी सोशल वेबसाइट्स में अपना हाथ आजमा लिया लेकिन "फेसबुक" ने उन्हें अपना

साम्राज्य स्थापित नहीं करने दिया ! और उसी "गूगल" ने फिर से "फेसबुक" से टक्कर लेने की सोची है ! परन्तु अनेक अकडे कहते है की इस बार

"गूगल" अपनी पिछली गलतियों को संभलकर बाज़ार में उतर रहा है ! इस चेतावनी को "फेसबुक" के जनक "मार्क जुकरवर्ग" ने स्वीकार करते हुए

"फेसबुक" को और अच्छा बनाने हेतु खुद "गूगल" के नए अविष्कार "गूगल प्लस" का निरिक्षण किया है ! इस निरिक्षण का खुलासा "तकनीक से जुडी

साईट " CNET ने किया ! यह तरीका तो अजीब है, और इसका प्रयोग भी "फेसबुक के महानायक ने किया है !
अब देखना यह होगा की फेसबुक और गूगल की इस जंग में कौन अंगे बढता है फेसबुक को अपनी छवि बचानी है और गूगल को पिछली

पराजयो का बदला लेना है ! वैसे देखा जाये तो इस जंग से उपयोगकर्ताओ को फायदा ही होना है उन्हें कुछ न कुछ नयी तकनीक अवश्य मिलेगी !
1996 में खोजे गए गूगल ने भी अपना साम्रज्य विस्तार बहुत ही तेजी से किया है, और आज उसने दुनिया में सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाली निशुल्क

"मेलिंग वेबसाइट" Gmail, अपने Operating System गूगल क्रोंम, मोबाइल OS एंड्रायड , ब्लागिंग के लिए Blogger अदि जैसी सुविधाए विष

को प्रदान की है! इन उपलब्धियों को देखते हुए हमें लगता की इस बार "गूगल प्लस" ,"फेसबुक" पर भरी पडने वाला है ! गूगल प्लस के लंच की

खबर सुनते ही सम्पूर्ण विश्व उसे देखने को लालायित है! चलिए हम सब इंतजार करते है और नए अवतार में नये "फीचर" की कल्पना करते है !

"भग" रूपी भगवान तो नहीं बन सकते !-अंकुर मिश्र "युगल"

संसार जन्मो का मोहरूपी कारखाना है , जहां पर प्रतिदिन हजारी की संख्या में मोहरूपी शवो का निर्माण होता है यह कार्क्रम सदियों से चला आ रहा है और सदियों तक अनवरत चलता रहेगा !इस आवागमन के कार्क्रम में अधिकतम लोग शव रूप में जन्म लेते है और शव रूप में ही शवित होकर समाप्त हो जाते है !संसार में आना और बिना किसी कर्म के मोह माया रूपी अस्त्रों से सुसज्जित होकर पारिवारिक कार्य करना और पत्रिक सद्गुणों का विनाश करना , संसार में भोग विलासो को प्राप्त करना तथा पुनः उस देह का त्याग करना जिसकी उत्पत्ति किसी विशेष कार्य के लिए हुई थी ,इस जीवनलीला को प्रत्येक निम्न एवं उच्च कोटि का व्यक्ति निर्वहन कर सकता है, और सोचे तो ऐसा जीवन तो पशु ,पक्षी भी निर्वहन करते है !
सोचिये ऐसा जीवन ही क्या जिसमे "भग" रूपी ऐश्वर्य, यश, लक्ष्मी ,वैराग्य ,ज्ञान और शौर्य की थोड़ी सी भी मात्र न हो , जो जीवन चिंताओ से ग्रसित न हो , भय से भ्रमित न हो ,हरी से हरित न हो ! मनुष्य को ऐसे कर्मो में कर्मित होना चाहिए जिससे जीवन जीवन-काल में तथा उसके पश्चात प्रसंशा की मिठास न हो ! हम "भग" रूपी भगवन तो नहीं बन सकते किन्तु कम से कम एक राक्षस की संज्ञा से उपनामित होने से तो बच ही सकते है, ये नाम भी हमें उन विद्वानों द्वारा देय होगा जो हमारे सबसे नजदीकी होगे !
"चार दिन की चांदनी फिर अँधेरी रत"
उक्ति को चरितार्थ न करे बल्कि कर्म ऐसा करे जिससे मनुष्य को सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड से प्रशंशा प्राप्त हो और "महापुरुष" की संज्ञा भी मिलेगी व् भी उन्ही के द्वारा जो "राक्षस" की संज्ञा देने वाले थे ! इस सोचनीय-सोच पर सोचनीय-सोच से जरुर सोचियेगा, कुछ परिणाम जरुर निकालेंगे !
.........
अंकुर मिश्र "युगल"

.................उनको तो सिर्फ कफ़न होगा !!

सच चाहे जितना तीखा हो धंस जाये तीर सा सीने में !
सुनने वाले तिलमिला उठे लथपथ हो जाये पसीने में !!
लेकिन दुर्घटना के भय से कब तक चुपचाप रहेंगे हम !
नस-नस में लावा उबल रहा कितना संताप सहेगे हम !!
जिन दुष्टों ने भारत माँ की है काट भुजा दोनों डाली!
पूंजे जो लाबर,बाबर को श्री राम चंद्र को दे गली !!
उन लोगो को भारत भू पर होगा तिलभर होगा स्थान नहीं !
वे छोड़ जाएँ इस धरती को उनका ये हिंदुस्तान नहीं !!
हमको न मोहम्मद से नफ़रत, ईसा से हमको बैर नहीं !
दस के दस गुरु अपने उनमे से कोई गैर नहीं !!
मंदिर में गूंजे वेदमंत्र गुरु-द्वारों में अरदास चले !
गिरजाघर में घंटे बजे मस्जिद में में खूब नवाज चले !!
होगा न हमें कुछ एतराज इसका न तनिक भी गम होगा !
पर करे देश से गद्दारी उनको तो सिर्फ कफ़न होगा !!

स्त्रोत-अज्ञात......

अभी राजनीती की गरिमा को इतना भी मत गिरायें!! अंकुर मिश्र "युगल"


राजनीती अभी से अपठनीय हो जाएगी ये किसी ने सोचा भी नहीं होगा !आज हम हर तरीके से अपने को या अपने देश को विकसित तो बनाना चाहते किन देश को चलता कौन है,
हमारे राजनेता, यही वो कड़ी है जो हमें और हमारे देश को विश्व के सामने रखते है, एक समय था जब राजीव गाँधी और अटल बिहारी बाजपेई जी जैसे राजनेताओ से राजनीती खुद परिभाषित होती थी, क्योंकि उनके क्रियाकलापों ने राजनीती की भंगिमा को कभी भी गिरने नहीं दिया, उन्होंने उन सभी मुद्दों पर बातें की जो देश के लिए जरुरी थी !लेकिन आज की राजनीती इसके बिलकुल विपरीत है, यहाँ कुर्सी तो कोई और सम्भालता है लेकिन सञ्चालन कोई और !! यह कोई साधारण मुद्दा नहीं है, यदि हम इस मुद्दे को दिमाग से सोचे तो खुद समझ में आ जायेगा की यदि इसी तरह चलता रहा तो हमारा देश हम नहीं बल्कि दूसरा देश .................चलाएगा..........!
अब तत्काल पर नजर डालते है-
अन्ना हजारे ने "भ्रष्टाचार" के मुद्दे पर राजनीतिज्ञों से टक्कर ली उस समय उसका परिणाम सकारात्मक भी निकला परन्तु बाद में वही सरकार अपने वादों से मुखर गई !!उन्होंने वाही करने से मन कर दिया जिसे उन्होंने अन्ना जी के सामने मन था ! भ्रष्टाचार के कानून को अपने तरीके से बनाने की बात कही,इसमे भी इस बात को ध्यान रखा गया की सांसदों और प्रधानमंत्री को उस नियम के अंदर नहीं लाया जायेगा, जिसका उपयोग भ्रष्टाचार की समाप्ति के लिए होना है, जी हाँ हम बात कर रहे है "लोक-पाल" बिल की !
आखिर क्या कारण है जिसकी वजह से हमारी सरकार को "भ्रष्टाचार" और "काले धन" जैसी बरबादियों से प्यार है !
आज के भ्रष्टाचार विषय पर बात करते है जो बाबा रामदेव से प्रेरित है -बाबा रामदेव का सत्याग्रह किसी भी विषय-वास्तु से भी प्रेरित हो लेकिन उसका विषय ("भ्रष्टाचर") देश हित में था ! विषय को समझते हुये देशवाशियो ने सत्याग्रह में अपना साथ भी दिया ,और जो नहीं दे पायें वो भी समझते है ,यह आज के भारत की जरुरत है ! जनता अपने उत्तरदायित्व को समझते हुए अपने को जगरूप बनाते हुए देश हित की इस लड़ाई में शांति के साथ बाबा के साथ जुडी !
परन्तु सत्याग्रह के दौरान जो "शर्मसार" घटना सरकार द्वारा करवाई गई वो देश की छवि को गिराने के साथ, राजनीती की परिभाषा को भी परिवर्तित करती है ! इस घटना में सरकार द्वारा जिस तरीके के अतिक्रमण "जनता" पर करवाए गए वो तो सरकार को "लोकतान्त्रिक" नहीं बल्कि "तानाशाही" प्रदर्शित करती है !आखिर उस जनता पर लाठियां बरसा कर सरकार दिखाना क्या चाहती है? जिन अधिकारीयों ने ऐसा करने के आदेश दिए क्या वो भी विदेशी..................!
इस घटना को देखने से लगता है की आज के शिक्षित राजनेता भी राजनीती के लायक नहीं है !उन्होंने अपनी इस अरैजिनिकता से दिखा दिया है की उनके सोचने की क्षमता को किसी ने गिरवी रख रखा है !इस घटना के बाद जनता का उत्तरदायित्व है की वो ईश्वर से उन राजनेताओ की सदबुध्धि के लिए प्रार्थना करे! और देश-हित के कार्यों में अपना सहयोग दे ! ऐसा हमें अपनी राजनीती को बचने के लिए करना ही होगा !!!

"अच्छे काम में सौ अड़ंगे" की सत्यता !! अंकुर मिश्र "युगल"

"अच्छे काम में सौ अड़ंगे" वाली कहावत "अन्ना हजारे" के लोकपाल बिल में सत्य होती नजर आ रही है!
वैसे तो कभी इन नेताओ को विकास का नाम तक याद नहीं रहेगा क्योकि वास्तविक जीवन में इससे इनका कोई नता नहीं होता ये सब राजनैतिक जीवन की बातें होती है,लेकिन कोई अन्य किसी अच्छे कार्य के लिए कदम उठाये तो उसे पीछे हटाने की पूरी कोशिश करते है, और इस कम में सारे राजनैतिक प्रतिद्वंदी एक होते नजर आते है! इन सबकी यथार्थता के लिए हम नजर डालते है "अन्ना हजारे" के भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू किये गए अभियान की, जिसमे लोकपाल बिल की मंजूरी महत्वपूर्ण थी या ये कहा जाये की ये पूरा अभियान लोकपाल बिल को पास कराने के लिए ही था, जो भ्रष्टाचारियों के लिए एक "रूकावट" है! आज उसी बिल को और उससे जुड़े लोगो को राजनेताओ ने अपने मुद्दा बना लिया है! इक्कीसवीं सदी की इस मंदी में नेताओ के पास मुद्दों की मंदी है इसी कारण उन्होंने इसे ही नया मुद्दा बना डाला! नेताओं को सत्यता या असत्यता से मतलब तो होता नहीं है उन्हें केवल प्रतिद्वंदिता से मतलब होता है, वो तो केवल उस बात पर बात करते है जिस पर कोई अन्य दल समर्थन कर रहा होता है! लोकपाल बिल से जुड़े लोगो में प्रशांत भूषण, संतोष हेगडे, अरविन्द केजरीवाल आदि है, लेकिन आज का दृश्य यह है की इन सभी लोगो में किसी न किसी प्रकार की कमियों को निकलने का काम नेताओ ने शुरू कर दिया है, और ऐसा करने वाले कोई साधारण नेता नहीं बल्कि काग्रेस से दिग्गज दिग्विजय सिंह, जिन्हें मध्य-प्रदेश की राजनीती ने पानी पिला दिया, अमर सिंह जिन्हें सपा से बहार कर दिया गया, इनके अलावा ऐसे तमाम नाम है जो इस कार्य में अडंगा दल रहे है!
पहले तो खुद कांग्रेस ने पूरा जोर लगाया की इस बिल को पास नहीं कराया जाये, लेकिन उसे जनता के सामने झुकना पड़ा?
अब यहाँ प्रश्न उठता है की क्या ये लोग सरकार का ही काम कर रहे है? या फिर ये उन्ही २६ लोगो की श्रेणी में है जिनकी लिस्ट सरकार के पास है-जिनका काला धन स्विस बैंको में जमा है ! अब एक प्रश्न पर और बात कर लेते है जिसे खुद जनता उठा रही है- अन्ना हजारे उस समय कहा थे जब देश अन्य परेशानियों से गुजर रहा था, उदाहरणार्थ- महाराष्ट्रियो का उत्तर-भारतियों पर हमला आदि !
किसी इतिहासकार ने एक प्रश्न उठाया है की उस कमेटी में वही लोग क्यों जिन्हें अन्ना हजारे ने चुना है!
प्रश्न कुछ भी हो परिणाम कुछ भी निकले पर यहाँ एक बात पर हमेशा सोचना रहेगा की देश के किसी भी विकास के कार्य में इतनी वधाएं क्यों आती है, यदि हम अन्य मुद्दों पर (जैसे- महिला आरक्षण, पोटा, सीमा निर्धारण आदि ) नजर दे तो इन पर सभी की "एक राय" हो जाती है परन्तु आज देश की सबसे बड़ी समस्या के निदान के पहले कदम में इतनी परेशानियां क्यों ? यही वो घाव जो हमारे लिए नासूड बन चूका है, और यदि समय रहते हमने इस नासूड से बचने का कोई उपाय नहीं सोचा तो एक बात पक्की है यद् मुद्दा एक दी देश में गृह युद्ध छिडवा देगा ! देह के संचालको को समझाने की जरुरत है की देश के विकास के प्रत्येक मुद्दे को अपन राजनैतिक मुद्दा ण बनायें, कभी कभी देश को देश समझते हुए विकास के मुद्दों पर भी सोच लिया करें! जो देश हित में, राज्य हित में और राजनीति हित में है !!!!

AWAJ_DO


स्वतंत्रता की जो नै लड़ाई अन्ना हजारे जी ने सुरु की है, हमें उसे रुकने नहीं देना चाहिए! हमें देश के युवाओ को प्रोत्साहित करके उस शांति की लड़ाई के जरिये देश के भ्रष्टाचार जैसे अभिशापो को समाप्त करना है! इसी कम को अंगे बढ़ाने के लिए मैंने एक इन्टरनेट पर वेब-साईट बनायीं है जो लोगो को जोडने और लोगो को समझने में सहायता करेगी !!!

www.awajdo.co.cc

यदि हम ये नहीं कर सकते तो हमसे बड़ी समस्या कोई नहीं है !- अंकुर मिश्र"युगल"

अन्ना हजारे जी ने जिस कठिनतम समस्या को समाप्त करने के लिए अनिश्चित कालीन अनशन की सुरुआत कई है, वो केवल अनशन नहीं बल्कि आधुनिक भारत के निर्माण और स्वतंत्रता की नवीनतम लड़ाई है, यहाँ लड़ाई का मतलब कभी भी हिंसा मत लीजियेगा, यह तो वो लड़ाई है जिससे अहिंसा की परिभाषा बनती है इसमे देश के प्रत्येक नागरिक का लगाव होना चाहिए, प्रत्येक नागरिक को अन्ना हजारे का साथ देना चाहिए! अन्ना हजारे जी खुद कहते है" जब किसी समस्या को समाप्त करने के सभी तरीके बंद हो जाते है तो अनशन का सहारा ही बचता है" यह वो अहिंसा-भरा हथियार है जिसके सामने अच्छे लोकतंत्रवादियों, राजनीतिज्ञों को झुकना पड़ता है! वो कहते है हमें-
"जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा वह भारत देश है मेरा ! को दोबारा सत्य करना है आज हमे यह गीत बदला हुआ नजर आ रहा है हम आज कह भी सकते है "जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती दी बसेरा वह भारत देश था मेरा !
अब आप सोचिये जब एक ७५ वर्षीय बृद्ध व्यक्ति इस समस्या को समाप्त करने की पहल कर सकता है तो क्या हम नहीं हम तो अभी जवान है! आप अपने आतंरिक ह्रदय से पूछिए क्या आपको भ्रस्टाचार अच्छा लगता है??और हाँ आप यह जबाब मत दीजियेगा की "भ्रष्ट तो सभी है हम क्या कर सकते है!!" क्योकि इस उत्तर से मै पागल हो चूका हूँ! हाँ इस तरीके के उत्तर वाले लोगो से मै बस इतना कहना चाहूँगा की यदि वो इसी तरह सोचते रहे तो वो दिन दूर नहीं है जब हा दोबारा किसी के अधीन होंगे!
आप सोचिये अब समस्या है तो समाधान भी होगा, हमें समाधान के लिए अंगे आना होगा, अंगे नहीं आ सकते तो जो अंगे आ रहा है उसका समर्थन तो कर सकते है, और यदि समर्थन नहीं कर सकते तो लोगो को तो जगा सकते है , यदि लोगो को नहीं जगा सकते तो शांत तो रह सकते है,यदि शांत नहीं रहा सकते तो बुरा तो मत बोलिए !!!
हाँ यदि आप या हम ये सब नहीं कर सकते तो हमसे या आपसे बड़ी समस्या कोई नहीं है !!
यहाँ केवल लोकपाल बिल की बात नहीं है, यह केवल स्विस बैंको में जमा धन की बात नहीं है, यह कोड़ा, कलमाडी, राजा या रानी की बात नहीं है यह देश की बात है यह उस "सोने की चिड़िया" की बात है जिसे यहाँ के कुछ तानाशाहों या मंद्बुध्धियों ने आपने को स्वर्ण बनाने के लालच में खोखला कर दिया है!!
अब सोचिये मत अपना कदम बढाइये, अन्ना हजारे जैसी क्रांतिकारियों की आज देश को जरुरत है,यह तो "आज" की सुरुआत है यदि आपका ,हमारा और उनका साथ रहा तो अंगे अंगे देखिये होता है क्या ???

हम जानते है फिर भी चुप है!- अंकुर मिश्र "युगल"


प्रकृति से खिलवाड का भयावह दृश्य तो हम सभी ने देखा ही है !अब भी वक्त है प्रकृति की चेतावनी को समझ लेना चाहिए उसके साथ हो रहे अपमनानीय व्यव्हार को समाप्त करना चाहिए, हमें उसे अपनत्व के साथ जोडना चाहिए वरना वह दिन दूर नहीं जब हम उसकी आग में ध्वस्त हो जायेंगे और हमें पश्चाताप का समय भी नहीं मिलेगा!
आज हम जिसकी छत्रछाया में जीवन व्यतीत कर रहे है उसे ही अपने परिवार से अलग मान रहे है और अमाननीय व्यवहार किये जा रहे है !!!
जी हाँ यहाँ हम बात कर रहे है उस पृथ्वी की जिसमे हम रहते है, उस आकाश की जिससे हमें छत मिली हुई है , उस हवा की जिसमे हम साँस ले रहे है , उस पानी की जिसकी वजह से हमारा जीवन है, उस आग की जिसमे हम खाना पकाते है और हर उस तथ्य की जो हमें प्रकृति प्रदान करती है , और इन्ही के साथ हमारा व्यव्हार भी आज द्रिश्नीय हो गया है यहाँ कारन भी खुला हुआ है , हम खुद के लिए वायु चाहिए, और जानते भी है वायु ही जीवन है और पता भी है की ना ना प्रकार के कारखानों तथा वाहनों से उत्सर्जित "ग्रीनहाउस गैस" वायु में क्या असर कर रही है . करकारखानो ,वाहनों तथा फ़सिल तेलों के जलने से उत्पादित ग्रीनहाउस गैसों से आज विश्व एक सबसे कुख्यात तथा गभीर्शील विषय से जूझ रहा है जिसे वैज्ञानिक ग्लोबल वार्मिंग कहते है.इससे धरती की छतरी "ओजोन परत" में छेद हो रहे है जिससे हमे चर्म रोग इत्यादि हो रहे है.ग्लेशियरों का पिघलना, निचले समुंदरी इलाको का डूब जाना उपरांत का दुस्परिनाम है. लेकिन फिर भी हम कुछ नहीं कर रहे !!!!!
जल की तरफ नजर डाले तो यह जरुर कहेंगे "जल ही जीवन है" और आज इसके साथ हो रहे वर्ताव को भी हम जानते है जो जल प्रदुषण के रूप में खुख्यात है केमिकल तथा अन्य हानिकारक पदार्थो का अत्यधिक मात्रा में नदी, तालाब इत्यादि में पाया जाना जल प्रदुसन कहलाता है.जलीय जीव-जन्तु के लिए जानलेवा साबित जल प्रदुसन वातावरण के कई श्रृंखलाओ में बाधा लता है जिससे कूद्रत के प्राणियों को मुश्किलों का सामना करना परता है.नदी के उपरी सतह पर एक परत जम जाने के वजह से जलीय जीव-जन्तु को आक्सीजन तथा रौशनी न मिलने से उनकी मृत्यू हो जाती है.जिनके अभिशाप में हम आज जी रहे है !इसी तरह पृथ्वी के साथ देखे तो ना ना प्रकार के कीटनाशक तथा अन्य खादों का अत्यधिक मात्रा में प्रयोग करके इसे बंजर बनाने पर तुले है .कुरा-कचरा तथा अन्य हानिकारक पदार्थों जमीन में गारने से वहां के जमीन के रोपण शक्ति में कमी होती जा रही है.हमारे खाद्य पदार्थ दूषित होते जा रहे है जिससे हम अनेक रोगों के शिकार होते है, फिर भी हम चुप है!इसी तरह हर प्राकृतिक तथ्य के साथ हमारा व्यव्हार हमें खतरे में डाल सकता है जिससे जापान जैसी तबाहियां आम हो जायेगी और एक दिन ये होगा की पूरा विश्व जापान होगा!!
यहाँ सबसे बड़ी बात यह है की हम जानते है फिर भी चुप है!!

इनपुट २५० करोण आउटपुट शून्य : अंकुर मिश्र "युगल"


कहते है कनून के हाथ बहुत लंबे होते है , उससे बचाना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुनकिन है !परन्तु जब कानून ही घुतंर टेंक दे तक क्या करेगे! किसी को किससे इंसाफ की आशा रहेगी ! आज यही परिस्थिति हमारे देश की हो रही है, यहाँ राष्ट्रिय स्टार अनेक बड़े बड़े केशों के मुकदमे अदालत में चल रहे है,पर उनमे अब विलम्ब के साथ साथ कानून ने इंसाफ देना भी बंद कर दिया है !
बोफोर्स घोटाले से कौन अनजान होगा !सन् १९८७ में यह बात सामने आयी थी कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारतीय सेना को तोपें सप्लाई करने का सौदा हथियाने के लिये 80 लाख डालर की दलाली चुकायी थी। उस समय केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी, जिसके प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। स्वीडन की रेडियो ने सबसे पहले 1987 में इसका खुलासा किया। इसे ही बोफोर्स घोटाला या बोफोर्स काण्ड के नाम से जाना जाता है। और आज भी केंद्र में कांग्रेस की सर्कार है, और सञ्चालन भी वाही गाँधी परिवार कर रहा है !
केश की सुनवाई २५ साल से बराबर होती अ रही है ,सी.बी,आई. जाँच भी हुई है,और सबसे बड़ी बात यह है की इस केश में खर्च होने वाली रकम २५० करोंण है, यह रकम भी आम जनता की ही है !आखिर देश का विकाश कैसे हो महंगाई क्यों न हो !आम जनता भूंखी क्यों न मरे जब उसी के धन का उपायोंग ऐसी जगह किया जा रहा है!! और इतनी रकम का अन्तिम परिनक अत है "इस केश में बहुत अधिक समय हो गया है अतः इस केश को बंद किया जाता है" !क्या हमने इसी के लिए कानून का भरोषा किया है , क्या हमने इसी लिए सरकार को चुना है !
यदि इसी तरह के निर्णय हमारी कानून व्यवस्था देती रही तो आम जनता का क्या होगा!!बोफोर्स जैसे मामलों के परिणाम में कानून के साथ साथ सर्कार का भी पूरा हाथ होना आम जनता के विश्वास घाट को प्रदर्शित करता है!!

बड़े शर्म की बात है !! अंकुर मिश्र "युगल"


दुश्मन आज आदम खान हो गया है,
बच्चा बुढा लहू-लुहान हो गया है!
हम रेड-अलर्ट घोषित करते रहे ,
जन्नते कश्मीर वीरान हो गया है !!
रोयें दादी माँ की नानी !
ये बड़ी शर्म की बात है !!
मुगलाते में तांडव करवा डाला,
पूरा सरहदी क्षेत्र चार्वा डाला!
कड़ी सुरक्षा रेड-अलर्ट के चलते,
लाखो निर्दोषों को मरवा डाला!!
थर थर कांपे मर्दानी!
ये बड़ी शर्म की बात है!!
फिर दुश्मन का हौशला बाद आया ,
एक रोज लाल किले में घुस आया!
राष्ट्रिय गौरव में दाग लगाकर ,
संसद में मिलने का सन्देश भिजवाया!!
नींद में रहे राजधानी !
ये बड़े शर्म की बात है!!
वह से भी उसका मन नहीं भरा,
पानी अब सर के ऊपर चढा!
बम्बई में अतिक्रमण बर्शाया,
हमें खून के अंशु रुलाया !!
पापी से पूंछे उसका पाप !
ये बड़ी शर्म की बात है !!
गणतन्त्र दुबका सहमा रह गया ,
आतंक बाद अपना काम कर गया !
रह में थी कश्मीर विधानसभा,
जिसमे बम बारूद और धुँआ भर गया !!
कातिल से पूछे उसकी निशानी !
ये बड़ी शर्म की बात है!
बीत गए जाने कितने मधुमास,
भूल गए अभिमान भरा इतिहास!
बलिदानों की गाथा निरर्थक गयी,
जहाँ में हो रहा हमारा उपहास !!
डूबने को नहीं "अंकुरित" हो रही जमीन!
ये बड़ी शर्म की बात है !!

आखिर हम यहाँ ही क्यों है?,आखिर हम ही क्यों है?- अंकुर मिश्र "युगल"


क्या हम कभी सोचते है -
आखिर हम यहाँ क्यों है ?
आखिर हम यहाँ ही क्यों है?
आखिर हम क्यों है?
आखिर हम ही क्यों है?
मुझे नहीं लगता की हम इस तरीके के प्रश्नों को अपने दिमाग में कभी भटकने भी देते होंगे, हम तो बस अपने कार्य कलापों में व्यस्त रहते है!
लेकिन यह प्रश्न वो प्रश्न है जो एक बार दिमाग में आ गए तो अच्छे से अच्छे "निकम्मे"(काम चोर) मनुष्य को असाधारण बना देते है !
हमारे जीवन का लक्ष्य अपना लक्ष्य पाना तो होता है पर उस लक्ष्य को पाने के बाद हम संतोष रूपी जंजीर में जकड जाते है , जबकि वास्तविकता यह है हम यहाँ केवल हमारे लिए नहीं है, इस दुनिया में एक पत्थर भी खुद के लिए नहीं है और कहे तो खुदा भी खुदा के लिए नहीं है,उसी तरह हम भी है जो हमारे लिए नहीं है! हमें यही सोचना है की हमारा "हम" हमें न जकड पाए और हम सोचे "आखिर हम यह क्यों है?"आखिर हम ही यहाँ क्यों है?"," यदि हम प्रश्न पर विचार करे तो हमें समझ में आयेगा की हम यहाँ किसी विशेष कार्य की वजह से है, अब यह कार्य हमारे परिवार में हो सकता है, हमारे समाज में हो सकता है, हमारे देश में हो सकता है ! बस यहाँ आवश्यकता है हम उनकी आवश्यकता को समझे और "आखिर हम यहाँ क्यों है?"और "आखिर हम ही यहाँ क्यों है" जैसे प्रश्नों का उत्तर खोजे !!!
इसी तरह हम सोचे तो एक साधारण सा दिखने वाला अशधारण प्रश्न हमारे दिमाग में आता है की "आखिर हम क्यों है?" और "आखिर हम ही क्यों है?" !
यह प्रश्न तो साधारण है पर इसके उत्तर पर व्याखान कोई नहीं दे सकता या देने में कठिनता होगी ! जबकि उत्तर हमें कही से खोजना नहीं है उत्तर तो हमारे अंदर से ही मिलता है की किसी विशेष काम को करने के लिए विशेष व्यक्ति की जरुरत होती है और "विशेष" व्यक्ति एक ही होता है! बस अब सोचना क्या है हमारी रचना उस विशेष कम को करने के लिए हुई है बस हमें वो विशेष कार्य खोजना है और उसको हल करना है ! यही हमारे दूसरे प्रश्न का उत्तर है -"आखिर हम क्यों है?", और "आखिर हम ही क्यों है?"!!
उत्तर तो मिल गए पर इनको वास्तविक जीवन में अमल करना बहुत ही कठिन कार्य है पर असंभव नहीं है !अब हम इस ब्रह्माण्ड की सबसे अनोखी रचना है तो हम कठिन कार्य को सरल बना ही सकते है , ऐसा मेरा सोचना है ! मै सोचता हूँ मनुष्य कोई भी कार्य कर सकता है बस उसे निचे दिए ६ बिन्दुओ पर अमल करना होगा, इनका अमल करने पर असंभव कार्य में भी संभवता का "अंकुरण" होने लगता है-
-धैर्य
-कठिन परिश्रम
-आत्ममंथन
-आत्मनियंत्रण
-समय का सदुपयोग
-विश्वास (स्वयं पर)
"सत्य , साहित्य और समाज "
अंकुर मिश्र "युगल"

हर क्षण हर पल कितना अहम हुआ विज्ञान ! अंकुर मिश्र ''युगल''

हर क्षण हर पल कितना अहम हुआ विज्ञान !
चाँद सितारों को छू लेना अब बिलकुल आसान !
नै क्रांति पैदा कर दी है धरती पर विज्ञान ने !
नए-नए सोपान सृजन के रच डाले इन्सान ने !
हुआ असंभव भी अब संभव है इसका हर प्रयोग है !
सपनो को साकार करेगी इसकी ''अंकुरित'' उडान !
..............हर क्षण हर पल कितना अहम हुआ विज्ञान.....
श्रम और समय बचा देता है प्रगति पथ का नायक है !
शांति सुरक्षा और सम्रिथ्थी में भी बहुत सहायक है !
अब तो यह वरदान हो गया उन्नति की पहचान है !
वैज्ञानिक पध्दती अपना कर खुश है आज हर किसान !
.............हर क्षण हर पल कितना अहम हुआ विज्ञान........
विकसित हो विज्ञान मगर मानव हित सर्वोपरि हो !
क्या प्राणी क्या जीवजन्तु जड़ चेतन को हितकर हो !
कठिनाई का समाधान हो ऐसा बस ऐसा विज्ञान हो !
इसके हर संभव से बन जाये अपना देश ''महान''!
.............हर क्षण हर पल कितना अहम हुआ विज्ञान.

PLEASE Sir, एक कदम हमारे साथ भी --- अंकुर मिश्र "युगल"


आज शिक्षा की स्थिति पर विचार करने की इच्छा हो रही है,
हमारे राजनीतिज्ञों का कहना है की हमारा देश शिक्षा के क्षेत्र में लगातार उन्नति कर रहा है, और हाँ यह सत्य भी है की हम शिक्षा में लगातार उन्नति के मार्ग पर अग्रसर है !
परन्तु एक कठोर वास्तविकता ये भी है की ये उन्नति केवल उन्नतिशील क्षेत्रो को ही मिल रही है, यहाँ उन्नतिशील का सीधा मतलब शहरीय क्षेत्रो से है,
जी हाँ हम जानते है की यहाँ(शहरिय क्षेत्रो में)) देश के सर्वश्रेष्ठ तकनीकी संस्थान, प्रद्य्गिकीय संस्थान, प्रबंधन संस्थान एवं सभी बड़े संस्थान है परन्तु इन सबको विकास के बड़े बड़े पैकेज देते समय हम ये भूल जाते है की इन संसथानो में पढने वाले विद्यार्थी ग्रामीण क्षेत्रो से ही होते है !यहाँ बात इन बड़े बड़े पैकेजो की नहीं है यहाँ तो शिक्षा के बदलेव की बात है, हमें तो खुशी होती है की देश को तकनीकी रूप से मजबूत बनाने में हमारी सरकार इतने महत्वपूर्ण कदम उठा रही है परन्तु ये सब शहरिय इलाको में ही क्यों,हमारे गाँवो को भी देखिये "सरकार",
यदि हम ग्रामीण क्षेत्रो में इस पर नजर डालते है तो कुछ सूना-सुना सा नजर आता है, मै समझता हूँ इसका श्रेय केवल सरकार को नहीं जाता है वरन सरकार और जनता दोनों ही इस दशा और दिशा के दोषी है,
दृष्नीय तो यह है की सरकार ने गाँवो में विद्यालयों को तो बड़ी मात्रा में खड़ा कर रखा है परन्तु इनका सञ्चालन करने या अध्यापको से करवाने में वो खरी नहीं उतर पा रही है, वहाँ उन्होंने इतनी सुविधएं दे रखी है की आज हर ग्रेजूएट सोचता है की "यार मास्टर बन जाओ मस्त जिंदगी गुजर जायेगी" उन्हें उन भविष्यो की चिंता नहीं है जो आंगे देश के कर्णधार होंगे ! इसे क्या कहा जाये ग्रामीण प्रतिभाओ को दबाने की सोची समझी योजना या फिर .................. !! जैसा भी हो स्थिति सोचनीय है !देश की शिक्षा पध्धातियो में कुछ बदलाव की आवश्यकता हमेशा नजर आती है, इन समस्यायों में सबसे पहली समस्या "तकनीकी" शिक्षा की रहती है हम देखते है की ग्रामीण विद्यार्थी हमेशा इस कठिनाई से गुजरता है जब भी वो अपनी आरंभिक पढाई के बाद किसी तकनीकी शिक्षा के बारे में सोचता है तो उसे हमेशा अपनी नीव कमजोर नजर आती है वाही आप शहरिय क्षेत्रो में देखिये एक "एल.के.जी." का बच्चा तकनीक से जुड़ जाता है ! परन्तु ग्रामीण क्षेत्रो में देखे तो "तकनीकी "उदाहरण "कम्पूटर" का कोई दशवी कक्षा का विद्यार्थी "क" भी नहीं जनता !! इसी वजह से आज के भारत में ग्रामीण क्षेत्रो से प्रतिभाओ का पलायन होता जा रहा है !!
इन सब की वजह केवल सर्कार भी नहीं है जनता को भी जागरूक होंना पड़ेगा, सर्कार से गुजारिश करनी होगी ! की उसे कैसी शिक्षा की जरुरत है , और सरकार को शुरुआती शिक्षा में कुछ बदलाव करने होंगे सामान्य स्तर से ही ग्रामीण बच्चो को "तकनीकी" शिक्षा से जोडना होगा ! कक्षा एक से लेकर बारहवी तक "कम्पूटर" जैसे विषयों को जोड़ कर एक सराहनीय कदम उठाना होगा ! और जनता को महत्त्व समझते हुए इस तरीके की शिक्षाओ को अनिवार्य करना होगा !!आज के बदलते युग में प्रतिभाओ को और प्रतिभावान बनाकर उन्हें देश के काम आने का मौका देना होगा !! आशा है की इस ग्रामीण स्थिति पर सरकार की नजर जरुर पड़ेगी और वो जल्द से जल्द कुछ सराहनीय कदम उठाएगी.!!!

हमारे अधिकतम राजनेताओ के शब्दकोष में "ईमानदारी" शब्द होता ही नहीं है- अंकुर मिश्र "युगल"


माननीय मंत्री जी कह रहे है "हमारे पास अलादीन का चिराग नहीं है "!अरे आप ये क्या बोल रहे है आपके मंत्रालय से ही कुछ दिन पहले खबर आई थी की "हम बहुत जल्दी ही महंगाई पर काबू पा लेगे" !तब कोई खजान हाथ लगा था क्या ?यही तो समझ में नहीं आता कम से कम चुनाव के बाद के वादों को तो पूरा करिये!जी हाँ मै बात कर रहा हू अपने वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की जिन्होंने कुछ दिन पहले देश की सबसे बड़ी समस्या "महंगाई" को काबू करने की बात कही थी ,अब ये बोल रहे है "हमारे पास कोई अलादीन का चिराग नहीं है" अरे आप के पास "देश की वो सम्पूर्ण शक्तियां तो है,जिन्हें जनता ने आपको प्रदान की है"आप स्विस बैंको में जमा पैसा भारत ला सकते है, अप भ्रष्टाचार को खत्म करने में अपनी शक्तियों का उपयोग कर सकते है,और ऐसे ही अनेक कम आपके आदेशो का इंतजार कर रही है ! माननीय मंत्री जी देश की सोचिये यह कोई व्यक्ति विशेष का जीवन नहीं है, आपको इसी जनता ने वहाँ पहुचाया है,यह देश भी उन्ही सब का है!यहाँ वाद-विवाद या हिम्मत हारने से काम नहीं चलने वाला मंत्री जी,आपको जनता ने इसलिए नहीं भेजा की आप उस कुर्सी पर बैठकर ऐसे जबाब दे !देश की जनता का विकास ही आपका कर्तव्य है! मै सोचता हू यदि प्रत्येक मंत्री अपने कर्तव्यों का निर्वाहन इमानदारी से करे तो "भारत" को विकसित होने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती ! लेकिन लगता है हमारे अधिकतम राजनेताओ के शब्दकोष में "ईमानदारी" शब्द होता ही नहीं है !अरे अलादीक का चिराग तो अलादीन के पास भी नहीं था उसे भी खोजना पड़ा था! मंत्री अब ऐसे शब्द मत कहियेगा,वर्ना जनता अब कुछ ज्यादा ही समझदार हो गई है,अब वो इतने समय से आपको देख रही है आपसे जबाब मांग सकती है और हाँ जबाब भी "पाई-पाई का

"दादा " नहीं तो क्रिकेट नहीं --अंकुर मिश्र "युगल"

"दादा " नहीं तो क्रिकेट नहीं --अंकुर मिश्र "युगल"

भारतीय क्रिकेट की शान सौरभ गांगुली को इंडियन प्रीमियर लीग की किसी टीम में जगह न मिलना किस बात को प्रदर्शित करता है, बांकी टीमों को छोडिये उन्हें उनकी घरेलु टीम कोलकत्ता नॉटराइडर में जगह न देना क्रिकेट को गिराने की एक मुहीम को दिखता है ! भारतीय क्रिकेट टीम को विश्व के मानचित्र में पहचान दिलाने वाले सौरभ गांगुली के बिना कोई क्रिकेट मैच संभव नहीं है ! आखिर क्या कारण है जिनके वजह से उन्हें केकेआर या किसी एनी टीम में जगह नहीं दी गई ,क्या किसी ने ग्रेग चैपल सर से किसी ने सलाह ली है या फिर उनके परफार्मेंस को देखते हुए ऐसा हुआ !पर जो भी हो सौरभ गांगुली भारतीय क्रिकेट के लिए ही नहीं बल्कि विश्व क्क्रिकेट के लिए माननीय है ,उनका न खेलना विश्व क्रिकेट में भूकंप ला सकता है ,क्रिकेट प्रेमी तो कहते है "दादा नहीं तो क्रिकेट नहीं " माननीयों यदि क्रिकेट में आतंरिक या बाह्य किसी भी रूप में लगाव रखना है लो इस प्रतिमूर्ति को नजरंदाज मत करो! २००३ का विश्काप भूल गए क्या ,उनकी १८३ की पारी भूल गए क्या ,उनके १००००० से ज्यादा रन भूल गए क्या या उनकी टीम भावना को भूल गए यदि भूल गए है तो यद् करिये !"दादा" के बिना क्रिकेट संभव ही नहीं है !!