नजरिये की राजनीती से लड़ता भारत :- अंकुर मिश्र “युगल”

परिस्थितियां तो हमेशा परिवर्तनशील होती ही, लेकिन जब ऐसी परिस्थितियों का सामना जनता को करना पड़े जिसके लिए जनता वाध्य हो और उसे किसी भी परिवर्तन की आशाएं न दिखे तब जनता क्या करे बड़ी दुविधा हो जाती है, इस भ्रम की शिकार जनता किस नजरिये से अपना हित सोचे यह बड़ा ही कथानतम प्रश्न बन जाता है ! आज का भारत कल के भारत से अच्छा है यह कैसे कहे या आने वाले कल का भारत आज के भारत से अच्छा होगा ये कैसे कहे, जब हम आज को अच्छा नहीं बना पा रहे, तो कल की बात करना ही बेकार है !


देश तो लोकतान्त्रिक है, लेकिन क्या यहाँ जरा सा भी लोकतंत्र के सम्मान है! देश सर्वोपरि है, देश को प्रधानमंत्री चलाता है, लेकिन प्रधानमंत्री को कोई और यो चलाता है !!
देश में करोड़ो की संपत्ति बड़े-बड़े पार्को, दार्शनिक स्थलों को बनाने में लगा दिए जाते है, फिर भी देश में करोणो लोग भूखे पेट क्यों सोते है !!
हमसे सुरक्षा के नाम से करोड़ो रूपये वसूले जाते है , फिर भी आतंवादियो को देश के अंदर रखकर उनकी सुरक्षा कराकर उन्ही से बम कांड क्यों करवाए जाते है !!
देश का सफ़ेद पैसा देशीय बैंको में न रखकर विदेशो कला धन बनाकर क्यों रखा जाता है, उसे विदेशो के उन्थान में क्यों लगाया जाता है !!
राजनीती देश के संचालन का सर्वोच्च माध्यम है, फिर भी इस सर्वोच्च स्थान पर “खूनियों”,“भ्रष्टाचारियों” ,”अनपढो” और “बलात्कारियों” को क्यों बैठाया जाता है !!
........................... इत्यादि अनेक ऐसे वाद-विवाद के बिंदु है जिसमे मै और हम की लड़ाई मची हुई है !
आखिर ये कैसा नजरिया है जिसके नीचे खुद को दबाए जा रहे है !
राजनीती के नजरिये पर नजर :-
आखिर इतने वोट किसके लिए पड़ते है “खूनियों”,“भ्रष्टाचारियों” ,”अनपढो” और “बलात्कारियों” के लिए या खुद आत्महत्या करने के लिए ! यहाँ तो राजनीती की परिभाषा ही समझ में नहीं आ पाता और भारत के “वोटर” बन जाते है किस आधार पर, “वोटर” तो ठीक भी है लेकिन यहाँ के “राजनेता” को भी राजनीती की परिभाषा नहीं पता होती और वो मंत्री बन जाता है ! ऐसी स्थिति में बेहद कष्ट के साथ कहना पड़ता है की “हम एक लोकतान्त्रिक देश के निवासी है” ! लेकिन उससे भी ज्यादा काष्ट तब होता है जब हमारा “वोटिंग” का नजरिया हमारे सामने “अंकुरित” होता है ! वो भी ऐसा नजरियाँ जिसमे “देश” के नाम पर वोटिंग का सवाल ही नहीं उठता ! लोग कहते है – वो(राजनेता) “ब्राह्मण”, “क्षत्रिय”, “शुद्र” या “वैश्य” था इसलिए मैंने उसे वोट दिया, वो(राजनेता) भाजपा, कांग्रेस , बसपा ,माकपा, जदयू या सपा का था इसलिए मैंने उसे वोट दिया, वो मेरा रिश्तेदार था इसलिए मैंने उसे वोट दिया वो मेरे घर वोट मांगने आया था इसलिए मैंने उसे वोट दिया .................................................... !
लेकिन इन सबसे ऊपर क्या कभी किसी ने सोचा की कौन है जो “भारत” के लिए खड़ा हुआ है, कौन सा ऐसा प्रत्याशी है जो देश-विकाश में काम कर सकता है ??????
कौन सा ऐसा राजनेता है जो गर्व से कह सके की “मै भ्रष्ट नहीं हूँ”, “मै ख़ूनी नहीं हूँ”...............
मेरे विचार से तो नहीं !! “Right to Reject” की मांग बिल्कुल सही है !
पञ्च साल की मुश्किल से तुरंत लड़ना ज्यादा अच्छा है, विकास तो होगा ! और राजनैतिक पार्टियां केवल उन्ही प्रत्याशियों को मैदान में उतरेंगी जिनकी छवि अच्छी होगी !
आज के भारत को कल से बेहतर बनाने के लिए राजनैनिक नजरिये को नजरअंदाज करना सबसे बड़ी भूल है, वर्ना आज के सरकार की तानाशाही कल के “भारत” को ...............................!!
नजरिया ही एक ऐसा ब्रह्माष्त्र जो “विकसित भारत” के स्वप्न को हकीकत में बदल सकती है !!