हम जानते है फिर भी चुप है!- अंकुर मिश्र "युगल"


प्रकृति से खिलवाड का भयावह दृश्य तो हम सभी ने देखा ही है !अब भी वक्त है प्रकृति की चेतावनी को समझ लेना चाहिए उसके साथ हो रहे अपमनानीय व्यव्हार को समाप्त करना चाहिए, हमें उसे अपनत्व के साथ जोडना चाहिए वरना वह दिन दूर नहीं जब हम उसकी आग में ध्वस्त हो जायेंगे और हमें पश्चाताप का समय भी नहीं मिलेगा!
आज हम जिसकी छत्रछाया में जीवन व्यतीत कर रहे है उसे ही अपने परिवार से अलग मान रहे है और अमाननीय व्यवहार किये जा रहे है !!!
जी हाँ यहाँ हम बात कर रहे है उस पृथ्वी की जिसमे हम रहते है, उस आकाश की जिससे हमें छत मिली हुई है , उस हवा की जिसमे हम साँस ले रहे है , उस पानी की जिसकी वजह से हमारा जीवन है, उस आग की जिसमे हम खाना पकाते है और हर उस तथ्य की जो हमें प्रकृति प्रदान करती है , और इन्ही के साथ हमारा व्यव्हार भी आज द्रिश्नीय हो गया है यहाँ कारन भी खुला हुआ है , हम खुद के लिए वायु चाहिए, और जानते भी है वायु ही जीवन है और पता भी है की ना ना प्रकार के कारखानों तथा वाहनों से उत्सर्जित "ग्रीनहाउस गैस" वायु में क्या असर कर रही है . करकारखानो ,वाहनों तथा फ़सिल तेलों के जलने से उत्पादित ग्रीनहाउस गैसों से आज विश्व एक सबसे कुख्यात तथा गभीर्शील विषय से जूझ रहा है जिसे वैज्ञानिक ग्लोबल वार्मिंग कहते है.इससे धरती की छतरी "ओजोन परत" में छेद हो रहे है जिससे हमे चर्म रोग इत्यादि हो रहे है.ग्लेशियरों का पिघलना, निचले समुंदरी इलाको का डूब जाना उपरांत का दुस्परिनाम है. लेकिन फिर भी हम कुछ नहीं कर रहे !!!!!
जल की तरफ नजर डाले तो यह जरुर कहेंगे "जल ही जीवन है" और आज इसके साथ हो रहे वर्ताव को भी हम जानते है जो जल प्रदुषण के रूप में खुख्यात है केमिकल तथा अन्य हानिकारक पदार्थो का अत्यधिक मात्रा में नदी, तालाब इत्यादि में पाया जाना जल प्रदुसन कहलाता है.जलीय जीव-जन्तु के लिए जानलेवा साबित जल प्रदुसन वातावरण के कई श्रृंखलाओ में बाधा लता है जिससे कूद्रत के प्राणियों को मुश्किलों का सामना करना परता है.नदी के उपरी सतह पर एक परत जम जाने के वजह से जलीय जीव-जन्तु को आक्सीजन तथा रौशनी न मिलने से उनकी मृत्यू हो जाती है.जिनके अभिशाप में हम आज जी रहे है !इसी तरह पृथ्वी के साथ देखे तो ना ना प्रकार के कीटनाशक तथा अन्य खादों का अत्यधिक मात्रा में प्रयोग करके इसे बंजर बनाने पर तुले है .कुरा-कचरा तथा अन्य हानिकारक पदार्थों जमीन में गारने से वहां के जमीन के रोपण शक्ति में कमी होती जा रही है.हमारे खाद्य पदार्थ दूषित होते जा रहे है जिससे हम अनेक रोगों के शिकार होते है, फिर भी हम चुप है!इसी तरह हर प्राकृतिक तथ्य के साथ हमारा व्यव्हार हमें खतरे में डाल सकता है जिससे जापान जैसी तबाहियां आम हो जायेगी और एक दिन ये होगा की पूरा विश्व जापान होगा!!
यहाँ सबसे बड़ी बात यह है की हम जानते है फिर भी चुप है!!