भीड़ का मतलब “वोट” नहीं होता “राजकुमार जी” : अंकुर मिश्र ”युगल”


उत्तर प्रदेश के विधानसभा के चुनावो ने ऐसे रहस्यों का खुलासा किये है जिनका खुलासा केवल जनता ही कर सकती थी !
जिस तरीके से पिछली पंचवर्षीय में “सपा” सरकार का विकल्प “बसपा” बनी थी ठीक उसी तरह इस पंचवर्षीय में जनता ने परिवर्तन ही सबसे अच्छा विकल्प समझा और “सपा” को “बसपा” का अतुलनीय विपल्क घोषित किया ! वैसे परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है ! जनता विकास में भी परिवर्तन ही चाहती है और उसने वही किया ! इस चुनाव में सबसे बड़ा दृश्य ये था की जनता जगरूप हो चुकी है इसी वजह से इस बार वोटो का प्रतिशत भी बढ़ा ! इसे “अन्ना” मुहीम का परिणाम कहे या जनता की जागरूपता ?? कुछ भी बेहतरता भारतीय राजनीती में ही अति है !! ये तो बात थी, प्रदेश की दो बड़ी पार्टियों और उ.प्र. राजनीती की ! वाही नजर डाले देख की दो बड़ी पार्टियों : “भाजपा और कांग्रेस” की तो दृश्य कुछ अदृश्य सा लगता है ! दोनों पार्टियों ने अपने अपने दिग्गजों को लेकर उ.प्र. की राजनीती की लेकिन परिणाम कुछ विपरीत ही आये ! वैसे भाजपा के पास ज्यादा खोने के लिए कुछ था नहीं क्योंकि उनका ज्यादा कुछ दाव पे नहीं था ! लेकिन कांग्रेस ने उ.प्र. की राजनीती जिस “राजकुमार” को दांव में लगाकर की वो जरुर द्रिश्नीय था ! कांग्रेस ने विधानसभा चुनावो में दांव में लगाया “राहुल गाँधी” को, राहुल गाँधी ने प्रदेश में 2 महीनो में 211 सभाए कर डाली ! और
इन सभाओ में लोगो की भीड़ “करोणों” में थी,
राहुल गाँधी ने अपनी छवि के विपरीत “भाषण” दिए !
जतिवाद्ता, स्थानवादिता का सहारा लिया जो “जनता” उनसे भी पूछ सकती थी ! लेकिन जनता शांत रही और उसी वाही जनता जो राहुल का भाषण सुनने करोणों में आती थी उसने कांग्रेस को विधानसभा में “पचासा” भी न मरने दिया ! उसने अपने अनुसार अपनी सरकार चुनी और एक अन्य युवा को मौका देना ज्यदा उपयोगी समझा !
“अखलेश यादव” की अग्निपरीक्षा है इस बार और देखते है वो इसमें कितने खरे उतरते है , उन्हें याद रखना होगा आंगे “लोकसभा” चुनाव है!