“राष्ट्रपति” का पद किसी दल का “मंत्रिपद” नहीं है मान्यवर : अंकुर मिश्र "युगल"

बात राष्ट्रपति पद की जो किसी देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण पद होता है!
एक लोकतान्त्रिक देश में प्रधानमत्री के पद को जिस गरिमा से देखा जाता है वास्तव में “राष्ट्रपति” का पद उससे भी ऊँचा होता है, उसकी गरिमा एवं उस पद पर बैठा व्यक्तित्व देश को किसी दूसरे देश के सामने प्रस्तुत करता है, देश की प्रथम व्यक्ति की तुलना उस व्यक्ति को दी जाती है ! ऐसे ही महत्वपूर्ण पद के लिए हमारे देश में चुनाव होने वाले है, लेकिन चुनाव पद्दति को देखने से जो लचीलापन एवं भ्रश्ताचारिता समझ में आती हो वो वास्तव में द्रिश्नीय है, देश को राष्ट्रपति पद में जो व्यक्तित्व आज तक प्राप्त हुए है उनमे से “अब्दुल कलाम” एवं “राजेंद्र प्रसाद” ही अतुलनीय थे, यह एक ऐसा पद है जहां किसी राजनैतिक व्यक्ति को नही बैठालना चाहिए ! लेकिन भारत के “राष्ट्रपति” चयन की जो प्रक्रिया है उससे किसी नैतिक व्यक्तित्व को पहुचाना मुश्किल ही लगता है! इस महत्वपूर्ण पद के चयन के लिए देश की राजनैतक डालो में जिस तरह का वाद विवाद, घमासान मचा हुआ है, उससे यही लगता है की “राष्ट्रपति” का पद किसी दल का “मंत्रिपद” हो ! राजनैतिक दलों का ये घमासान देश के इस पद के लिए उपयुक्त व्यक्तित्व को यहाँ पहुचने में वाधा बन जाता है, और देश को ऐसा राष्ट्रपति मिल जाता है जो देश का नहीं बल्कि किसी राजनैतिक दल विशेष का होता है! २०१२ राष्ट्रपति की चुनाव में “कलाम” जैसे महान व्यक्तित्वो के होने के बावजूद राजनेता ऐसे व्यक्तियों को चुनने में लगे है जो राजनितिक पृष्ठभूमि से सने हुये है , और भरत के प्रत्येक राजनेता की पृष्ठभूमि तो लगभग प्रत्येक नागरिक को पता होगी ! राष्ट्रपति के चुनाव पद्दति में परिवर्तन करना तो कथिक कम है लेकिन क्या जनता से इस पद के उम्मीदवार के लिए “मतदान” नहीं होना चाहिए ! राजनेताओ को इस पद में तो राजनीती नहीं करनी चाहिए, वो सुबक की चाय से रत के खाने तक के हर चीज में राजनीती करते है लेकिन देश के इस सर्वोच्च पद के लिए भ्रष्ट राजनीती देश को किस कठघरे में खड़ा करेगी ये तो भविष्य ही बताएगा !