क्या ऐसा होता है 'लोकतत्र' : अंकुर मिश्र "युगल"

तानाशाही, लोकतंत्र, राजतन्त्र या प्रजातंत्र !!

क्या कहे इस शासन को जिसमे खुद के आलावा किसी की सुनानी ही नहीं है, देश की एक अरब से ज्यादा आबादी की आवाज कुछ चंद नेताओ के जरिये दबाया जाना आखिर किस तथ्य का 'अंकुरण' है, लोकतान्त्रिक कमियों के बावजूद देश लिखे हुए लोक्तंत्र को मन रहा है उसके नियमों का पालन कर रहां है जनता को खा जाता है वो अपनी शिक्षा का प्रयोग नहीं कर रहा है लेकिन क्या उस लोकतंत्र या संविधान में कही लिखा गया है की देश में चुनाव लड़ने के लिए कोई निर्धारित शिक्षा होनी चाहिए और यही कारण है की देश के संचालको में अधिकतर अशिक्षित ही पहुचते है ! चुनाव लड़ने के लिए किसी निर्धारित शिक्षा का निर्धारित न होना हमारे लोकतत्र का खोखलापन दिखाता है ! दूसरा सबसे बड़ा खोखलापन जो भारतीय राजनीति को भ्रष्ट किये हुए है : चुनाव लड़ने की अधिकतम उम्र निर्धारित न होना निम्नतम उम्र तो निर्धारित कर दी लेकिन कोई भी नेता अंतिम साँस तक चुनाव लड़ सकता है ! ये तो लोकतान्त्रिक कमिय है जिन्हें जनता नजरअंदाज कर रही है, दूसरी ओर देश में जिस तरह का राजतन्त्र चल रहा और आज वही राजतन्त्र , तानाशाही बनती जा रही है उससे जनता कब तक बचेगी ! देश में राष्ट्रपति चुनाव पक्तिबद्ध है, प्रत्यासी का चयन राजनैतिक दल कर रहे है , कुछ प्रत्यासी अपने आपको इस दौड में ला रहे है लेकिन सोचनी बात यह है की देश के महान व्यक्तित्व भारत रत्न : "अब्दुल कलाम " जो एक अरब से ज्यादा लोगो की पसंद है , को राजनेताओ ने इस पद से दूर क्यों रखा हुआ है ! आखिर वो पद "देश के प्रथम नागरिक" का पद होता है और उसी पद के लिए देश की आवाज नहीं सुनी जा रही आखिर उनमे कमी क्या है :
१. उनमे निर्णय नेले की क्षमता है !
२. महान वैज्ञानिक है , पूरा देश उन्हें पसंद करता है !
३. देश के विकास के बारे में सोचते है !
४. किसी दल विशेष के लिया काम नहीं करते !
५. उन्हें किसी की चलूसी करनी नहीं आती !
यह प्रश्न किसी व्यक्ति विशेष का नहीं है यह प्रश्न है पूरे देश का ! जो किसी दल या राजनेता से नहीं यह प्रश्न है भारत के संविधान से, भारत के सुप्रीम कोर्ट से ! किसी राजनेता या दल से प्रश्न पूंछने का कोई औचित्यही नहीं है ! सभी घटक है लेकिन संगठित है ! आपकी कूटनीतियो की किताब के नियम कभी निराधार नहीं जाने देते ! सोचनीय लेख है , संविधान में परिवर्तन की जरुरत है , यदि ऐसा होता है लोकतंत्र तो हमें नहीं चाहिए लोकतत्र !!
क्या जनता निराधार है ???