यदि घर में रहकर घर के लिए बात करना जुर्म है तो मुझे भी जेल चहिये : अंकुर मिश्र “युगल”

एक हमारे देश के मेहमान है जिन्हें सलाखों के पीछे रखकर सारी सुविधाए उपलब्ध कराई जा रही है ! दूसरी तरफ असीम त्रिवेदी है जिन्हें अपने ही देश के अंदर देशद्रोह के आरोप में पकड़कर कांड किया जाता है ! देश ओ आजादी के ६५ वर्ष पुरे होने चले है , देश में कहने के लिए लोकतंत्र भी है यहाँ वोट देने की आजादी है अपने मन का नेता चनने की आजादी है लेकिन यदि वह नेता पंचवर्षीय के अंदर तानासहियत पर उतारकर देश विनाश में लग जाये तो उसके खिलाफ बोलने की आजादी नही है ! देश लोकतन्त के तहत चलता है, ऐसा लोकतंत्र जो आज के नेताओ ने पूरी तरह खोखला कर दिया है उनके खिलाफ बोलने की आजादी इस लोकतंत्र में नहीं है !! लोकतंत्र की सबसे बड़ी कमी, देश को भालिभाती कौन चला सकता है एक पढ़ा लिखा जवान नेता न ?? लेकिन भारत के लोकतंत्र का सबसे बड़ा खोखलापन ये है की राजनीती के पदार्पान की निम्नतम सीमा तो निश्चित है लेकिन अधिकतम सीमा की कोई चिंता नहीं है, जब पदार्पण ही ५० के बाद होगा तो देश को क्या खाक ‘जवान’ रखेगे !! वाही दूसरी ओर देश की उच्चतम शिक्षा के नियमों में फेरावदल करने वाले वाले, देश के लिए निर्णय लेने वालो की निम्तम शिक्षा निश्चित नहीं है, अत्याचारियो की फ़ौज देश के राजनीती करती है ! इन सबका होना भारत का दुर्भाग्य ही है ! लोकतंत्र के मंदिर को बचने के लिए अनेक सैनिको ने जन दी लेकिन वो षड्यंत्रकर्ता अभी भी हमारा मेहमान है , मुंबई में हाजरो निर्दोष मरे गए लेकिन कसाब का अभी तक कोई हिसाब नहीं हुआ, लोकतंत्र के पुजारी कहते है: मुस्लमान भाई नाराज हो जायेगे, लेकिन आज तक किसी मुस्लमान ने आवाज नहीं उठाई की कसाब और अफजल गुरु को फांसी न हो ! पहले मंदिर मस्जिद पर लड़वाते थे ! अब इन्हें बंद कर रखा है चुनाव के “रोमाच” के लिए ! क्या गलत किया असीम त्रिवेदी ने देश की छवि यही है वास्तविकता यही है ! लोकतंत्र के खिलाडियों संभल जाओ देश हमारा है वेरना देश में एक ऐसी महाक्रांति आयेगी की अपनी पीढियों को भी जबाब नहीं दे पाओगे : न तेरा है न मेरा है ये हिंदुस्तान सबका है नहीं समझी गयी ये बात तो नुकसान सबका है !


यहाँ तो मै भी कहूँगा यदि देश के लिए देश में रहकर बात करना ‘लोकतंत्र’ का जुर्म है तो मुझे भी जेल में बंद करो !