देश की दशा पर दिल से नहीं दिमाग से सोचने की जरुरत है : अंकुर मिश्र ‘युगल’

देश में परिवर्तन के लिए हमेशा से लोकतान्त्रिक परिवर्तन की जरूरत रही है, वैसे तो आज की राजनीति को देखते हुए देश में लोकतंत्र है , ऐसा सोचना भी गुनाह है ! देश को बुरी तरह से तानाशाही सरकार ने जकड़ रखा है, और वो भी ऐसे दल ने जिसे देश की आजादी में प्रमुख सहायक माना जाता रहा है ! जिसके जवाहर लाल नेहरू जैसे नेताओ की वास्तविकता को नकारते हुए लोग आदर्श मनते है, जिस दल ने ५० से ज्यादा सालो तक आजाद देश में शासन किया हो और देश की हालत उस मझधार तक न पहुच पाए जहां के लिए वो वांछनीय हो ऐसी सरकार को क्या कहेंगे ?? कहने को तो इस दल में विद्वानों का भंडार है लेकिन उनकी विद्वता का इस्तेमाल आखिर किस देश के लिए होता है ? देश की वर्तमान समस्याओ को बताने की जरुरत नहीं है एक साधारण आदमी भी प्रत्येक समस्या से अवगत है ! जरुरत है निवारण की और निवारणकर्ता की ! ऐसी समस्याओ को देखते हुए हुए देश के राजनैतिक गलियारे में एक नए दल का आवरण, हो सकता है देश को एक नई उर्जा प्रदान करने में सहायक हो सके ! अरविन्द केजरीवाल जिस व्यक्ति को आज किसी पहचान की जरुरत नहीं है ! देश में समाज सेवक से राजनेता की ओर मुडने वाले इस व्यक्ति ने पिछले एक साल में समाज सेवक अन्ना हजारे के साथ जन जागरण का जो कार्य किया है वो वास्तव में सराहनीय रहा है ! अब उनके इस राजनैतिक दल को जनता का कैसा नजरिया मिलता है यह देखने लायक होगा !
वैसे आज की नजर से देखा जाये तो देश की बिगड़ती समस्या के निवारण के लिए हमेशा किसी न किसी नए दल ने ही परिवर्तन किया है और आज के राजनैनिक दलों और राजनेताओ को देखते हुए फिर से एक बदलाव की जरुरत देश को है ! पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपने कर्तव्य भूल चुके है ! दोनों का यह नजारा हिया दिन में संसद के अंदर कुर्सिय फेंकते है और रात में एक् साथ भोजन करते है , आखिर इसका मतलब क्या निकला जाये ?? क्या जनता इन पार्टियों के लिए ‘नौकर’ है !! जिस सरकार को आम जनता ने चुनकर वहाँ तक पहुछाया है जो देश के लिए नौकर है वो आज अपना पद भूलकर आम जनता को नौकर समझ रहे है ! जाब कभी भी मनुष्य अपना कर्तव्य भूलकर मालिक बनाने की गलती करता है तब-तब उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है ! अब बारी है इन तानाशाओ की ! अभी तक देश में कमी थी विकल्प की लेकिन आज देश को केजरीवाल ऐसा विकल्प दे सकते है जो इस भ्रष्टता को समाप्त करने में सहायक हो सकता है ! आज यहाँ भी अनेक सवाल खड़े हो रहे है , आखिर इन पर विश्वास क्यों करे ? इसके लिए एक् सीधा सा जबाब है : एक् बार आप जातिवाद , क्षेत्रवाद और सभी प्रकार के वादों को छोड़कर विकास के बारे में दिल से न सोचकर दिमाग से सोचो आपका दिल भी आपको इसी विकल्प की ओर इसारा करेंगे ! और ऐसा करने के बाद उन आलोचकों को भी जबाब दे सकते है ! ऐसा लगता है दिल्ली गलियों से ये आवाजे भी आती है ,जिन्हें भैसे चराना था वो सरकारे चलते है