मिडिया इतनी भी खोखली मत बनो : अंकुर मिश्र 'युगल'

मै अन्ना हजारे की बात से पूरी तरह सहमत हूँ, पत्रकारिता विकास का एक ऐसा स्तम्भ है जिसके जरिये किसी भी परिस्थिति में देश को बचाया जा सकता है ! आम जनता की आवाज उठाने का एक ऐसा माध्यम जो संसार के कोने कोने तक आसानी से जा सकती है ! गाँव की उन्नति तो रही है लेकिन उससे ज्यादा अवनति हो रही है, मंजिले तो ऊँची हो रही है लेकिन सोच और दिमाग नीचे हो रहा है ! गरीब को सहायता तो मिल रही है लेकिन उससे ज्यादा उसे लूटा जा रहा है ! जब किसी घटना के बाद पुलिस वाला रिपोर्ट लिखने के पैसे लेता हो , विकास के किसी टेंडर को पास करने के लिए नेता पैसे लेता हो, नौकरी के लिए एक कंपनी पैसे लेती हो, इलाज के लिए सरकारी डाक्टर पैसे लेता हो ,…………………।
तब भी भारतीय मिडिया इनको कभी नहीं दिखाती है !
उन्नति और विकास जरुरी है लेकिन खोखलेपन के साथ नहीं ! यह जरुरी है हम क्रिकेट में विश्वविजेता बनते है तो उसे दिखाए लेकिन यह भी जरुरी है यदि किसी गाँव में गरीब मर रहा है तो सरकार को दिखाए ! अम्बानी या मनमोहन सिंह के घर की पार्टी आप दिखाए लेकिन ये भी जरुरी है की गाँवो में अस्पताल और स्कूल नहीं है तो उसे भी दिखाये ! यह भी जरुरी है आप किसी अभिनेता या राजनेता की उपलब्धी दिखाए लेकिन उस बच्चे की समस्याए जरुर दिखाए जिसके पास पढने के लिए किताबे नहीं है !
लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है आप, जनता के लिए भरोषा है आप फिर भी उस निकम्मी सरकार  के आगे बिक जाते है आप !
मै अन्ना हजारे जी की इस पकती से पूर्णतयः सहमत हूँ : "गांव के विकास का मतलब नई पंचायत इमारत का निर्माण या मौजूदा इमारतों की ऊंचाई बढ़ाना नहीं है. इमारतों की ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ लोगों के सिद्धांत नीचे की ओर गिरते हैं. यह विकास नहीं है. विकास का मतलब लोगों को भीतर से मज़बूत बनाना है."
‘पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है, जिसे मज़बूत होना चाहिए, लेकिन चिंता की बात यह है कि इस स्तम्भ को भी घुन लग गया है.’