“दशहरे के ‘पान’ की वो यादे”

नवरात्रि और दशहरा का पर्व मेरे लिए हमेशा विशेष रहा है ! मेरे मन में माँ के “जागरण” के प्रति प्यार है ! मेरे बाबा हमेशा देवी माँ की पूजा में व्यस्त रहते थे, प्रतिदिन सुबह ३-४ घंटे उनकी पूजा होती है! तब मै अपने गाँव सुमेरपुर में ही रहता था! मै उनके साथ कभी कभी रात्रि जागरण में जाया करता था, बड़े अनंदनीय होते थे वो दिन! अब पूजा पाठ का वो प्रक्रम मेरे पिता जी अपना रहे है, मै बाबा और पिता जी के इस लगन-पूर्वक की जाने वाली पूजा को देखकर ही बड़ा हुआ हूँ ! यहाँ मै अपनी दादी का जिक्र करना कैसे भूल सकता हूँ, ९० साल की उम्र तक भी जिन्होंने बिना चश्मे में ग्रन्थ पढ़े और सुबह ४ बजे उठाने का क्रम नहीं तोड़ा ! दादी की वो “भागवत”, धार्मिक कहानियां जो रोज सायं को शुरू हो जाती थी उसे कभी नहीं भूल सकता ! आज घर से निकले ९ साल हो चुके है, दादी और बाबा दोनों को खो चुके है! अब उनकी यादें वो एहसास दिलाते है जो शायद वापस मिल जाये तो मै समझू की एक नया जीवन मिल गया !
इस समय, दिल्ली में रहता हूँ. लेकिन अब भी दादी और बाबा के सपने दिल को खातोरते रहते है, कुछ सपने जो मेरे लिए थे और कुछ सपने जो समाज के लिए वो देखते थे ! हमेशा कहते थे, “भगवान हो या न हो लेकिन हिन्दू धर्म में जिंतनी भी प्रथाएं है उनको बिना सोचे पालन करो, हमेशा खुश रहोगे” बाद में मैंने उनकी हर बात पर गौर किया और कुछ सोचा बातो में सत्यता थी! तुलसीदास जी के ग्रन्थ के बारे में कहते थे, ठीक है मानता हूँ इसमे एक कहानी है लेकिन क्या आज का कोई लेखक इतनी जुडी हुयी कड़ीयो वाली कहानी लिख सकता है? क्या कोई बिना किसी जगह की शैर किये श्री लंका और भारत को जोड़ने वाली आज के दशहरे की कहानी को लिख सकता है..................................” मैंने आज इस बात पर सोचा, इन ग्रंथो में कुछ तो ताकत है !
उनके रहते हुए मुझे कभी नहीं पता चला की वो एक ऐसे कवि भी थे जिन्होंने कभी अटल बिहारी बाजपेई जी जैसे कवि के साथ कविता की होगी, लेकिन जब मैंने उनकी डी.ए.वी. कानपूर की डायरी खोली और उनकी रचनाये पढ़ी तो मेरे अन्दर “गर्व” की एक लहर दौड़ पड़ी! एक ऐसा सरकारी कर्मचारी जिसने अपने जीवन में कभी एक रुपये रिश्वत का न लिया हो(ऐसा मै नहीं उनका हर मित्र और गाँव वाले कहते है), जिसने अपने लड़के को रिश्वत की वजह से खुद नौकरी से निकलवाया हो ऐसा व्यक्ति कवि भी हो सकता है.
मैंने उनकी रचना “ओ किसान भगवान .....” को कुछ बदलकर अपने ब्लाग में पहले लिखा है, इसे पढने के बाद आप खुद समझ जायेगे, आखिर उनका व्यक्तित्व समाज के लिए क्या कहता है !
आज दशहरे के दिन उनके हाथ का पान खाने को मिलता था, पान को हमारे यहाँ दशहरे मिलन का सूचक मानते है और पुरानी लड़ाईयां ख़त्म करने का प्रेरक...
उस “पान” की वजह से एक याद कई यादे दिला गयी, उनके साथ का रामलीला और फिर रावण का दहन. वो दोबारा नहीं लौट सकता L L