स्कूल टाइम की अग्रेजी और प्राइम टाइम की हिंदी से निकला शब्द “टीवीखोर”...

वैसे तो प्रतिदिन ही हिंदी के शब्दकोष में कोई न कोई नया शब्द आप नया जोड़ते ही है, उसका क्या मतलब है उससे आपको कोई मतलब नहीं होता, कभी बोल दिया, कभी अचनक से निकल गया या कभी कही से सुन लिया.. आज कुछ ऐसे ही शब्दों की बाते करते है जिनका प्रयोग और मतलब तो साधारण है लेकिन आज इनका स्थान उचाईयों पर है ‘आम आदमी’, ‘झाड़ू‘, ‘अरविन्द’, ‘केजरीवाल’  और भी बहुत सारे शब्द इस श्रेणी में शामिल है ! अर्थ तो सामान्य है लेकिन आज राजनीतिज्ञों की व्यक्तिगत जीवन में भी ऐसे शब्दों का प्रयोग दुर्लभ हो गया है ! भाजपा, कांग्रेस और अन्य  कुछ डालो के लोग साधारण बोलचाल में भी साधारण आदमी को ‘आम आदमी’ कहने से डरते है, घर की सफाई करते समय भी झाड़ू को झाड़ू करने से डरते है क्योंकि इनका प्रयोग करने से लाभ मिलता है झाड़ू वाली आम आदमी की आम आदमी पार्टी को ! ये तो थी एक छोटी सी बात जो राजनीतिज्ञों को परेशान किये हुए है !

लेकिन एक आदमी तो इन शब्दों से ऊपर है “अरविन्द केजरीवाल” राजनेता अब इस नाम को लेने से भी कतराते है, वर्ना उन्हें नुकसान ही उठाना पड़ता है ! टीवी वाले पीछे पड़े रहते है, जनता साथ खड़ी रहती है,मंत्री सड़क पर चलते है, खले आसमान में शर्दी की रात में सोते है, फिर भी हक़ मांगते है..!

लेकिन कभी कभी शक होता है क्या सच में इस कलयुग में भी कोई ऐसा है जो जनता की भलाई के लिए इतना संघर्ष करे, या फिर सारा खेल टीवी के लिए है ? या ये कहे की अरविन्द एंड टीम टीवीखोर हो चुकी है ?

हाँ "टीवीखोर” भी एक नया शब्द है हिंदी के शब्दकोष में,इसका कापीराइट फ़िलहाल एक पत्रकार के पास सुरक्षित है, जो कभी “मै हूँ पत्रकार” की टोपी लगाने की बात करते है.. स्कूल टाइम अंग्रेजी से डरते थे लेकिन अब प्राइम टाइम को चलाते है ! रवीश कुमार, कभी जिससे मुलाकात आई.आई.टी. में होती है तो कभी दिल्ली की सड़क की चुनाव रैलियों में और कभी जयपुर के साहित्य मेले में, हमेशा नये शब्दकोष के साथ और ठोस रणनीति के साथ....




प्राइम टाइम देखते हुए एक नया शब्द सुनने को मिला टीवीखोर, वैसे तो वास्तव में मुझे भी इसका अर्थ समझ में नहीं आया लेकिन जो अर्थ मैंने समझा उसके अनुसार तो यही लगता है की “जो टीवी में हमेशा आना चाहते हो”, लेकिन अरविन्द और टीम को टीवीखोर कैसे कह सकते है, इस बात पर तो कोई बाबा भी विस्वास नहीं कर सकता. सलमान, सहरुख, कटरीना और प्रियंका भी हमेशा टीवी पर देखे जाते तो क्या ये भी टीवीखोर है? बाबा रामदेव, बाबा आशाराम भी टीवी पर बहुत आते है क्या ये बेचारे भी टीवीखोर है ? अरनब गोस्वामी को भी कभी कभी टीवी पर चिल्लाते हुए पाया जाता है तो क्या उसे भी टीवीखोर मान ले? और भी अनेक ऐसे लोग है जिन्हें मई अपनी समझ के हिसाब से टीवी खोर मान सकता हूँ... लेकिन अब भी संदेह है सभी लोग अलग अलग क्षेत्रो से है सभी को टीवीखोर कहना भी जायज नहीं होगा.. !
तो एक आन्दोलनकारी को या मुख्यमंत्री को टीवीखोर कैसे मान सकते है!
रवीश जी शब्द छोटा है, अब आपका कापीराइट है तो मतलब तो बड़ा ही होगा. कोशिश करूँगा की “टीवीखोर” का सही मतलब अगले प्राइमटाइम में समझ सकू...  :) 

रवीश जी, मेले की थकान तो मिटा दी लेकिन उत्तर अभी बाँकी है....:

दिनभर की थकान मिटाने के लिए वैसे तो मै पहले घर में आकर किसी कामेडी मूवी या कामेडी शो का सहारा लिया करता था लेकिन आज कल मैंने इस प्रक्रम को बदल दिया है ! जब भी शाम को आफिस से आने के बाद थकान महसूस होई है मै रवीश का ‘क़स्बा’ खोलकर पढने लगता हूँ,इससे ज्ञान के साथ साथ थकान भी दूर हो जाती है...
आज मै जयपुर के साहित्य मेले में घूमने आया, प्रसून जोशी के साथ साथ अमर सिंह और सलमान खुर्शीद जैसे नेताओ के दर्शन और उनसे प्रश्नोत्तरी हुयी ! इसके आलावा कई हिंदी और अंग्रेजी पुस्तकों का विमोचन भी हुआ ! खुद की पुस्तक निकट और उपन्यास ‘लव स्टील फ्लर्ट’ का अब भी इन्तजार है !
जयपुर की मसालेदार चाय और पकौड़ो का स्वाद लेकर कुछ आम आदमी पार्टियों की क्रियाओ का विश्लेषण किया.. शाम का चार बज गया था, फिर से थकान अपने चरम पर थी, नींद ही एक इलाज हो सकता था.. तभी मेरी एक मित्र ने बताया आपके रवीश जी भी आये है यहाँ तो वैसे तो उनके करोणों प्रेमी है लेकिन मुझे उनसे एक अलग लगाव है भाषा और हिंदी लेखनी के लिए आदर्श है वो मेरे... तो बस इंतजार शुरू हुआ रविश जी का मंच में आये किन्ही दो व्यक्तियों और एक महिला के साथ..! आज उन्हें मुद्दा फिर से राजनैतिक ही मिला था ! वार्तालाप शुरू हुआ ..” भारतीय लोकतंत्र में आज की हर राजनैतिक पार्टी का मुद्दा अलग है, कोई जाति के नाम पर लड़ता है, कोई मंदिर-मस्जिद और धर्मवाद के नाम को लेकर लड़ता है, किसी ने मुद्दा बनाया है भ्रष्टाचार को और किसी मुद्दा बनाया है क्षेत्रवाद को .......! ये रविश के विचार थे लेकिन मई यहाँ एक लाइन और जोदुंगा की अज का एक मुद्दा और है प्रधानमंत्री पड़ का ”एक कहता है हमारा प्रधानमंत्री पड़ का दावेदार चाय वाला है, कोई कहते है हमारा दावेदार एक आई.आई.टी. से पास हुआ आई ए.एस. है जो इमानदार भी है तभी एक पार्टी कहती है हमारा अभी कोई दावेदार नहीं है .”वार्तालाप जारी था अनेक सुझाव और समस्याये निकलकर आ रही थी. चुनाव आयोग के नोटा का प्रयोग से लेकर सबसे बड़े लोकतंत्र की समस्याओ के ऊपर बाते हो रही थी. कोई अन्ना आन्दोलन को अच्छा तो कोई बुरा बाया रहा था !  कोई कह रहा था वोट की प्रतिशतता बढ़ी है तो कोई कह रहा था ९०% होनी चाहिए ! कई राष्ट्रिय आंदोलनों के ऊपर बात हुयी और राष्ट्रिय नेताओ के ऊपर बात हुयी !.......”
तभी एक प्रसिद्ध प्रश् सामने आया क्यारवीश आप भी राजनीती में जा रहे हो ?
रवीश ने बड़ी चतुराई से उत्तर दिया उसका पता नहीं लेकिन मई टोपी पहनने वाला हूँ जिसमे लिखा होगा “मै हूँ पत्रकार..” और इसके साथ ही एक प्रश्न भी बन गया क्या “मिडिया को भी एक राजनैतिक पार्टी नहीं बनाने चाहिए?” मिडिया में ज्ञानियों की कमी नहीं है, हर तरीके के विश्लेषक उपलब्ध है , सभी युवा है, मुद्दों को समझने और पढने का जज्बा है तो फिर क्यों नहीं? इस पर भी काभी विचार विमर्श हुआ..! रवीश चतुराई से उत्तर देटे रहे और बिहार के उदहारण उठाते रहे ! १९७७ का अंग्रजी में पास जरुरी न होने का मुद्दा भी अत्यंत ऐस्तिहसिक था और ये मेरे खुद के लिए नया ज्ञान था ! मजाक मजाक में बता दिया कभी विदेश भी नहीं गए .....और भी काफी कुछ! अंत में शुरुआत हुयी प्रश्नोत्तरी की अनेक प्रश्न आये भ्हेद काभी होने की वजह से सभी के उत्तर नहीं दे सके..
उन उत्तर न पाने वालो में से मई भी एक था..
मेरा प्रश्न : “आज आम आदमी पार्टी एक विशेष जज्बे और मुद्दों के साथ राजीति में नया चेहरा बनकर आई है, उसने अपने कर्कर्ताओ के साथ दिल्ली में अच्छा प्रदर्शन भी किया लेकिन अब उसके पैर पूरे देश में फ़ैल रहे है, अरविन्द अभी भी अपने वादों पर सही से खरे नहीं उतर पाये, हम जानते है उन्होंने जोश में आकर कुछ ज्यादा ही Ideal राजनीती करनी चाही है लेकिन वो धीमे धीमे ही संभव है ! परन्तु यदि कुछ समय बाद हम देखते है की किसी भी तरह अरविन्द और आप विफल हो जाते है !
तो क्या आगे से जनता किसी नए संघर्ष और आन्दोलन पर विश्वास करेगी..?

अम्मा भी एक कोने से सब देख रही थी...

नदियों का झर झर
पहाड़ो की उचाई
पक्षियों की चहचहाहट
और अम्मा की व्याकुलता
से सराभोर, केंद्र में केन्द्रित एक 'विलेज'

सौ-दो सौ आवाज थीं
'फिफ्टी-सिक्स्टी' घर
एक राजा की रजा थी
एक शादी थी कल...

दूल्हा था सजा
मन में था मजा
घोड़े पे गढ़ा
वर-माला में खड़ा.

दुल्हे के साथ थे बराती
'वेलकम' में थे जनाती
अम्मा भी एक कोने से सब देख रही थी
पर पटाको का एक अजीब डर था

बाराती खाना देख खाने में लग गए
जानती 'म्यूजिक' देख गाने में लग गए
एक नजारा बन गया था 'फन' का
हाँ एक और भी नजारा था दुल्हन का.

दूल्हा मन ही मन मुस्करा रहा था
एक संसय से सोच रहा था
क्या बोलू, कैसे बोलू
शारीर सन्न था, सब देख अम्मा हंस रही थी

खैर रात होती गयी
बात होती गयी
घूँघट उठाया, सिन्दूर लगाया
और सुबह होते ही, इस घर की लड़की उस घर की हो गयी

एक बावली लड़की
जो कभी अम्मा के साथ खेलती थी
आज अम्मा को रुला के चली गयी
अम्मा फिर अकेली है
अपलक निहारती है
चारो तरफ देखकर अम्मा के जब
अम्मा अपने आंसू सबसे छिपती है
केंद्र की सीमओं के साथ -साथ
'अंकुर' भी बेसुध हो जाता है
नदियों के झर-झर की तरह.....

अमेठी तो एक उदाहरण है, विकास के विस्वास की चिंगारी देशव्यापी है....

कुमार का आगमन दिल्ली को छोड़कर उनके खुद के प्रदेश में हुआ था, ऐसा प्रदेश जहा दो प्रदेशो के मुख्यमंत्री रहते है.. एक मुख्यमंत्री लखनऊ में रहते है जिन पर सभी थू-थू करते ही और एक मुख्यमंत्री गजियाबाद में रहते है जिनके काम की प्रसंसा करते लोग थकते नहीं है ! इसी रविश कुमार जैसे पत्रकार और अरविन्द केजरीवाल जैसे मुख्यमंत्री की निवास नगरी से निकलकर डाक्टर साहब ने अमेठी के लिए कूच किया था ! घने कोहरे में ट्रेन अपना रास्ता तय कर रही थी और डाक्टर साहब ध्यान कर रहे थे ! ऐसा सुना था की हमारे महापुरुष सत्य की खोज में जाया करते थे लेकिन यहाँ कुमार साहब अमेठी को अमेठी का सच बताने जा रहे थे.
गाँधी परिवार के संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और अब राहुल गांधी के अ’गांधीवाद से अमेठी त्रस्त हो चुकी थी, ऐसा मैंने सुना था! लेकिन आम आदमी आदमी पार्टी को जिस तरह से जनता का विश्वास हासिल हो रहा था उसके हिसाब से तो देश में एक अच्छी सरकार की कामना करना गलत नहीं था. उसी विस्वास को विस्तृत करने के लिए इस विस्वास ने अमेठी के कुमार (युवराज-राहुल गाँधी) को ललकारा था.! अमेठी एक ऐसा अनोखा घर था जहाँ पर घर के सदस्य अपने ही अभिवावक से त्रस्त थे! विकास से वंचित और युवराज से काफी दूर थे ! इसी अपनत्व को खो चुके अमेठी के लोगो ने डाक्टर साहब में भविष्य देखा और उनके समर्थन में सैलाब उतर आया..!





मैंने समाचार में सुना की “लोग काले झंडे दिखा रहे है उनका विरोध कर रहे है” लेकिन यदि २०% लोग विरोध कर रहे है तो ८०% लोग तो खुस है. ये उस २०% में आते है जो कभी किसी भी विकास में सहायक नहीं हो सकते और यही २०% बचे है राहुल गाँधी जैसे नेताओ के साथ है.! खैर एक विशाल भीड़ के साथ कुछ अमेठी के लोगो ने डाक्टर साहब का स्वागत किया, दिल्ली के रामलीला मैदान का एहसास वहां से मिल रहा था ऐसे मेरे मित्रो ने मुझे बताया..’भारत माता की जय’ के नारे एक अलग जोश पैदा रहे था और मुझे आज खेद है की मई उस साक्ष्य क हिस्स नहीं बन सका, लेकिन हर इतिहास पठनीय होता है उर यह रैली भी ऐतिहासिक थी, विशेषता अनेक थी सबसे बड़ी विशेषता जो मुझे लगी : देश के युवराज के संसदीय क्षेत्र की जनता युवराज को छोड़कर एक ऐसे आदमी को सुनने आती है जिसने अभी अभी राजनीती में कदम रखा है ! जानत का आना युवराज का खुला विरोध दिखाती है की लोग कितने त्रस्त है युवराज से..
अमेठी तो मात्र एक उदाहरण है देश के हर कोने का यही हाल है !
'कुछ छोटे सपनों के बादल,
बड़ी नींद का सौदा करने,
निकल पड़े हैं पांव हमारे,
जाने कौन डगर ठहरेंगे।'
डाक्टर सहक की ये पक्तियां वास्तव में लोगो के दिलो में बैठ चुकी है और वो देश विकास के लिए जाग चुके है..
न तेरा है
न मेरा है
ये हिंदुस्तान सबका है
नहीं समझी गयी ये बात
तो नुकसान सबका है.....

दिल्ली के दिल से लखनऊ और अमेठी के लिए रवाना कुमार विश्वास......

ग्यारह जनवरी की तारीख थी डाक्टर साहब दिल्ली के दिल से निकलकर लखनऊ जाने के लिए ट्रेन में सवार हो चुके थे! लखनऊ अमेठी और दिल्ली के बीच में पढता है है उत्तर प्रदेश की राजधानी भी है इस वजह से उन्होंने बीच में एक ठहराव लिया, आप टीम और कुछ प्रेस के मित्र वहां उनका उनका इन्तजार कर रहे थे, स्टेसन में विशाल भीड़ उमड़ी थी लेकिन ये पता नहीं था ये जनता किसे देखने आई थी, एक कवी को?, एक समाज सेवी को? एक प्रोफ़ेसर को? या फिर एक नेता को?
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है......
की पक्तियों से जिसने देश को अपना आशिक बना लिया आज वो समाज सेवा के लिए मैदान में उतर चूका था! मैंने व्यक्तिगत रूप से डाक्टर साहब की सभी कविताओ को गहनता से पढ़ा है, उनकी कविताओ में प्यार, देश प्रेम और जोश का संगम है! अतः आप कह सकते है एक कवी के रूप में तो मई भी उनका प्रेमी हु! उसके बाद अन्ना के जुनूनी क्रांति के समय उनसे मिलाने का पहला मौका मिला एक बड़ी वार्तालाप के बाद पाया की डाक्टर साहब केवल कविताओ से नहीं दिल से देश सेवा का जज्बा रखते है इसलिए मै उन्हें समाज सेवी के रूप में भी अनुसरित करने लगा !



इसके बाद जब जब भी उनसे मिला एक अजीब सी उर्जा शारीर में आने लगी, प्रतयेक नयी मिलाकात में कुछ न कुछ नया सीखने को जरुर मिलता रहा !
मेरे इस अनुभव के आधार पर मै तो मानता हूँ लखनऊ की वो जनता देश में परिवर्तन की गुहार के साथ उनके स्वागत करने के लिए इकठ्ठा हुयी थी, अक ऐसी जनता तो प्रदेश की सपा और बसपा रुपी सर्कार से और देश में भाजपा और कांग्रेस रुपी सरकार से त्रस्त हो चुकी है ! भ्रष्टाचार और सुरक्षा के लिए चिल्ला चिल्ला कर थक चुकी है ! ऐसे में एक नए विकल्प को ही जनता ने अपना भविष्य समझ लिए है ! तो कह सकते है इतनी जनता का आना लाजमी था !
डाक्टर साहब के लखनऊ पहुचने के बाद पत्रकारों और जनता का इंतज़ार ख़त्म हुआ, आप की नीतियों पर विचार विमर्श शुरू हुआ.... तभी अचानक एक व्यक्ति की उत्दंटता शुरू हुयी और पूरे वार्तालाप को तितर वितर कर दिया यह उनकी विरोधी डालो में से एक था कभी जिनके फ़ोनों में डाक्टर साहब के गाने चला करते थे, जब डाक्टर साहब इनके विरोधियो को कुछ कहते थे तो ये इनके समर्थन में ताली बजाते थे लेकिन जब इन्ही के फर्दाफास में डाक्टर साहब मैदान में आये तो ये परेशान हो गए और अराजकता का साथ लेने लगे... लेकिन ये भूल जाते है की इन सब से कुछ होने वाला नहीं है आम आदमी जाग चूका है उनकी आवाज जाग चुकी है आपके खुद के दलों से लोग आप का समर्थन कर रहे है, आपके काम के गुड़गान गा रहे है, ऐसे में आपका कुछ भी आम आदमी का कुछ भी नहीं कर सकता...
खैर इसके बाद भी डाक्टर साहब पत्रकारों से बात करते रहे और जबाब देते रहे वार्तालाप ख़त्म हुयी लखनऊ को धन्यवाद देते हुये कुमार अमेठी के लिए रवांना हुए रस्ते में ठण्ड का आनंद और ट्रेन का अँधेरा उनके दिमाग में कई प्रश्न लता रहा, अमेठी में क्या होगा? जनता का रुख क्या होगा? क्या इस परिवर्तन में वो साथ होगे? क्या देश विकास में वो एक आम आदमी के साथ होगे?........ आदि अनेक प्रश्नों के साथ डाक्टर साहब अपने मित्रो के साथ अमेठी पहुचे, अमेठी में आप के लिए जो समर्थन था वो वास्तव में केवल एक ब्लॉग में नहीं लिखा जा सकता... किसी के खुद के घर के लोग इतने नाराज हो सकते है यह आप अमेठी में जाकर देख सकते है अमेठी की जनता अपने ही राहुल गाँधी और गाँधी परिवार से किस तरह से नाराज है उसका अंदाजा इस भीड़ और समर्थन से ही लगाया जा सकता है...

डाक्टर साहब की अमेठी यात्रा का पूरा वर्णन अगले ब्लाग में जरुर पढ़े....

क्यों असहाय चिंतित बना दिया है उसे ?

क्यों ताकते हो आँचल को
क्यों झांकते हो चांचल को.
एक माँ, एक सुधा भगिनी 
बिराजती है उस विभा में..
उसकी क्यों है 
आज ये चीत्कार ?
ये बहार की व्यथा है 
अन्दर भी एक अजीब सी कथा है
क्यों असहाय चिंतित बना दिया है उसे 
उस निर्माता को, माता को..
डर से रौंदी हुयी उसकी इच्छाये
महासागरो में खोये हुए सपने 
उसका भी है एक जीवन 
क्यों रोज काम करके 
थककर सो जाती और तू 
केवल मै..!
केवल मै..!!
केवल मै..!!! 
के सपनों में खोया रहता है.
उसके जीवन का हिस्सा बनना 
ही बस नहीं है.
जीवन जीवन तब होगा जब 
उसके अँधेरे को अपना अँधेरा 
और उसके अथाय सूनेपन 
को अपना समझकर 
जीवन से जीवन का अंकुरण करोगे...

किसके बीच होगा लोकसभा फाइनल : “आप-भाजपा”/“भाजपा-कांग्रेस”/“कांग्रेस-आप”

आशुतोष का ‘आप का तिलिस्म और खतरे की घंटी’ पढने के बाद कुछ लिखने का मन हुआ, जिस तरह से उन्होंने भाजपा, कांग्रेस और आप का राजनैतिक आकलन किया वो वास्तव में लोकसभा चुनाव में एक अलग गणित बना सकता है, मोदी के सपने तोड़ सकता है, यूपीए ३ और राहुल के घर को उजाड़ सकता है और हो सकता है देश को एक ऐसा प्रधानमंत्री मिल जाये. वैसे नए प्रधानमंत्री के तिलस्म की कल्पना करना लोकतंत्र के आज को देखते हुए ज्यादा ही कल्पनीय होगा पर भाजपा और कांग्रेस की लोकसभा नीतियों में फर्क जरुर पड़ेगा.
कहते है राजनीती के लिए एक हफ्ता का समय बहुत होता है और आज के इस नए राजनैतिक अवतार ने इसे सच भी कर दिया ४ दिसंबर को जब वोटिंग हुयी तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा की आपकी ‘आप’ २८ सीटे जीतेगी और सर्कार बनाएगी लेकिन लोकतंत्र की कहावत सच हुयी और आज दिल्ली में आप’की सरकार है ! फिर दूसरा तिलस्म तब हुआ जब २८ दिसंबर को सपथ लेने के बाद अरविन्द ने मुख्यमंत्री के रूप में विकास की नीव रखनी सुरु की, पहले पानी फिर बिजली और फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ एक्सन लिए, इन सभी को देखकर तो यही लगता है की यदि कोई चाहे तो विकास के लिए भी एक हफ्ता का समय बहुत होता है !
यदि आप का यह कार्यक्रम जरी रहा तो दिल्ली की तरह देश की जनता भी भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ चली जाएगी और दोनो महा नेताओ के सपने अधूरे रहा जाएगी.
मैंने हमेशा सुना है अरविन्द और कुमार विश्वास के भाषणों को, ये कहते थे ‘हम राजनीती करने नहीं आये हम तो राजनीती बदलने आये है’ और आज इनकी बात सच होती नजर आ रही है, जनता सच में राजनीती के बदलाव को देख रही है ! वो आम आदमी पार्टी को अपना और देश का तीसरा विकल्प समझने लगी है, और आज यह विकल्प इस कद्र छा गया है की २०१४ लोकसभा ‘राहुल और मोदी’ की जगह ‘अरविन्द और मोदी’ के रूप में बदल चूका है !
दोनों पार्टियों ने आप के तरीके अपनाने सुरु कर दिये है लेकिन जनता यह नहीं भूल सकती की कांग्रेस में वंशवाद और भाजपा में धर्मवाद की राजनीती है ! कांग्रेस ने सभी लोगो को लेकर चलना तो चाह लेकिन कमान हमेशा अपने हाथ में राखी वाही भाजपा नि लोगो अयोध्या के नामपर इस कद्र लड़ाया है की आम जनता भी इनकी नीतियों को समझ चुकी है! हाँ लोगो को यहाँ ये मानना होगा की  कांग्रेस में अंबेडकर की जगह थी, तो जगजीवन राम भी कम ताकतवर नहीं थे। यानी कांग्रेस ऐसी पार्टी है, जो सभी विचारों का संगम है। वैचारिक लचीलापन ही उसकी पूंजी है। इसलिए लंबे समय तक समाजवादी रास्ते पर चलने के बाद 1991 में जब उसने बाजारवाद का मार्ग अपनाया, तो पार्टी में ज्यादा विरोध नहीं हुआ। अर्जुन सिंह जैसे लोगों ने थोड़ी आपत्ति जरूर जताई, लेकिन वह क्षणिक था। साल 2009 के बाद कांग्रेस की नीतियों में एक और बदलाव देखने को मिला। उसने बाजारवाद को मानवीय स्वरूप देने की कोशिश की।शिक्षा का अधिकार, भूमि अधिग्रहण बिल, खाद्य सुरक्षा बिल लेकर आई। इसने बाजारवाद पर जोर के बावजूद कल्याणकारी योजनाओं में सब्सिडी झोंकने का काम किया। इसी वजह से आज फिर कांग्रेस को 'लेफ्ट ऑफ द सेंटर' पार्टी कहा जाता है।
वाही आप एक ऐसी पार्टी है जो इन सब बातो को लेकर तो चलती ही है साथ में वो किसी वंशवाद की राजनीती पर भरोषा नहीं करती वो ‘स्वराज’ के सिद्धांत का अनुसरण करती है और मोहल्ला सभ में भरोषा रखती है जनता को क्या चाहिए जनता से पूंछती है फिर उसमे काम करती है ऐसे में आप कांग्रेस के यूपीए ३ के सपने तोड़ सकती है!
देखा जाये तो बराबर का खतरा मोदी और भाजपा पर भी है,  बीजेपी अपनी विचारधारा में धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों को साथ लेकर चलने से परहेज करती है।
इसलिए गुजरात के दंगों पर वह माफी नहीं मांगती। मोदी मुस्लिम टोपी नहीं पहनते हैं। आप के साथ यह दिक्कत नहीं है। आज आप एक ऐसा संगठन है जो देश के हर वाढ को लेकर चलने का जज्बा रखता है ! लेकिन मोदी को ऐसे वर्ग ने उठाया है जो मोबाईल की दुनिया से निकला है युवा है, हमेशा धर्मवाद की राजनीती में भरोषा रखता है !
उक्त तथ्यों के आलावा आप के लिए लोगो का रुझान भी लाभदायक साबित हो सकता है- जिस तरह से समाज के प्रतिष्ठित लोग आप के साथ आ रहे है उनकी विचारधारा और आप की विचारधारा का समायोजन हो रहा है उससे तो यही लगता है की अगला लोकसभा चुनाव देश के एक अद्भुत तिलस्म दे सकता है जिसके कल्पना कोई पत्रकार, कोई नेता, कोई समाजसेवी या कोई आम आदमी अभी से नहीं कर सकता !

…..तो क्या नरेंद्र मोदी के विजय रथ को इस सर्दी में भी लू लग गया है.

यह क्या हुआ कि अरविंद केजरीवाल के चक्कर में काग्रेसियों से ज़्यादा भाजपाइयों के चेहरे कांतिहीन हो चले हैं। अभी तक के आदोलन या राजनीती के पदार्पण के पूरे समय में सबसे ज्यादा परेशान कांग्रेस ही हुआ है, जन्लोकपल से छिपना हो या अन्ना से डरना हो हमेशा कांग्रेस और कांग्रेसी पीछे ही रहे है और अगर गिनती में भी नजर मारते है तो यही पता चलता है की कांग्रेस के ऊपर ही ज्यादा आरोप निकले है, भाजपा ने वैसे भी गडकरी और येदुरप्पा के साथ रहकर अपनी इमानदारी तो जगजाहिर कर ही दी है ! लेकिन इन सबके बावजूद रैलियों में अच्छी खासी भीड़ जुटाना और मोदी मोदी चिल्लाकर भीड़ में बताना हमने यहाँ ये किया हमने वहां वो किया …….!! अच्छी गति से चल रहा था , अभी हाल ही में कुछ राज्यों में चुनाव हुए परिणाम आये जिन राज्यों में भाजपा के सपने कांग्रेस थी वहन पर तो अच्छी विजय कर ली लेकिन दिल्ली के परिणाम ने भाजपाईयों के साथ साथ राजनीती के विशेषज्ञों को भी झकझोर दिया एक नयी पार्टी जिसने अपने कदम रखे ही थे देश के सामने तीसरा विकल्प बन कर दिखने लगा. सीटे कम थी लेकिन दिल्ली को दोबारा चुनाव से बचने और बेकार के खर्चो को रोकने के लिए आप ने माइनोरिटी में सरकार बना ली.
……और कल दिल्ली विधान सभा ने एक अद्भुत परिदृश्य का वर्तमान और भविष्य देखा . ऐसे अवसर तो अनेक आये होंगे उसकी किस्मत में , लेकिन उसके आँगन में कहूं या उसकी गोद में , कोई सपूत ऐसा नहीं दिखा था जो उसके आसुओं को अपनी कमीज से पोंछने की कोशिश करे . सब टिश्यु पेपर खोजते हुए जिंदगी भर इधर -उधर छिपने की कोशिश करते रहे और उधर माँ छटपटाती रही . आज वैसा कुछ नहीं हुआ . बेगैरत बेटे रटा-रटाया आरोप दुहराते रहे और एक ईमानदार बेटा अपने गुमराह भाइयों से सही रास्ते पर आने का विनम्र निवेदन करता रहा . दिल्ली की जनता से उसने सहयोग माँगा . देश से उसने सहयोग माँगा . वह अपनी सरकार बचाने के लिए किसी के आगे गिडगिडाया नहीं , उसने घोड़े खरीदे नहीं , उसके घोड़े बिके नहीं . उसने स्वाभिमान से सौदा नहीं किया . उसने अहंकार को गले नहीं लगाया . उसने देश सेवा का व्रत लिया . हिंदुस्तान की राजनीति में इस नयी कड़ी जोड़ी.!

लेकिन इन सबके बीच एक व्यक्ति जिसके पास मुंगेरी लाल के सपने थे, धर्मवाद की राजनीती से जिसने जनता पर खासा असर दाल दिया था उसकी राजनीती में परिवर्तन आने लगा, परिवर्तन लाने वाला और कोई नहीं बल्कि कुछ समय तक ‘परिवर्तन नाम से एक समाज सेवी संस्था चलने वाला एक आम आदमी था. उस आम आदमी के त्याग और इमानदारी देखकर देश का युवा और जनता जुड़ती चली गयी जिसने एक राजनैतिक दल का रूप ले लिया और दिल्ली में अपना करिश्मा दिखाया.
यहाँ बात यहाँ है की आप से ज्यादा अच्छा प्रदर्शन करने वाली भाजपा के इस नेता की लोकप्रियता में दिल्ली चुनाव के पहले और बाद में काफी फर्क आने लगा.
…..हो सकता है सर्दी का असर हो, लू का असर हो लेकिन देश की दिशा और दशा अब बदल चुकी है, अब जनता अरविन्द केजरीवाल में एक प्रधानमंत्री का चेहरा भी देखने लगी है जिसकी वजह से भाजपा वालो में फ़्रस्ट्रेशन के बुलबुले लगातार बजबजा रहे हैं?
तो क्या नरेंद्र मोदी केविजय रथ को इस सर्दी में भी लू लग गया है? यह कैसी उलटी हवा चल रही है? कि मौसम ही उलटा हो गया है? शर्दी में भी एक ऐसी लू चली जिसने मोदी के पर ही काट दिए.

कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?

कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?
हिन्दू का बना चेटका 
मुल्ला का घर कबर 
कौन है ये खुदा ऊपर 
जिसने तवारीख पढाया
कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?
सुबह को शाम की 
शाम को सुबह की
जिसने अकल्याण के अंकुर'ण का
भयावह सन्देश भिजवाया
कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?
एक खुले आम कहता है 
बगावत का एलान करता है 
खुद को जंगली और 
संसार को है जंगल बनाया
कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?
ओ मसीहा, भगवान, मअल्लाह 
क्या एक आदमी-औरत नहीं थे गवांरा
हिन्दू, मुसलमान,इसाई में 
इन्हें भी बाँट डाला 
और बांटा भी तो ऐसा की 
'
मानव ने ही मानव को काट डाला'
कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?

कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?

कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?
हिन्दू का बना चेटका 
मुल्ला का घर कबर 
कौन है ये खुदा ऊपर 
जिसने तवारीख पढाया
कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?
सुबह को शाम की 
शाम को सुबह की
जिसने अकल्याण के अंकुर'ण का
भयावह सन्देश भिजवाया
कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?
एक खुले आम कहता है 
बगावत का एलान करता है 
खुद को जंगली और 
संसार को है जंगल बनाया
कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?
ओ मसीहा, भगवान, मअल्लाह 
क्या एक आदमी-औरत नहीं थे गवांरा
हिन्दू, मुसलमान,इसाई में 
इन्हें भी बाँट डाला 
और बांटा भी तो ऐसा की 
'
मानव ने ही मानव को काट डाला'
कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?

कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?

कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?
हिन्दू का बना चेटका 
मुल्ला का घर कबर 
कौन है ये खुदा ऊपर 
जिसने तवारीख पढाया
कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?
सुबह को शाम की 
शाम को सुबह की
जिसने अकल्याण के अंकुर'ण का
भयावह सन्देश भिजवाया
कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?
एक खुले आम कहता है 
बगावत का एलान करता है 
खुद को जंगली और 
संसार को है जंगल बनाया
कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?
ओ मसीहा, भगवान, मअल्लाह 
क्या एक आदमी-औरत नहीं थे गवांरा
हिन्दू, मुसलमान,इसाई में 
इन्हें भी बाँट डाला 
और बांटा भी तो ऐसा की 
'
मानव ने ही मानव को काट डाला'
कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?

कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?

कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?
हिन्दू का बना चेटका 
मुल्ला का घर कबर 
कौन है ये खुदा ऊपर 
जिसने तवारीख पढाया
कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?
सुबह को शाम की 
शाम को सुबह की
जिसने अकल्याण के अंकुर'ण का
भयावह सन्देश भिजवाया
कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?
एक खुले आम कहता है 
बगावत का एलान करता है 
खुद को जंगली और 
संसार को है जंगल बनाया
कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?
ओ मसीहा, भगवान, मअल्लाह 
क्या एक आदमी-औरत नहीं थे गवांरा
हिन्दू, मुसलमान,इसाई में 
इन्हें भी बाँट डाला 
और बांटा भी तो ऐसा की 
'
मानव ने ही मानव को काट डाला'
कौन सा जोगी ये मजहब लाया..?

.... लो अब वो समय भी आ गया..

लो अब वो समय भी आ गया
कमर कस के बैठ जाओ
जन स्वप्न को बनाने में.
स्वराज को दिखाने में  
विचार और विकास का अंकुर’ण कराना है
सियासत और विरासत नहीं
कूटनीति और राजनीती नहीं
एक पृष्ठ में ईमानदारी लगाना
भ्रष्टाचार और अत्याचार भागाना
बुझी हुये दीप को जगाना
बस यही काम कराना...
की जनता को जगाया है
ये जनता है सब कुछ जानती है
बस उन्हें सबक सिखाना आ गया है
है कौन अपना और पराया
बस अब फर्क करना आ गया है
ये लौ लिखी है आप’से
अब आप’को निभाना है
कमर कास लो आप’लोगो
लो अब वो समय भी आ गया