भिखारी नहीं थी वो


अब भी वही थी
आज भी वहीँ थी
वही रास्ता था
और वो वहीँ पर पड़ी थी
मेरी बस नजर जा पड़ी उस पर
सहम सा गया था दिल उसका
रोजाना का खेल बन गया था अब
ट्राफिक सिग्नल कप्तान था
मर्जी से रोकता था,
मर्जी से मिलाता था
चौराहे के पांच मिनट
उसे कभी गम में देख
दिल दहल जाता था
तो कभी ख़ुशी में पागल देख था
दिल बहल जाता था
बिना हाथ
बिना पैर
अजीब हाल थे उसके
बस एक चेहरा सही था
जिसमे जान थी ,
एक मुस्कान थी
और उसकी सांसे थी
जिन्हें गुब्बारों में भर भर कर
बेंचती थी वो गर्व से सान से...
भिखारी नहीं थी वो
सबको मेहनत का पाठ
सिखाती युगल की 'आदर्श' थी वो...   
  

माँ अब भी नहीं हारी, रोजाना आती है तुम्हारी तलाश में !

माँ अब भी नहीं हारी, रोजाना आती है तुम्हारी तलाश में !

हर शाम दर रहता था की आज उन्हें खाना मिला होगा या नहीं ? जब भी दफ्तर से घर की तरफ चलता था मिलाने की एक अलग चाह होती थी उनसे ! उनकी आवाज इतनी प्यारी थी, उनक आपस में बात करने का तरीका अजीब था ! आज तक समझ नहीं पाया मगर हमेशा लगता था कुछ मेरे बारे में ही बात कर रहे होगे ! हर सुबह जब चाय बनाने के लिए किचेन की खिड़की खोलता था तब वो घोसले से बाहर निकलकर तुरंत सामने आ जाते और आपस के कुछ बाते करने लगते ! उस वक्त रोज उनकी ‘माँ’ नहीं होती थी दोनों बिलकुल अकेले होते थे निडर. माँ भी निडर होकर उन्हें छोड़ जाती थी खाने की तलाश में रोजाना ! आफिस के दिनों में दिन भर वो क्या करते थे मुझे आज तक पता नहीं चला मगर रविवार को सारा दिन उनकी आपस की बातचीत मुझे सुनाई देती रहती थी !





कितनी मुश्किल से पाला था उस माँ ने उन बच्चो को, फिर जन्म देने के बाद कैसे बड़ा किया था ! खुद बाहर की छत में सोती थी मगर उन बच्चो को घोसले में ढककर सुलाती थी ! अपनी चोच में इकठ्ठा किया खाना खुद नहीं खाती थी पहले अपने बच्चो को खिलाती थी !
सच में माँ किसी की भी हो, माँ – माँ होती है

अब वो बच्चे उड़ने लायक हो चुके थे उनको प्रशिक्षण भी माँ दे रही थी ! अब उस माँ की बदौलत थोड़ा थोड़ा उड़ सकते थे ! मगर बस थोड़ा थोड़ा क्योंकि छोटे थे अभी वो ! अब माँ के साथ सुबह वो भी सैर पर जाने लगे थे !

गाँधी जयंती का दिन था, अहिंसा दिवस !

मेरी छुट्टी का दिन, उन्हें न जाने कैसे इस बात का एहसास हो गया कि मेरी छुट्टी है, रोजाना की तरह आज बच्चे सैर पर नहीं थे ! माँ खाने की तलाश में उड़ चुकी थी ! बच्चे आपस में खेल रहे थे ! इतना सब देखने के बाद मुस्कुराते हुए, मै चाय लेकर काम करने लगा ! काम करते करते कब आँख लग गयी पता भी नहीं चला, तभी अचानक से खाना डिलीवरी वाले ने घंटी बजायी, मै जगा और उससे ऊपर आने को बोला !

उसने ऊपर आते सबसे पहले बोला, सर सीढियों पर किसका खून हुआ है ! मैंने दौड़ते हुए देखा घोसले से कबूतर के बच्चे गायब थे ! फिर सीढियों पर गया तो आँखे फट गयी चारो तरफ खून और पंख बिखरे पड़े थे ! पंखो के बिखरने से यही अंदाजा लगा की उन बच्चो ने आखिरी साँस तक लड़ाई लड़ी थी मगर हार गए !




पता नहीं सब कैसे हुआ मगर अंदाजा यही है की एक बिल्ली रोजाना घर के बाहर से उन्हें देखती थी उसी ने किया होगा ! एक माँ का गला घोटा, ममता का गला घोटा, खुशियों ka गला घोटा उस बिल्ली ने अहिंसा दिवस पर ! किस किस से बचे बिचारे मानव से, जानवर से किस किस से ?
मैंने उनके पंख और खून तो वहाँ से हटा दिया मगर उनकी यादे भी अब तक वहाँ है ! खिड़कियाँ भी बंद कर दी अब मैंने उस बिल्ली की वजह से ! उनकी माँ अब भी आती है रोजाना बच्चों की तलाश में , घर के चारो तरफ से रास्ता खोजती है और थक हारकर सबसे ऊपर छत पर बैठ जाती है, वो अब भी हार नहीं मानी, कैसे बताऊ उसे की अब उसके बच्चे इस दुनियां में नहीं रहे !



बापू के नाम एक पत्र

पूज्यनीय बापू ,

सादर चरणस्पर्श ।

हम इस कर्मभूमि पर दुरुस्त है और आशा करते है की आप भी अपने संसार में दुरुस्त होगे ! आपकी याद में देश सूना सा होता जा रहा है ! कभी ड्राई दे होता है तो कभी सफाई दे ! आपके जन्मदिन को सब अपने अपने हिसाब से यूज कर रहे है !
हाँ एक बात बतानी थी आपको शायद पता नहीं होगी, हमारे इस बार के जो प्रधानमंत्री है वो बहुत ही जान पहचान वाले घुमक्कड़ जिज्ञासा वाले है, मुझे पूरी विश्वास है अगर वो इसी तरह से घूमते रहे तो अपने पांच सालो में कोई नया देश जरूर खोज निकलेगे ! आपकी तरह उनका भी एक सपना था ‘अच्छे दिनो’ का, और उसमे वो सफल भी रहे आज उनके पास सब कुछ है उनका हर दिन किसी नयी जगह पर अच्छा ही होता है !
एक दुःख भरी खबर है बापू, अपने कलाम सर नहीं रहे ! वो भी इस मायावी और बेईमान संसार से दुखी हो गए थे! बांकी सब तो ठीक है बापू मगर अब देश की गरीबी , देश की सुरक्षा , देश के स्वाभिमान , देश के गौरव की अब कोई परवाह नही करता ! हाँ देश में अब बलात्कारो की संख्या भी बढ़ गयी है और सब ठीक है !
देश का काला धन अभी भी काली काली बैंको में पड़ा है बांकी सब ठीक है !
देश में कुछ गरीबो को अब भी खाना नहीं मिलता बापू बांकी सब ठीक है !
आपके के लिए दुखद समाचार है की आपका ''नमक कानून '' निरर्थक सा होता जा रहा है ! आपके द्वारा दिए गए
हथियार ''सत्य'' और ''अहिंषा '' के बारे में तो आपको पता ही होगा की इन हथियारों को तो विदेशियों को बेच दिए है ! आपका रामराज मुझे वास्तविक धरातल में लागू होता मुमकिन नही दिख रहा है ,,क्योकि आज की दुनिया और आज की राजनीती में ''रामराज '' का मतलब कुछ दूशरा ही है ! सब कुछ अच्छा है बापू यहाँ पर
यहाँ न तो न्याय है और न ही समानता और आदर्श आचरण की तो कोई अब बची है बांकी सब ठीक है ! चारो ओर बश एक ही होड़ है: मेरी जात तेरी जात से उची है; मेरा धर्म श्रेष्ठ है; मै तुमसे अच्छा और सच्चा हू....
आपको ये बाते जानकर दुःख तो होगा क्योकि आपका देश आज एक विलक्षण स्थिति में है लेकिन आज यही  सत्य है ,यह सत्यता तो क्षणिक है वास्तविकता तो अद्भुत है ! बापू अब आप का ही सहारा है ,कृपया अपनी शक्तिया हमारे अन्दर शामाहित करे !
अंत में एक दुर्लभ बात बताना चाहूगा की अमेरिकी राष्ट्रपति ''ओबामा दादू' 'आपको खाने पर आमंत्रित करना चाहते थे ! मगर इसी बीच हमारे प्रधानमंत्री जी दो बार उनके साथ खाना खा आये है ! अच्छा ही है आप उनकी कूटनीति से दूर ही है !
धन्यवाद ,पत्र का उत्तर जरूर लिखियेगा..
इंतजार में आपका
अंकुर'

जिंदगी में जो करना है 'बस करो', हौसला रखो परिस्थितियां साथ देने लगती है

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है... 
किसी साधारण व्यक्तित्व के लिए कुछ पंक्तियाँ एक असाधारण पहचान बन सकती है, सोचना थोड़ा कठिन लगता है ! मगर एक नाम जो आज सभी से परिचित है, कोई कवि के रूप में जानता है तो कोई समाज सेवी के नाम से, कभी उनके देशभक्ति के गीत मन को झकझोर जाते है तो कभी प्रेम और दीवानगी के गीत आखो में आंसू दिला जाते है ! डॉ. कुमार विश्वास जिनको उनकी कविताओँ ने आज विश्व में एक अलग पहचान दिला दी ! उनका हिंदी के प्रति एक अलग प्यार है, विश्व के कई देशो में हिंदी का परचम उनकी वजह से लहरा रहा है
घर वालो ने इंजीनियरिंग के साथ जीवन को बढ़ाने के लिए कालेज भेजा मगर कुमार विश्वास ने जीवन कही और चुना, कविताओ में, हिंदी में, समाज सेवा में ! रास्ता कठिन था मगर असंभव नहीं, जज्बा और हौसला साथ था जिसके साथ जीवन असंभव भी संभव कर सकता है ! छोटे छोटे कवि सम्मेलनों से कविताये शुरू की और आज देश के आई. आई. टी. एवं आई. आई. एम. समेत हर बड़े कालेज और कंपनी में अपनी कविताओ से लोगो का दिल जीत चुके है, देश के आलावा विदेशो में भी अपनी कविताओ का विगुल कुमार विश्वास ने बजाया है !

  

कविताओ के अलावा डॉ कुमार विश्वास ने देश के कई सामाजिक और राजनैतिक आंदोलनों में देश का साथ दिया ! देश में बदलाव के लिए अन्ना हज़ारे का सामाजिक आंदोलन हो या अरविन्द केजरीवाल का राजनैतिक आंदोलन, कुमार विश्वास हमेशा सारथी की भूमिका में नजर आये ! अपने ओजस्वी भाषणो से कभी जनता को जगरूप किया तो कभी भ्रष्ट नेताओ की खिल्ली उड़ाई , मगर हर लड़ाई में आगे डटे रहे ! 

ऐसे कम लोग होते है जो जिंदगी में जो करना चाहते है किसी भी परिस्तिथि में उसी को अपनाते है और जिंदगी में आगे बढ़ते है कुमार विश्वास उन्ही नामो में से एक है ! जो जिंदगी में चाहा वही किया, इंजीनियरिंग नहीं करनी थी नहीं की, कविताये करनी थी कवितायेँ की, हिंदी में रूचि थी हिंदी पढ़ी और हिंदी को आगे पढ़ाया
किसी भी व्यवसायी के लिए कुमार विश्वास से अच्छा आदर्श कोई नहीं हो सकता
जिंदगी में जो करना है 'बस करो', हौसला रखो परिस्थितियां साथ देने लगती है
घर के सदस्य आज नहीं मानते कल जरूर मानेगे, पैसे आज नहीं है कल जरूर होगे।
किसी की पंक्तियाँ है :

"ख़म थोक ठेलता है जब  नर, पर्वत के जाते पैर उखड़,
मानव जब जोर लगाता है, पत्थर भी पानी बन जाता है."  




चाँद


चाँद
दाग साथ लिये मगर फिर भी बेदाग,
कभी टूटी छतो से टपकता,
कभी बादलो में लुका छुपी खेलता,
कभी सर्दियों में सिकुड़ता,
कभी रास्तो में साथ चलता।
चाँद
हमेशा बचपन से किश्तों में मिला,
कभी रोटी में मिला,
तो कभी रिश्तो (मामा) में मिला,
मोहब्बत के अल्फाजो में मिला,
शहीदो के जनाजो में मिला।
चाँद
अब इश्क की इबादत है
गुमसुम, खोयी रात में
समुन्दर में खोयी मायूसी में
बेसब्री के इन्तजार में
खोये हुए प्यार के इश्तेहार में.
चाँद
मगर अब चाँद डरा है
सब कुछ बिक रहा है
अभी तो चाँद की बस जमीं बिकी है,
अगर चाँद बिका तो ….
सोचो क्या क्या बिकेगा ? क्या क्या बिकेगा ?




#YugalVani

भारत में किसान का मतलब : “बेचारा किसान”, “बीमार किसान”, “गरीब किसान”

एक और किसान ने सबके सामने, फिर से आत्महत्या कर ली ! वैसे तो पहले भी कई किसानो ने आत्महत्या की है मगर इस बार बस नया ये थे की उसने सबके सामने की ! पूरे देश के सामने की, उसको मरते हुए देखने वालो में केवल रैली वाले लोग नहीं थे, उसे टीवी देखने वालो ने, अख़बार पढने वालो ने, सबने... सबने उसकी मौत को सुना, देखा और पढ़ा ! पत्रकारों और राजनेताओ ने उसकी मौत पर राजनीती शुरू कर दी ! कुछ महान लोग तो यहाँ तक बोल बैठे की वो किसान नहीं था ! एक व्यापारी था, उसने अच्छे कपडे पहन रखे थे, पगड़ी का धंधा था उसका, एक गाड़ी भी थी उसके पास, वो किसान कैसे हो सकता है ? बताइए ?
वाह क्या परिभाषा है ‘किसान’ की मेरे देश में... जो फटे-पुराने कपडे पहने वही किसान होता है, जिसके पैर मे प्लास्टिक के काले जूते हो वही किसान होता है, जिसके सर पर मैली पगड़ी हो वही किसान होते है ! जिसके पास लकड़ी की बैलगाड़ी और हल हो वही किसान होता है !
मेरे देश में किसान को कोई हक़ नहीं है वो अच्छे कपड़े पहने, गाड़ी रखे, अच्छे जूते पहने, अच्छे घर में रहे... कोई हक़ नहीं है, किसान का एक अच्छी जिंदगी जीने का !
भारत में किसान का मतलब : “बेचारा किसान”, “बीमार किसान”, “गरीब किसान”...
एक अजीब छवि बना रखी है हमने अपने अन्नदाताओ की, किसान कितनी भी मेहनत करले, उसकी ये छवि बदलती ही नहीं है... या तो हम बदलना ही नहीं चाहते !



कल ‘शहीद’ हुए उस किसान ने अच्छे कपडे पहन रखे थे, इसलिए उसकी मौत पर ‘भी’ उंगलिया उठ रही है, इससे अच्छा है किसान गंदे कपडे ही पहने कम से कम “किसान” तो कहलायेगा, उसे अपने नाम के लिए लड़ना तो नहीं पड़ेगा ! राजनीती वाले उसकी मौत पर राजनीती करने में लग गए, मीडिया वाले ‘शेखीबघारने’ में लग गए !  मौत, मौत होती है , मौत दुखद होती है, मौत में पीड़ा होती है फ़िर वो चाहे किसी की भी हो। जंग में भी अगर दुश्मन मारा जाए तो जीत का जश्न मनाया जाता है, दुश्मन की मौत का नहीं, और गजेन्द्र कोई दुश्मन तो नहीं था, एक किसान था मेरे देश का अन्नदाता था ।
कभी आपने सोचा है, आप हमेशा बड़े बड़े मॉल में जाकर ‘एसी’ में रखी हरी सब्जियां, दाल, आटा और बहुत सारा रशोई का सामान लाते हो, वो भी ‘एसी’ में बिना किसी परेशानी के ! जनाब ये वही चीज़ें हैं जो किसान भरी धूप में कड़ी मेहनत कर अपने खेतों में उगाता है। मॉल मे आपको इन चीजो की चमचमाहट तो खूब दिखती होगी मगर क्या आपको कभी इसके पीछे का किसान का ‘पसीना’ दिखा है ! नहीं !! और तो और अगर वो किसान अपने फटे पुराने कपड़ो के साथ माल में आ जाये तो लोग कितनी बाते सुनाते है उसे, “जाहिल और गंवार” बोलकर बोलकर !
खैर छोडिये किसान तो रोज मरते हो रहते है बस एक और मर गया ! क्या घट गया मेरे इस देश का ! आप आराम से ‘एसी’ में बैठकर टीवी देखिये, कहीं कोई दूसरा किसान आपके लिए खाने का सामान बना रहा होगा कड़ी धुप में, अपने खेत में !